झांसी में हिंदू परिवार का बनाया ताजिया करता है मोहर्रम के जुलूस की अगवानी
झांसी में हिंदू परिवार का बनाया ताजिया करता है मोहर्रम के जुलूस की अगवानी
1855 में मोहर्रम के दिन ताजिया का जुलूस निकलने के समय एक विवाद हो गया. दो पक्षों में इस बात को लेकर ठन गई थी कि किसका ताजिया आगे चलेगा. इस वजह से मोहर्रम का जुलूस शुरु नहीं हो पा रहा था. लंबे समय तक जब विवाद नहीं रुका.
झांसी : मोहर्रम के पवित्र महीने में झांसी में गंगा-जमुनी तहजीब का एक अनूठा उदाहरण देखने को मिलता है. मोहर्रम के दिन निकलने वाले जुलूस का नेतृत्व एक हिंदू परिवार द्वारा बनाया गया ताजिया करता है. बढ़ई की मस्जिद के नाम से मशहूर यह ताजिया एक हिंदू परिवार द्वारा बनाया जाता है. इस ताजिया को बल्देव बढ़ई का परिवार बनाता है. 165 साल से भी अधिक समय से यह परिवार ताजिया बनता आ रहा है. इस ताजिया को सबसे आगे चलने का अधिकार महारानी लक्ष्मीबाई ने दिया था.
महारानी लक्ष्मी बाई और महाराज गंगाधर राव ने अपने पहले पुत्र के देहांत के बाद एक दत्तक पुत्र को गोद लिया था. इस पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया था. पुत्र के आगमन की खुशी में झांसी किले में भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसमें सभी लोग नए बच्चे के लिए तोहफे लेकर आए थे. उसी में बलदेव नाम के एक बढ़ई ने चंदन की लकड़ी का पालना बनाकर भेंट किया. इस तोहफे से रानी लक्ष्मीबाई बहुत खुश हुई थीं.
कैसे शुरू हुई परंपरा?
1855 में मोहर्रम के दिन ताजिया का जुलूस निकलने के समय एक विवाद हो गया. दो पक्षों में इस बात को लेकर ठन गई थी कि किसका ताजिया आगे चलेगा. इस वजह से मोहर्रम का जुलूस शुरु नहीं हो पा रहा था. लंबे समय तक जब विवाद नहीं रुका तो मामला महारानी लक्ष्मीबाई के दरबार तक पहुंचा. विवाद को खत्म करने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने बलदेव बढ़ई से एक ताजिया बनाने के लिए कहा. इस ताजिया को जुलूस में सबसे आगे चलने का गौरव प्राप्त हुआ.
5 वीं पीढ़ी निभा रही परंपरा
वर्तमान समय में इस ताजिया को बनाने वाले प्रदीप शर्मा ने बताया कि बलदेव बढ़ई के निधन के बाद उनके वंशज लल्ला उस्ताद, धर्मदास, दयाराम ने इस ताजिया को बनाने का क्रम जारी रखा. आज उनकी पांचवीं पीढ़ी इस जिम्मेदारी को निभा रही है. प्रदीप ने बताया कि हिंदू और मुसलमान दोनों ही बड़ी संख्या में यहां आते हैं.
जुलूस की अगवानी करता है बढ़ई का ताजिया
प्रदीप शर्मा ने बताया कि ताजिया के डिजाइन में आज तक कोई भी बदलाव नहीं किया गया है. जैसा ताजिया महारानी लक्ष्मीबाई के समय में बनता था ठीक उसी तरह का ताजिया हम आज तक बनाते हैं. महारानी लक्ष्मीबाई ने जिस परम्परा को शुरू किया था वह आज तक चली आ रही है. इस ताजिया से पहले महारानी लक्ष्मीबाई का ताजिया सबसे आगे चलता था. रानी के आदेश के बाद बढ़ई का ताजिया सबसे आगे चलने लगा.
Tags: Jhansi news, Local18, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : July 10, 2024, 13:16 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed