कहता है कारगिल: जब आइस-वॉल पार करने के बाद लेफ्टिनेंट प्रवीण का P-5310 पर हुआ दुश्मन से सामना और फिर
कहता है कारगिल: जब आइस-वॉल पार करने के बाद लेफ्टिनेंट प्रवीण का P-5310 पर हुआ दुश्मन से सामना और फिर
Kahata Hai Kargil: मैं कारगिल... आज आपको चोरबत ला सेक्टर में हुई ऐसी हैरतअंगेज लड़ाई की कहानी सुनाने जा रहा हूं, जिसमें भारतीय शूरवीरों को 300 मीटर ऊंची दीवार को पार कर दुश्मन को जमींदोज किया था. असंभव को संभव करने वाली इस लड़ाई में एक भी भारतीय शूरमां हताहत नहीं हुआ था.
Kahata Hai Kargil: मैं कारगिल … आज आपको लेकर चलता हूं मेरे पूर्वी छोर पर स्थित चोरबत ला सेक्टर के प्वाइंट 5310 की ओर. 1999 के कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के शूरवीरों ने अचंभित करने वाली एक लड़ाई चोरबत ला सेक्टर के प्वाइंट 5310 पर भी लड़ी थी. यह लड़ाई कारगिल युद्ध की उन चुनिंदा लड़ाइयों में एक है, जिसमें मेरे किसी अपने की शहादत नहीं देनी पड़ी थी.
दरअसल, गोलियों की बौछार और आर्टलरी फायरिंग से मेरे सीने को छलनी करते पाकिस्तानी सेना-अर्धसैनिक बलों पर लगाम कसने के लिए अब जरूरी हो गया था कि सरहद पार से मिलने वाली सैन्य सहायता और रसद सामग्री को दुश्मन सैनिकों तक पहुंचने से रोका जाए. इस मकसद को पूरा करने के लिए जरूरी था चोरबत ला सेक्टर के प्वाइंट 5310 पर भारतीय सेना अपना कब्जा जमाए.
आसान नहीं था भारतीय सेना के लिए प्वाइंट 5310 पर हमला
भारतीय सेना के लिए प्वाइंट 5310 पर कब्जा करना बहुत आसान नहीं था. दरअसल, प्वाइंट 5310 की भौगोलिक स्थिति का सीधा फायदा दुश्मन सेना को मिल रहा था. इस प्वाइंट के एक तरफ सपाट ढ़लान थी, जिसमें कई किलोमीटर दूर तक नंगी आंखों से नजर रखी जा सकती थी. इस रास्ते से आक्रमण की स्थिति में बचाव के लिए भारतीय सेना के पास बहुत अधिक विकल्प नहीं थे.
वहीं दूसरी तरफ, कई सौ मीटर गहरी बर्फ की दीवार थी. दुश्मन यह सोच का बैठा था कि बर्फ की दीवार पार कर भारतीय सेना का उनतक पहुंच पाना लगभग असंभव है. दुश्मन सेना के जवान इस बात को लेकर भी बेहद आश्वस्त थे कि भारतीय सेना जब भी उन तक पहुंचने की कोशिश करेगी, वह सामने के रास्ते का ही चुनाव करेगी और वे इस हमले को बेहद आसानी से विफल कर देंगे.
प्वाइंट 5310 पर हमले से पहले हुई कड़ी रिहर्सल
15 जुलाई 1999 को तय हुआ कि लेफ्टिनेंट प्रवीण कुमार के अगुवाई में 14 सिख रेजिमेंट के घातक प्लाटून इस मकसद को अंजाम तक पहुंचाएगी. उसी दिन, लेफ्टिनेंट प्रवीण को प्वाइंट 5310 पर कब्जा करने के आदेश दे दिए गए. आदेश मिलते ही लेफ्टिनेंट प्रवीण हमले की तैयारियों में जुट गए. उन्होंने पहले संभावित कठिनाइयों का आंकलन किया, फिर उसी के अनुरूप हमले की सटीक रणनीति तैयार की.
लेफ्टिनेंट प्रवीण ने अपनी रणनीति के मुताबिक प्लाटून को तीन टीमों में विभाजित किया और फिर शुरू हुआ बेहद शख्त रिहर्सल का दौर. घातक टीम के बहादुरों को मॉक फीचर पर हमले के कई रिहर्सल कराए गए, जिससे हमले के दौरान चूक की कोई गुंजाइश न रहे. साथ ही, उन्हें क्लिफ असॉल्ट, माउंटेन क्लाइम्बिंग, आइस-क्राफ्ट और ग्लेशियेटेड ऑपरेशंस की तकनीकों का खास प्रशिक्षण भी दिया गया.
तीन दिशाओं से दुश्मन पर हमले की बनी रणनीति
करीब पांच दिन के कठिन रिहर्सल के बाद, लेफ्टिनेंट प्रवीण ने दुश्मन की टोह लेने के लिए 20 जुलाई को एक टीम रवाना की. टोही दल से मिली जानकारी के आधार पर तीन दिशाओं से हमले की तैयारियों को अंतिम रूप दिया गया. 22 जुलाई की रात करीब 9 बजे तीनों टीमों ने प्वाइंट 5310 पर विजय पताका फहराने की शपथ ली और 14 सिख रेजिमेंट की घातक प्लाटून अगल-अलग दिशाओं से दुश्मन की ओर कूच कर गई.
पहली टीम का नेतृत्व खुद लेफ्टिनेंट प्रवीण कर रहे थे, जबकि दूसरी और तीसरी टीम की अगुवाई क्रमश: नायक रघबीर सिंह और नायब सूबेदार सतनाम सिंह कर रहे थे. लेफ्टिनेंट प्रवीण ने बर्फ की दीवार पर कर दुश्मन पर हमला करने की जिम्मेदारी ली. जबकि, नायक रघबीर सिंह और नायब सूबेदार सतनाम सिंह से अलग-अलग दिशाओं से दुश्मन के ठिकाने तक पहुंचने के लिए कहा गया.
हमले के लिए पार की 300 मीटर ऊंची बर्फ की दीवार
कहने में यह बात भले ही आसाल लगे, लेकिन हाड़ कंपाती ठंड के बीच 300 मीटर ऊंची बर्फ की दीवार पार करना आसान नहीं था. लेकिन, इस असंभव काम को भारतीय सेना के शूरमाओं ने बखूबी कर दिखाया. लेफ्टिनेंट प्रवीण के नेतृत्व में घातक टीम ग्लेशियर के बीच गहरे दरारों को पार किया और करीब 250 मीटर की चढ़ाई रस्सी की मदद से पूरी कर दुश्मन के ठिकाने तक पहुंचने में कामयाब रहे.
इसी तरह, नायक रघबीर सिंह के नेतृत्व में दूसरी टीम भी तमाम चुनौतियों को दरकिनार करते हुए दुश्मन के ठिकाने तक पहुंचने में कामयाब रही. वहीं, नायब सूबेदार सतनाम सिंह के नेतृत्व में तीसरी टीम अभी लक्ष्य से थोड़ा दूर थी और दुश्मन के ठिकाने तक पहुंच चुकी दोनों टीमों के पास अब इतना वक्त नहीं था कि वह तीसरी टीम का इंतजार कर सकें. लिहाजा, लेफ्टिनेंट प्रवीण ने नायक रघबीर सिंह के साथ मिलकर हमले का फैसला किया.
दुश्मन के 15 सैनिकों को मार प्वाइंट 5310 पर किया कब्जा
प्वाइंट 5310 पर भारतीय सेना के जांबाजों की मौजूदगी से अभी भी दुश्मन बेखबर था. लेफ्टिनेंट प्रवीण ने बेहद खामोशी के साथ टीम को पुर्नगठित किया और अत्याधुनिक हथियारों का रुख दुश्मन की तरफ कर दिया. दुश्मन कुछ समझता, इससे पहले लेफ्टिनेंट प्रवीण की मशीनगन गर्म लोहा उगलने लगी और देखते ही देखते प्वाइंट 5310 दुश्मन की लाशों से पटता चला गया. लेफ्टिनेंट प्रवीण ने इस ऑपरेशन में दुश्मन के कुल 15 जवानों को मार गिराया.
इस तरह, लेफ्टिनेंट प्रवीण कुमार ने अद्वितीय और अपरंपरागत रणनीति का प्रदर्शन करते हुए प्वाइंट 5310 को पूरी तरह अपने कब्जे में ले लिया. लेफ्टिनेंट प्रवीण की इस सफलता के चलते चोरबटला सेक्टर में हमारी रक्षात्मक मुद्रा में न केवल सुधार हुआ, बल्कि दुश्मन की सप्लाई लाइन को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया गया. प्वाइंट 5310 की लड़ाई में द्वितीय युद्ध कौशल का प्रदर्शन करने वाले लेफ्टिनेंट प्रवीण कुमार वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
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