Explainer: क्यों लाभ के पद कानून को बदलना चाहता है केंद्र इससे क्या होगा
Explainer: क्यों लाभ के पद कानून को बदलना चाहता है केंद्र इससे क्या होगा
"आफिस ऑफ प्रॉफिट" का कानून अक्सर सांसदों और विधायकों को दिक्कत में डालता रहा है. इससे उनकी सदस्यता जाने का खतरा भी बना रहता है. कुछ समय पहले आप के 20 विधायकों की सदस्यता इस कानून के चलते चली गई थी.
हाइलाइट्स केंद्र सरकार ने ये कानून 1959 में बनाया था इस कानून से संबंधित मामले अक्सर कोर्ट में जाते हैं इसके तहत सांसद और विधायक सरकार में लाभ के पद पर नहीं रह सकते
भारत सरकार शासन, प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक कामकाज में चुनौतियों का समाधान करने के लिए “लाभ के पद” यानि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट से संबंधित कानूनों में संशोधन करने पर विचार कर सकती है. “लाभ के पद” की अवधारणा निर्वाचित प्रतिनिधियों के हितों के टकराव को रोकने में निहित है, ताकि कोई जनप्रतिनिधि दो पदों पर रहते हैं दोनों के लाभ नहीं हासिल कर सके. कानून कहता है कि कोई भी सांसदों या विधायकों को विधायी भूमिकाओं में सेवा करते समय वित्तीय लाभ या कार्यकारी प्रभाव का पद नहीं लेना चाहिए.
ये कानून 65 साल पहले बनाया गया था. अब लगता है कि सरकार पुराने उस कानून को निरस्त करने का इरादा रखती है, जो लाभ के पद पर आसीन सांसदों को अयोग्य ठहराता है.
केंद्रीय कानून मंत्रालय के विधायी विभाग ने 16वीं लोकसभा के दौरान कलराज मिश्र की अध्यक्षता वाली लाभ के पदों पर संयुक्त समिति (जेसीओपी) द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर ‘संसद (अयोग्यता निवारण) विधेयक, 2024’ का मसौदा प्रसारित किया है. प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य मौजूदा संसद (अयोग्यता निवारण) अधिनियम, 1959 की धारा 3 को युक्तिसंगत बनाना तथा अनुसूची में दिए गए पदों की नकारात्मक सूची को हटाना है.
सवाल – मोटे तौर पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले पर अभी सरकार क्या किया है?
– कानून मंत्रालय ने लाभ के पद पर 1959 के मौजूदा कानून की जगह लेने के लिए संसद (अयोग्यता निवारण) विधेयक, 2024 के मसौदा कानून पर टिप्पणियां आमंत्रित की हैं. विधेयक में प्रस्ताव है कि लाभ के कुछ पदों के धारकों को संसद सदस्य (एमपी) बनने या होने से अयोग्य घोषित किए जाने से छूट दी जाएगी. इस विधेयक में लाभ के पदों पर संयुक्त समिति (जेसीओपी) द्वारा की गई कुछ सिफारिशों को शामिल किया गया है.
सवाल – समिति ने क्या सुझाव दिया जो सांसदों के पक्ष में हैं?
– समिति ने सुझाव दिया है कि स्वच्छ भारत मिशन, स्मार्ट सिटी मिशन और दीन दयाल उपाध्याय-ग्रामीण कौशल योजना जैसी विभिन्न प्रमुख योजनाओं और कार्यक्रमों में नामित सांसदों को अयोग्य घोषित किए जाने से बचाया जाना चाहिए. मंत्रालय ने कहा कि 1959 का अधिनियम यह घोषित करने के लिए लागू किया गया था कि सरकार के तहत लाभ के कुछ पद धारकों को सांसद चुने जाने या होने के लिए अयोग्य नहीं ठहराएंगे.
मसौदा विधेयक में कुछ मामलों में अयोग्यता के “अस्थायी निलंबन” से संबंधित मौजूदा कानून की धारा 4 को छोड़ने का भी प्रस्ताव है. इसके स्थान पर, केंद्र सरकार को अधिसूचना जारी करके अनुसूची में संशोधन करने का अधिकार दिया गया है.
सवाल – अब तक आफिस ऑफ प्रॉफिट कानून की क्या अवधारणा रही है?
– यदि विधायक और सांसद सरकार के अधीन ‘लाभ का पद’ रखते हैं, तो वे सरकारी प्रभाव के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं. अपने संवैधानिक जनादेश का निष्पक्ष रूप से निर्वहन नहीं कर सकते. लिहाजा निर्वाचित सदस्य के कर्तव्यों और हितों के बीच कोई टकराव नहीं होना चाहिए.
हालांकि कानून में स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है कि लाभ का पद क्या होता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न न्यायालयों के निर्णयों में की गई व्याख्याओं के साथ इसकी परिभाषा विकसित हुई है. लाभ के पद की व्याख्या ऐसी स्थिति के रूप में की गई है जो पदधारक को कुछ वित्तीय लाभ, या फायदा या लाभ पहुंचाती है. ऐसे लाभ की राशि कोई मायने नहीं रखती.
सवाल – सरकार का ऑफिस ऑफ प्रॉफिट पर क्या कहना है?
– “लाभ के पद” की परिभाषा को विभिन्न मामलों में असंगत रूप से व्याख्यायित किया गया है, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा होती है. लिहाजा उसमें जरूरी बदलाव की जरूरत है.एक स्पष्ट परिभाषा निश्चितता प्रदान करेगी. अनावश्यक मुकदमेबाजी को रोकेगी.
सवाल – सरकार क्यों ऐसा करने जा रही है?
– विधायक और सांसद अक्सर समितियों, बोर्डों या आयोगों में सेवा करने संबंधी सहित दोहरी भूमिकाएं निभाते हैं. “लाभ के पद” की सख्त व्याख्याएं इन भूमिकाओं में उनकी भागीदारी में बाधा डाल सकती हैं, जिससे शासन कमज़ोर हो सकता है.मौजूदा कानून में संशोधनों का उद्देश्य विधायकों को उनकी विधायी स्वतंत्रता से समझौता किए बिना कार्यकारी कार्यों में योगदान करने की अनुमति देना हो सकता है. “लाभ के पद” कानूनों के तहत अयोग्य ठहराए जाने का डर विधायकों को सलाहकार या प्रशासनिक क्षमताओं में शामिल होने से रोकता है.
कई देशों ने बदलती शासन संरचनाओं के अनुकूल अपने कानून विकसित किए हैं. भारत समकालीन चुनौतियों के लिए प्रासंगिक बने रहने के लिए कानूनों को सुनिश्चित करने के लिए समान सुधारों पर विचार कर सकता है.
सवाल – अब सरकार का अगला कदम इसको लेकर क्या हो सकता है?
– संबंधित मंत्रालय (जैसे कि कानून मंत्रालय) “लाभ के पद” के इसके प्रावधानों का अध्ययन करेगा. संशोधन या नए कानून का मसौदा तैयार करेगा. इस प्रक्रिया में कानूनी विशेषज्ञ, संवैधानिक विशेषज्ञ, और अन्य हितधारकों से सलाह ली जाती है. तैयार मसौदे को केंद्रीय मंत्रिमंडल के सामने प्रस्तुत किया जाता है. वहां से अगर मंजूरी मिली तो मसौदा विधेयक संसद में पेश कर दिया जाएगा. विधेयक पहले लोकसभा में पेश किया जाता है और बाद में राज्यसभा में. यदि विधेयक दोनों सदनों में साधारण बहुमत (simple majority) से पारित हो जाता है, तो यह राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है. ऐसा होने के बाद ये कानून बन जाएगा.
सवाल – लाभ के पद कानून में किन अनुच्छेदों में संशोधन किए जाने की बात है?
– “लाभ के पद” से संबंधित कानून संविधान के अनुच्छेदों (जैसे अनुच्छेद 102 और 191) में संशोधन की जरूरत है, जो सरकार भी करना चाहती है. इसे केंद्र के साथ साथ आधे से अधिक राज्यों की विधानसभाओं में पास कराकर उनकी भी मंजूरी लेनी होगी. यदि कोई व्यक्ति या समूह इस संशोधन को संविधान विरोधी मानता है, तो इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है.
Tags: Amending the law, BSP MLA, Constitution of India, Indian Constitution, Member of parliamentFIRST PUBLISHED : November 18, 2024, 19:15 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed