देहरादून में दिखी जौनसारी संस्कृति की झलक रहन-सहन से लेकर वेशभूषा भी है अलग देखें Video
देहरादून में दिखी जौनसारी संस्कृति की झलक रहन-सहन से लेकर वेशभूषा भी है अलग देखें Video
Jaunsar Mela in Dehradun: वीर शहीद केसरी चंद की 103वीं जयंती पर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के पवेलियन ग्राउंड में जौनसार मेले का आयोजन किया गया. जौनसार संस्कृति झलक दिखाई दी. दरअसल जौनसार बावर क्षेत्र की बोली, रीति-रिवाज, संस्कृति, खानपान, रहन-सहन, वेशभूषा ही नहीं बल्कि इस जनजाति के लोगों के जीवनयापन का अंदाज ही अलग है.
रिपोर्ट- हिना आज़मी
देहरादून. अपनी अनूठी संस्कृति के लिए मशहूर उत्तराखंड के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर की लोक संस्कृति और यहां का पहनावा आधुनिक दौर में भी कायम है. राज्य के मैदानी इलाकों में जहां फैशन के इस दौर में पारंपरिक त्योहारों में पहनावा तेजी से बदला है, लेकिन जौनसार बावर ऐसा पहाड़ी क्षेत्र है, जहां पर उनका पहनावा और लोक संस्कृति आज भी कायम है. सभी त्योहारों पर पुरुष और महिलाएं अपने परंपरागत पहनावे में ही दिखाई देते हैं. हर आयोजन को सामूहिक रूप से मनाकर ये लोग अपनी एकजुटता का प्रदर्शन करते हैं.
इस बीच वीर शहीद केसरी चंद की 103वीं जयंती पर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के पवेलियन ग्राउंड में जौनसार मेले का आयोजन किया गया. मेले में जौनसारी कला के अनोखे रंग देखने को मिले और जौनसारी संस्कृति को करीब से जानने का मौका मिला.
वीर शहीद केसरी चंद युवा समिति के अध्यक्ष ध्वजवीर ने कहा कि उत्तराखंड के जौनसार बावर में कुछ ऐसी अनोखी संस्कृति और परंपराएं हैं, जो इस जनजाति क्षेत्र को अन्य समुदायों से अलग बनाती हैं. उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी को हमारी संस्कृति से जोड़ने के लिए हम मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं. आज जौनसार संस्कृति के लोकनृत्य और लोकगीत देशभर में प्रसिद्ध हैं. वहीं बोली, रीति-रिवाज, संस्कृति, खानपान, रहन-सहन, वेशभूषा ही नहीं बल्कि इस जनजाति के लोगों के जीवनयापन का अंदाज ही अलग है. तीज-त्योहार हो या शादी-विवाह या फिर कोई भी सांस्कृतिक आयोजन, उसमें हमेशा जौनसार संस्कृति की झलक देखने के लिए मिलती है.
समिति के महासचिव राहुल चौहान ने कहा कि हमारे क्षेत्र में कोई भी समारोह में आज भी हमारे पुराने रीति-रिवाज नजर आते हैं. गढ़वाली और कुमाऊंनी संस्कृति की तरह जौनसारी संस्कृति भी उत्तराखंड की पहचान है.
महाभारत काल से जुड़ी है जौनसारी संस्कृति
मूल रूप से जौनसार संस्कृति महाभारत काल के पांडवों से निकली जड़ों से जुड़ी हुई है. देहरादून के उत्तर-पश्चिम में चकराता तहसील में जौनसार-बावर के दो प्रमुख क्षेत्रों में जौनसार जनजाति समुदाय के लोग निवास करते हैं. यमुना और टोंस नदी के मध्य स्थित लाखा मंडल, बैराजगढ़ और हनोल जैसे क्षेत्रों में यह जनजाति निवास करती है. जौनसार समुदाय के लोग खुद को पांडवों के वंशज मानते हैं, जिन्हें ‘पाशि’ कहा जाता है और बावर के लोगों को दुर्योधन का वंशज यानी ‘षाठी’ कहा जाता है. जौनसार क्षेत्र का लोकनृत्य ‘बारदा नाटी’ और ‘हारूल’ है. वहीं, यहां का प्रमुख मेला ‘मेघ मेला’ है.
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Tags: Dehradun news, Uttarakhand newsFIRST PUBLISHED : November 03, 2022, 17:56 IST