इंदिरा इस्तीफा देकर स्वर्ण सिंह को बनाना चाहती थीं पीएम फिर कैसे बदल लिया मन

Emergency in India: आपातकाल लगाने से पहले इंदिरा गांधी ने इस्तीफा देकर साफसुथरी इमेज वाले स्वर्ण सिंह को पीएम बनाने का मन बना लिया था तो वो लोग कौन थे जिन्होंने उनका मन बदलकर देश में लगवाई इमर्जेंसी.

इंदिरा इस्तीफा देकर स्वर्ण सिंह को बनाना चाहती थीं पीएम फिर कैसे बदल लिया मन
हाइलाइट्स हाईकोर्ट के फैसले के बाद इंदिरा गांधी ने पीएम पद से इस्तीफा देने का मन बना लिया था जब वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं तो देश के शीर्ष कोर्ट ने क्या फैसला दिया था रामलीला ग्राउंड की रैली में उस दिन क्या हुआ जिसने इंदिरा गांधी को विचलित कर दिया 12 जून 1975 के दिन जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला सुनाते उनके रायबरेली लोकसभा चुनाव को अवैध करार दिया तो देश का सियासी घटनाक्रम तेज हो गया. जितने मुंह उतनी बातें. इंदिरा गांधी विचलित थीं. बैठकों पर बैठकें कर रही थीं. बहुत कुछ उनके दिमाग में भी चल रहा था. वह हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लेने सुप्रीम कोर्ट गईं.  वहां राहत मिली लेकिन शर्तों के साथ. इसके बाद उन पर इस्तीफे का दबाव बढ़ने लगा. ऐसे में उन्होंने एकबारगी इस्तीफा देने और मंत्रिमंडल के सीनियर मंत्री स्वर्ण सिंह को पीएम बनाने का मन बनाया. इसके चंद घंटों बाद ही तस्वीर बदल गई. उन्हें आश्वस्त किया गया कि अब उन्हें आपातकाल ही लगाना चाहिए. वो कौन लोग थे, जो इस समय उनको ये सलाह दे रहे थे. 25 जून 1975 की रात करीब 11.30 बजे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी. रामचंद्र गुहा की किताब “इंडिया आफ्टर नेहरू” में कहा गया है, “23 जून को सुप्रीम कोर्ट में श्रीमती गांधी की याचिका पर सुनवाई शुरू हुई. अगले दिन जस्टिस वी आर कृष्णा अय्यर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसलों पर कुछ शर्तों के साथ रोक लगा दी. अदालत ने कहा कि श्रीमती गांधी संसद में उपस्थिति हो सकती हैं लेकिन जब तक उनकी याचिका पर फैसला नहीं हो जाता, वह संसद में होने वाली वोटिंग में हिस्सा नहीं ले सकतीं.” “इंडियन एक्सप्रेस” ने 25 जून के अंक में छापा कि प्रधानमंत्री को व्यक्तिगत हित में और देश के हित में जरूर इस्तीफा दे देना चाहिए. 23 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High court) के इंदिरा गांधी के खिलाफ आए ऐतिहासिक फैसले पर कंडीशनल स्टे दे दिया. (फाइल फोटो) क्या सोच रहे थे कांग्रेस के सीनियर लीडर गुहा की किताब के अनुसार, “24 जून को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद कुछ सीनियर कांग्रेस नेता सोचने लगे थे कि पार्टी के हित में श्रीमती गांधी का इस्तीफा जरूरी है. अगर वह संसद में मतदान नहीं कर सकतीं तो प्रभावशाली तरीके से सरकार का नेतृत्व कैसे करेंगी. उन्हें सलाह दी गई कि जब तक सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें आरोपमुक्त नहीं कर देता, तब तक वो तात्कालिक तौर पर इस्तीफा देकर अपने किसी मंत्री को प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंप दें. उनके सहयोगियों और वकीलों को अदालत में उनके बरी होने की पूरी उम्मीद थी.” इंदिरा ने मन बना लिया था कि इस्तीफा नहीं देंगी प्रधानमंत्री पद के लिए शायद स्वर्ण सिंह का नाम सुझाया गया था, जो एक गैर विवादास्पद नेता थे. लेकिन संजय गांधी और सिद्धार्थ शंकर रे ने उन्हें इस्तीफा नहीं देने की सलाह दी. सिद्धार्थशंकर पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री और जाने माने वकील थे. वो इस समय इंदिरा गांधी को सलाह देने के लिए दिल्ली आ गए थे. इंदिरा ने 24 जून की रात तक मन बना लिया कि वो इस्तीफा नहीं देंगी और पद पर बनी रहेंगी. क्या इंदिरा ने पहले ही इमर्जेंसी लगाने का मन बना लिया था जाने माने पत्रकार कुलदीप नैयर की किताब “बियांड द लाइंस – एन आटोबॉयोग्राफी” का कहना है, ” इंदिरा गांधी ने 22 जून को ही इमर्जेंसी लागू करने की योजना बना ली थी. 25 जून की सुबह उन्होंने अपने कुछ विश्वस्त साथियों से इस बारे में बात भी की थी.” इमर्जेंसी लागू होने की खबर बहुत कम अखबारों में प्रकाशित हुई, क्योंकि दिल्ली में अखबारों की बिजली काट दी गई थी. 25 जून की शाम राष्ट्रपति से मिलने गईं एक बार जब फैसला ले लिया गया तो इसे बिजली की गति से लागू किया गया. 25 जून को सिद्धार्थ शंकर रे ने मुल्क में आंतरिक आपातकाल लगाने के लिए एक अध्यादेश का मसौदा तैयार किया. अध्यादेश राष्ट्रपति के सामने पेश किया गया. 25 जून को आधी रात से पहले आनन-फानन में इस पर दस्तखत करा लिए गए. नैयर की किताब के अनुसार, 25 जून की शाम 05.00 बजे इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से मुलाकात की. उन्होंने रात के लगभग 11.30 आपातकाल की घोषणा कर दी. 25 जून को विपक्षी नेताओं ने बड़ी जनसभा की थी अखबार डेक्कन हेराल्ड में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई. इसके लेखक थे रवि विश्वेरैया शारदा प्रसाद, जो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सूचना सलाहकार एचवाई शारदा प्रसाद के बेटे हैं. बकौल उनके, 25 जून की शाम जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, राज नारायण, नानाजी देशमुख, मदनलाल खुराना और कई नेताओं ने रामलीला मैदान में भारी भीड़ की मौजूदगी में जनसभा को संबोधित किया.जनसभा में इंदिरा गांधी से इस्तीफे की मांग की गई. जेपी का वो भाषण जिसने उनके सहयोगियों को भी विचलित कर दिया जेपी ने भड़काऊ भाषण दिया, उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर की कविता की पंक्तियां उद्धृत करते हुए सीधे इंदिरा गांधी पर हमला बोला, “सिंहासन खाली करो..जनता आती है.” फिर इसी भाषण में सेना और पुलिस से आह्वान किया कि वो सरकार की अनुचित और असंवैधानिक आदेशों को मानने से मना कर दें. हालांकि जेपी की ये बात नियमों और कानून के प्रति पाबंद रहने वाले और अनुशासन पसंद करने वाले मोरारजी को बिल्कुल पसंद नहीं आई. उनकी जेपी से तकरार भी हो गई. जिस पर सुब्रमण्यम स्वामी ने बीच बचाव किया. बीजू पटनायक ने जेपी को आगाह किया कि अब इंदिरा जरूर कुछ कठोर कार्रवाई कर सकती हैं. उन्होंने जेपी से कहा,कि अब भी हमारे सामने उनसे समझौता करने का समय है. हमें अतिवादी रुख से बचना चाहिए. खुफिया अफसर सादे कपड़ों में तैनात थे इसके बाद दीन दयाल उपाध्याय मार्ग स्थित राधाकृष्ण के आवास पर मोरारजी, जेपी समेत कई नेताओं का डिनर था. वहां स्वामी ने गौर किया कि घर के बाहर इंटैलिजेंस डिपार्टमेंट के अफसर सादे कपडों में मौजूद थे. स्वामी को महसूस हुआ कि इंदिरा गांधी देश में मार्शल लॉ लगा सकती हैं और गिरफ्तारियां हो सकती हैं लेकिन जेपी और मोरारजी ने कहा कि नेहरू की बेटी ऐसा करने के बारे में सोच भी नहीं सकतीं. Tags: Emergency 1975, Indira GandhiFIRST PUBLISHED : June 25, 2024, 11:51 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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