Explainer : ना चोट के निशान ना ब्लीडिंग तो भगदड़ में कैसे चली जाती है जान

हाथरस में एक सत्संग के बाद भारी भीड़ में भगदड़ मच जाने से 116 लोगों की जान चली गई. लेकिन ना तो उनके बाहरी शरीर पर चोट आई और ना ही उनका खून बहा, तब किस स्थिति ने इतने लोगों को मार दिया और कैसे मार दिया.

Explainer : ना चोट के निशान ना ब्लीडिंग तो भगदड़ में कैसे चली जाती है जान
हाइलाइट्स कहीं भी जब भीड़ में भगदड़ मचती है तो लोगों की जान इसी तरह जाती है इसमें बॉडी में नहीं होते चोटों के निशान और ना ही कोई बाहरी निशानी मरने की इस स्थिति को चेस्ट कंप्रेशन कहा जाता है, जिसमें सांस रुक जाती है हाथरस के सिकन्द्राराऊ क़स्बे से क़रीब चार किलोमीटर दूर फुलराई गांव में कई बीघे में टेंट लगाया गया. इसमें बाबा साकार नारायण का सत्संग था. बाबा इसके बाद जैसे ही निकले, वैसे ही यहां भगदड़ मच गई और 116 लोगों की जानें चली गईं, जिसमें 111 महिलाएं है. सभी मरने वालों के शरीर पर ना तो कहीं चोट के निशान हैं और ना ही रक्तस्राव हुआ है तो मौत की वजह क्या है. अगर मेडिकल टर्म की बात करें तो इसे कंप्रेशन एसफ्किस्यिा कहते हैं यानि चेस्ट कंप्रेशन. जब भी दुनिया में कहीं भी भगदड़ होती है तो उसमें हमेशा लोगों की जान इसी वजह से जाती है. इसको सहज तौर पर इस तरह समझ सकते हैं – ये तब होता है जब किसी बाहरी ताकत की वजह से छाती पर इतना दबाव पड़ता है कि सांस रुक जाती है. फेफड़े इस तरह दब या कुचल जाते हैं कि ये हृदय तक ऑक्सीजन पहुंचा ही नहीं पाते. क्योंकि हमारे शरीर में बाहर से आने वाले हवा फेफड़े के जरिए अंदर पहुंचती है. जब फेफड़ा काम नहीं कर पाता तो हवा का रास्ता बंद हो जाता है. जान चली जाती है. यह तब होता है जबकि भीड़ आपको बुरी तरह दबा दे या फिर आप भीड़ पिचकने की स्थिति में आ जाए. आपके शरीर पर बुरी तरह का दबाव पड़ा हो. इसे ऐसा सांस अवरोध कहा जाता है, जबकि बाहरी दबाव छाती या पेट पर बल डालकार सांस को रोक देता है या फेफड़े पर इतनी बुरी तरह दबाव आता है कि ये निचुड़ सा जाता और पुरानी स्थिति में नहीं लौट पाता. हाथरस भगदड़ में भी मरे हुए लोगों के साथ यही हुआ या तो भारी भीड़ उन्हें कुचलते हुए निकली या फिर उन्हें दबाते हुए. ये स्थिति इतनी भयावह रही होगी कि उनके फेफड़ों को बुरी तरह अंदरूनी तौर पर क्षतिग्रस्त कर गई. बाहर से बेशक ये लोग ठीक लग रहे हैं. रक्त का बहाव भी नहीं हुआ हो लेकिन फेफड़े पर ऐसा असर पड़ा कि शरीर में सांस का पूरा सिस्टम ही बैठ गया. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, भगदड़ के दौरान छाती पर पैर रखे जाते हैं. इसके कारण लंग्स के पास डायाफ्राम सिकुड़ने यानी कसने लगता है, सपाट होने पर यह सही तरह काम नहीं कर पाता है और शरीर में ऑक्सीजन नहीं जा पाता है, न ही ब्रेन तक उसकी सप्लाई हो जाती है. जिसकी वजह से ब्रेन डेड हो जाता है और उसकी मौत हो जाती है. ये कब होता है – एक बड़ी भीड़ किसी के शरीर को धक्का दे रही है, जैसे कि किसी धार्मिक समारोह में भगदड़ के दौरान – भारी भीड़ वाले संगीत समारोह में – कोई व्यक्ति किसी की छाती पर बैठा हुआ हो – कोई भारी भरकम व्यक्ति अगर छाती पर बैठ गया हो – कोई छाती पर घुटनों के बल बैठा हुआ हो – अगर कोई ऊपर बैठा हो और दम घुटता सा लगे ऐसे में क्या लक्षण होते हैं – बात करना मुश्किल हो जाता है – गला बंद हो जाता है – बुरी तरह खांसी कैसे फिर मौत हो जाती है – ऐसी स्थिति में केवल तीन से चार मिनट में मस्तिष्क और हृदय पर इतना गंभीर असर पड़ता है को बचाना मुश्किल हो जाता है. – कंप्रेसिव एस्फ़िक्सिया की वजह से रक्त में ऑक्सीजन का स्तर तेज़ी से कम हो जाता है. – आम तौर पर, एक से दो मिनट के अंदर ही ऑक्सीजन का स्तर गिरने लगता है. – अगर ऑक्सीजन का स्तर 56फीसदी तक पहुंच जाता है, तो लोग बेहोश हो सकते हैं. हालांकि ये हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकता है. – सांस लेने में बाधा आती है. दबाव हटाने के बाद भी इससे मौत हो सकती है ऐसे में क्या करना चाहिए – मुंह से मुंह के ज़रिए सांस लेने की क्रिया. – ऑक्सीजन थेरेपी यानि श्वास नली के जरिए शरीर के अंदर ऑक्सीजन पहुंचाना. Tags: Hathras Case, Hathras news, StampedeFIRST PUBLISHED : July 3, 2024, 16:28 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed