चुनावों में समोसा कैसे हर बार किंग नेताजी और चेले कर जाते हैं करोड़ों पीस चट
चुनावों में समोसा कैसे हर बार किंग नेताजी और चेले कर जाते हैं करोड़ों पीस चट
मानें या मत मानें हर चुनावों में असर विनर तो अपना ये समोसा ही होता है. आप हैरान हो रहे होंगे. लेकिन असलियत तो यही है. गर्म गर्म तेल पर छनते समोसों की गंध चुनावों में पूरे देश में किस तरह फैल जाती है.
हाइलाइट्स पूरे देश में चुनावी खर्चों में सबसे बड़ा हिस्सा समोसों का कैसे 20 दिनों के परम चुनाव प्रचार के दौरान होते हैं करोड़ों समोसे चट समोसे कैसे हो गए इतने हिट कि यहां की सांस्कृतिक पहचान बन गए
अगर हम आपसे ये कहें कि चुनावों में कोई जीते और कोई हारे लेकिन एक स्नैक्स हर बार जीत जाता है तो क्या कहेंगे. ये स्नैक्स है गरमागरम समोसा. चाहे नार्थ और या साउथ. नेताजी के चुनाव खर्चों में किसी मद पर अच्छे खासे पैसे खर्च होते हैं तो ये समोसा ही है. अगर हम आपसे कहें हर चुनावों में 30 से 35 करोड़ समोसे केवल चुनावी कैंपेन में मुंह में चले जाते हैं तो हैरान मत होइएगा.
चुनावों के दौरान हर शहर और कस्बे में कुछ दुकानों पर अचानक समोसे के आर्डर बढ़ जाते हैं, क्योंकि उन्हें नेताजी के चुनावी कैंपेन में लगे नेताओं और कार्यकर्ताओं को सुबह शाम समोसे की डिलिवरी करनी होती है. पिछले चुनावों में खड़े हुए एक राष्ट्रीय प्रत्याशी ने बातचीत में बताया, कैसे हर दिन पूरी संसदीय इलाके में जगह जगह चुनाव अभियान में लगे नेताओं और कार्यकर्ताओं को रोज करीब 5000 समोसों का इंतजाम करना पड़ता था, जो जिला स्तर के कई इलाकों से लेकर कस्बों और गांवों तक फैले थे.
किस मद में प्रत्याशी करते हैं ज्यादा खर्च
देश में एक प्रत्याशी का चुनाव प्रचार एक महीने तक करीब चलता है लेकिन ये चुनाव प्रचार आखिरी 20 दिनों में काफी गति पकड़ लेता है. हर जिले में लोकसभा चुनावों में मुख्य तौर पर मुकाबला तीन मुख्य पार्टियों के बीच ही ज्यादा देखा गया. इन्हीं पार्टियों के प्रत्याशियों का खर्च भी सबसे ज्यादा होता है. इनके मद में सबसे बड़े दो खर्च होते हैं.
एक खानपान और दूसरा पेट्रोल के मद में. देश में इस बार 543 में 542 सीटों के लिए वोट डाले गए जबकि सूरत में बीजेपी प्रत्याशी बिना चुनावों के विजयी घोषित किया गया. लोकसभा चुनावों में हर पार्टी प्रत्याशी की चुनाव खर्च सीमा 95 लाख रुपए होती है.चुनाव आयोग हर चुनाव में दो चीजों के रेट जरूर मुकम्मल तौर पर प्रत्याशियों के खर्च की लिस्ट में शामिल करता है. वो है चाय और समोसा.
क्या गणित समोसों को चट करने का
अगर हम ये मानें कि 542 सीटों पर मुख्य मुकाबला आमतौर पर तीन पार्टी प्रत्याशियों के बीच है और ये पैसे खर्च करते हैं तो एक जिले में एक दिन में ये नेताजी रोज 15000 समोसे चुनाव अभियान के लिए खरीदते हैं तो इनका कैंपेन पूरी ताकत के साथ 20 दिन भी चला तो तीन लाख समोसे गप कर लिये गये. देशभर में इस तरह कम से कम 20 दिनों के चुनावी अभियान में 16 करोड़ 26 लाख समोसे. यानि करीब 162 करोड़ रुपए के समोसे. चुनाव आयोग ने समोसे का रेट कहीं शहरों में 10 रुपया तय किया है तो कहीं 7.50 रुपया.
हालांकि इस बार देशभर में लोकसभा चुनावों में 8360 प्रत्याशी मैदान में हैं. वर्ष 2019 में 8039 उम्मीवारों ने चुनाव लड़ा. हमने अपनी गिनती में आमतौर पर इन्हें उस तरह नहीं गिना है लेकिन इतना तो मान ही लेते हैं कि ये भी कुछ खानपान तो करते ही होंगे.
रोज देश में कितने समोसों की खपत
तो अब क्या कहेंगे चुनाव में असल में हिट तो अपना ये समोसा ही है. बेंगुलुरु में स्नैक्सफैक्स के सीईओ और फाउंडर ने अपने लिंक्डइन पोस्ट में लिखा, आंकड़े ये कहते हैं देश में रोज 600 लाख यानि 06 करोड़ समोसों की खपत होती है. भारत में ये 20,000 करोड़ का व्यवसाय है, जो हर साल 15-20 फीसदी की दर से बढ़ रहा है.
खाने पीने के बाजार में सबसे बड़ा हिस्सा समोसे का है. बेंगुलुर में पिछले दो तीन सालों में समोसे को लेकर दो स्टार्टअप खुले – समोसा सिंह और समोसा पार्टी. दोनों स्टार्टअप को अच्छी फंडिंग मिली. दोनों अच्छे चल रहे हैं.
विदेशी व्यापारी इसे यहां लेकर आए थे
समोसा ऐसा व्यंजन भी है, जो सदियों पुराना है. कभी मध्य एशिया से आने वाले व्यापारियों और यात्रियों ने इसका प्रचलन भारत में शुरू किया. वो इसको साथ लेकर आए. मुगल दरबार में ये खानपान की सबसे पसंदीदा चीज बनकर उभरा. जब 17वीं सदी में पुर्तगाली आलू लेकर भारत आए तो फिर समोसे में आलू ऐसा हिट हुआ कि अब समोसे का मतलब ही आलू स्टफ भरा व्यंजन हो गया.
इब्ने बबूता ने इसको तुगकल के दरबार में 14वीं सदी में देखा
14वीं सदी में भारत आए यूरोपीय यात्री इब्न बबूता ने लिखा, जब मैं भारत आया तो मुहम्मद तुगलक के दरबार में मैने संबुसक (यानि समोसा) को सबसे पसंदीदा पाया. दरबार में बादशाह से लेकर दरबारी तक इस पर शौक फरमाते. ये समोसा मटन कीमा, बादाम, पिश्ता, प्याज, मसालों के मिश्रण को मिलाकर फ्राइ करके बनाया जाता था. फिर इसे आटे के तिकोने लिफाफे में भरकर घी में डीप फ्राई किया जाता था. कहना नहीं होगा कि इब्न बबूता भी इस समोसे का कद्रदान हो गया.
मुगल दरबार का पसंदीदा व्यंजन
अकबर के दरबार में उनके खास रहे अमीर खुसरो ने बताया कि किस तरह तब दिल्ली के राजसी सत्ता से जुड़े खास लोग समोसे को काफी पसंद करते थे. तब भी समोसे को संबुसक या संबुसका ही बोला जाता था. अबुल फजल ने भी आइन ए अकबरी में बताया कि ये मुगल दरबार के खास पसंदीदा व्यंजनों में था.
अब भारत का ज्यादा है
10वीं सदी के आसपास मध्य एशिया से निकला समोसा अब भारत का ज्यादा है. अपने देश में तो इसके बगैर जीवन ही अधूरा है. इसकी गजब की लोकप्रियता के चलते ही अब हर साल 05 सितंबर को वर्ल्ड समोसा डे मनाया जाता है. कई सालों से दुनियाभर में इस दिन को मनाकर समोसा की जयजयकार की जाती है. इस दिन समोसा पार्टियां होती हैं, लोग समोसा बनाते हैं और कुछ लोग समोसा बनाना सीखते भी हैं.
फूड हिस्टोरियन कहते हैं कि कैसे पहले जब मध्य एशिया से व्यापारी या यात्री आते थे तो वो ये समोसा रखकर लाते थे. इसे तब वो आग पर भून लिया करते थे. इसको डीप फ्राइ करने का चलन तो बाद में शुरू हुआ.
समोसे के कितने नाम
दुनिया में जितनी लंबी यात्रा समोसे ने की, उतनी शायद ही किसी और व्यंजन ने की हो. जिस तरह इसने खुद को तरह-तरह के स्वाद से जोड़ा, वो भी शायद किसी और डिश के साथ हुआ हो. इसे कई नामों से जाना जाता है. कई सदी पहले की किताबों और दस्तावेजों में इसका जिक्र संबोस्का, संबूसा, संबोसाज के तौर पर हुआ. अब भी इसके कई तरह के नाम हैं, मसलन-सिंघाड़ा, संबसा, चमुका, संबूसाज और न जाने क्या क्या. ये सभी नाम फारसी शब्दावली से आए.
एशिया में समोसा साम्राज्य कैसे फैला
एशिया में “समोसा साम्राज्य” ईरान से फैलना शुरू हुआ. वहां इसका जिक्र दसवीं शताब्दी में लिखी किताबों में हुआ है. ईरानी इतिहासकार अबोलफाजी बेहाकी ने “तारीख ए बेहाकी” में इसका जिक्र किया. हालांकि इसके कुछ और साल पहले पर्सियन कवि इशाक अल मावसिलीकी ने इस पर कविता लिख डाली थी. माना जाता है कि समोसे का जन्म मिस्र में हुआ. वहां से ये लीबिया पहुंचा. फिर मध्य पूर्व. ईरान में ये 16वीं सदी तक बहुत लोकप्रिय था, लेकिन फिर सिमटता चला गया.
Tags: 2024 Lok Sabha Elections, 2024 Loksabha Election, Food, Food businessFIRST PUBLISHED : June 3, 2024, 19:08 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed