पहाड़ से निकलने वाले पानी पर ही निर्भर है आदिवासी समाज का यह गांव नल-जल योजना नदारद
पहाड़ से निकलने वाले पानी पर ही निर्भर है आदिवासी समाज का यह गांव नल-जल योजना नदारद
Jamui News: ग्रामीण महिला बड़की मुर्मू का कहना है कि 30 साल पहले उनकी शादी इस गांव में हुई थी. वह तब से हर दिन पहाड़ के नीचे आकर पानी भर रही हैं. मंजू देवी की मानें तो यहां एक बार पानी भरने में दो से ढाई घंटे तक का समय गुजर जाता है. मतलब हर दिन लगभग छह से सात घंटा खोखुआ पहाड़ के नीचे आकर पानी भरने में बीत जाता है.
जमुई. आजादी के कई दशक गुजर जाने के बाद भी जमुई जिले के बरहट प्रखंड के एक गांव के सैकड़ों लोग पानी के लिए घंटों तक जद्दोजहद करते हैं. आदिवासी बहुल भट्टा गांव के लोग पहाड़ से निकलने वाले एक छोटे से झरना या फिर नाला पर ही पानी के लिए निर्भर हैं. घर से तकरीबन 2 किलोमीटर की दूरी तय कर यहां की महिलाएं पहाड़ से निकलने वाले झरना से पानी भरने जाती हैं. इसमें उनका घंटों का वक्त जाता है. यहां अब तक न तो नल-जल योजना पहुंची है और न ही हैंडपंप की ही सुविधा है. आदिवासी लोगों का कहना है कि इनके पूर्वज भी यहीं से पानी भरते थे. पेयजल के लिए पहाड़ से निकलने वाले पानी पर ही निर्भर हैं.
बरहट प्रखंड के पाड़ो पंचायत के भट्टा गांव में सिर्फ आदिवासी परिवार ही रहते हैं. उनके घरों तक अभी सरकार का हर घर नल का जल नहीं पहुंचा है. गांव में सरकारी चापाकल है, जो वर्षों से खराब पड़े हैं. सरकारी चापाकल लगाने वाले अभी तक मरम्मत ही नहीं करा सके हैं. गनीमत है कि गांव के बगल में खोखुआ पहाड़ से निकलने वाला छोटा से झरना जीवित है. उसी से इस गांव के लोगों की प्यास बुझ रही है. पहाड़ से सालों भर पानी गिरता है. यहां तक की जहां भीषण गर्मी से जलस्तर कम होने से आसपास गांव के जल स्रोत सूख जाते हैं, तब भी इस पहाड़ से पानी गिरता रहता है. गांव वालों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है.
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लंबी-लंबी कतारें
इस झरने के पास सुबह, दोपहर और शाम को महिलाओं एवं युवतियों की भीड़ रहती है. लोग कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं और फिर पहाड़ से निकलने वाले पानी को बर्तन में भरकर अपने माथे पर लेकर तकरीबन 2 किलोमीटर की दूरी तय कर अपने घर पहुंचती हैं. भट्टा गांव के लालजीत सोरेन का कहना है कि उनके बाप-दादा के समय भी यहीं से घर पर पानी जाता था. आज के दिन हमलोग भी यहीं से पानी ले जा रहे हैं.
क्या कहती हैं महिलाएं?
इसी गांव की महिला बड़की मुर्मू का कहना है कि 30 साल पहले उनकी शादी इस गांव में हुई थी. वह तब से हर दिन पहाड़ के नीचे आकर पानी भर रही हैं. मंजू देवी की मानें तो यहां एक बार पानी भरने में दो से ढाई घंटे तक का समय गुजर जाता है. मतलब हर दिन लगभग छह से सात घंटा खोखुआ पहाड़ के नीचे आकर पानी भरने में बीत जाता है. इस मामले में बरहट के प्रखंड विकास पदाधिकारी चंदन कुमार ने बताया कि यह मामला उनके संज्ञान में आया है. पीएचईडी विभाग को निर्देशित किया गया है, जल्द से जल्द वहां पर डीप बोरिंग करा कर ग्रामीणों को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराया जाएगा.
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Tags: Bihar News, Jamui newsFIRST PUBLISHED : August 27, 2022, 14:51 IST