इस खास विधि से खेती कर किसान बन गया मालामाल कम लागत में कमा रहा लाखों

इंटर क्रॉपिंग फार्मिंग तकनीक मिश्रित खेती से अलग है. इस तकनीक में दो खेती इसलिए किया जाता है ताकि अगर एक फसल खराब हो जाए तो दूसरी फसल का उत्पादन बरकरार रहे.

इस खास विधि से खेती कर किसान बन गया मालामाल कम लागत में कमा रहा लाखों
संजय यादव / बाराबंकी: किसान अब इंटर क्रॉपिंग फार्मिंग के जरिये एक साथ कई फसलें उगा सकता है. यह एक पारंपरिक कृषि प्रणाली है, जिसमें एक ही जमीन पर एक ही खेत में दो या दो से अधिक फसलों की खेती एक साथ की जा सकती है. इंटर क्रॉपिंग फार्मिंग तकनीक मिश्रित खेती से अलग है. इस तकनीक में दो खेती इसलिए किया जाता है ताकि अगर एक फसल खराब हो जाए तो दूसरी फसल का उत्पादन बरकरार रहे. दूसरी साथ में उगाई गई फसल को सहयोगी फसल कही जाती है. इंटर क्रॉपिंग फार्मिंग के काफी फायदे हैं, वहीं इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसानों को अपनी लाभ और मुनाफे के लिए किसी भी सीजन का इंतजार नहीं करना पड़ता है. इस तकनीक का इस्तेमाल कर किसान सालभर बढ़िया मुनाफा भी कमा सकते हैं. जिले का  एक ऐसा किसान है जो इंटरक्रॉपिंग के जरिये तरबूज, अमरुद व खरबूजे की खेती कर रहे हैं. इस खेती से उन्हें लागत के हिसाब से अच्छा मुनाफा भी हो रहा है. जिसके लिए वह कई सालों से इसकी खेती करके लाखों रुपए मुनाफा कमा रहे हैं. जनपद बाराबंकी के महन्दाबाद गांव के रहने वाले किसान चंदन ने एक बीघे में इंटरक्रॉपिंग विधि से अमरूद, खरबूजा, तरबूज की खेती की शुरुआत की थी, जिसमें उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ. वह करीब 6 बीघे में तरबूज, अमरूद, मिर्च, खरबूजे की खेती कर रहे हैं. इस खेती से लगभग उन्हें 4 से 5 लाख रुपए मुनाफा प्रतिवर्ष हो रहा है. इंटरक्रॉपिंग फार्मिंग के जरिए खेती करने वाले किसान चंदन ने बताया है कि करीब हम 6 बीघे जमीन पर इंटरक्रॉपिंग के जरिए अमरूद के साथ तरबूज, खरबूजे की खेती कर रहे हैं.  ताइवान पिंक अमरुद में जो जगह बच जाती है, उसी में हमने तरबूज, खरबूजा, मिर्च लगाई थी. इस समय हमारा तरबूज-खरबूजा निकल रहा है और बाजार में इस समय अच्छे रेट में जा रहा है. इस खेती में लागत करीब एक बीघे में 15 हजार रुपए आती है और मुनाफा करीब 4 से 5 लाख रुपए तक आराम से हो जाता है. इसकी खेती करना बहुत ही आसान है. अमरूद के बीच में खाली पड़ी जमीन को पहले हम खेत की 2 से 3 बार जुताई करते हैं. उसके बाद पूरे खेत में बेड बनाते हैं फिर पन्नी के जरिए बेड को ढक देते हैं, फिर उसमें थोड़ी-थोड़ी दूर पर छेद करके बीज की बुवाई कर देते हैं. फिर जब पेड़ थोड़ा बड़ा होने लगता है तब इसकी सिंचाई करते हैं. उसके बाद इसमें कीटनाशक दवाइयां व खाद का छिड़काव करते हैं. जिससे पौधा जल्दी तैयार हो. वहीं महज 55 से 60 दिनों के बाद फसल निकालनी शुरू हो जाती है और इसे हर दिन तोड़कर बाजारों में बेचा जा सकता है. यह फसल करीब दो महीने तक चलती है. ये खेती कम लागत में अच्छा लाभ देने वाली फसल है. . Tags: Hindi news, Local18FIRST PUBLISHED : May 2, 2024, 15:33 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed