क्यों इतना महंगा होता है इत्र क्या है बनाने का तरीका
क्यों इतना महंगा होता है इत्र क्या है बनाने का तरीका
भारत देश में इत्र का इतना बड़ा कारोबार होता है कि यहां का इत्र देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सप्लाई होता है. उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले को इत्र की नगरी कहा जाता है. कन्नौज के बारे में तो कहा जाता है कि यहां की हवाएं अपने साथ खुशबू लिए चलती हैं....
अंजली शर्मा/कन्नौज: शादी-विवाह से लेकर पूजा-पाठ और अन्य अवसरों पर इत्र का काफी इस्तेमाल होता है. परफ्यूम और डियो के दौर में इसका क्रेज भले ही कुछ कम हुआ है, लेकिन काफी सारे लोग अभी भी रोजाना इत्र का इस्तेमाल करते हैं. हाल के वर्षों में फ्रेगरेंस से जुड़े कई प्रोडक्ट्स में भी इत्र का इस्तेमाल बढ़ा है. तो आज हम आपको इसी इत्र से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां बताने जा रहे हैं. यह भी बताएंगे कि इत्र कितने तरह के होते हैं, कैसे बनते हैं, इनकी कीमत क्या होती है और कहां के इत्र सबसे ज्यादा फेमस हैं.
कैसे है बनता?
तो शुरुआत करते हैं कि इत्र के बनने की प्रक्रिया से कि आखिर ये बनता कैसे है. इत्र गुलाब, बेला, चमेली जैसे अलग-अलग फूलों से बनता है. इसको बनाने के लिए किसान इत्र व्यापारियों के पास अपना फूल लेकर पहुंचते हैं और उन्हीं फूलों से इत्र तैयार होता है. इत्र के कारोबारी पहले फूल की सफाई करते हैं और और इसे पानी के साथ डेग में मिलाते हैं. इसे मानक के अनुसार तेज आंच पर रखा जाता है. इत्र बनाने के लिए परफ्यूम या डियो की तरह कभी कोई गैस इस्तेमाल नहीं की जाती. इत्र वाले फूलों का रस निकालने के लिए उसे गोबर के कंडे और लकड़ी के ईंधन से पकाया जाता है. करीब एक से डेढ़ महीने के अंतराल में कई क्विंटल फूल पकाने के बाद 10 से 20 ग्राम रूह बन पाती है. इस तरह से इत्र को तैयार करने की विधि को डेग भभका पद्धति कहते हैं. इसी वजह से इत्र की कीमत लाखों रुपए तक पहुंचती है.
इत्र के लिए प्रसिद्ध है कन्नौज
पूरे देश में उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में इत्र का सबसे बड़ा कारोबार होता है. यहां का इत्र देश ही नहीं विदेशों में भी सप्लाई होता है. इसीलिए कन्नौज को इत्र नगरी भी कहा जाता है. कन्नौज इत्र की खुशबू के लिए दुनियाभर में मशहूर है. कहा जाता है कि कन्नौज की हवाएं अपने साथ खुशबू लिए चलती हैं.
कन्नौज में 300 से अधिक हैं इत्र बनाने की यूनिट
कन्नौज में इत्र कारोबार की करीब 300 से अधिक यूनिट मौजूद हैं. इनमें ज्यादातर में बड़े पैमाने पर इत्र बनाया जाता है. इत्र बनाने के लिए यहां कई शहरों से फूल और लकड़ियां मंगाई जाती हैं. यहां के इत्र व्यापारी गर्मियों के मौसम बड़े पैमाने पर एक सदाबहार इत्र तैयार करते हैं जो कि बेला का इत्र होता है. दरअसल, बेला का फूल अप्रैल से शुरू होकर जून तक चलता है. इस इत्र की डिमांड देश और विदेश में रहती है.
एक कुंटल में कितनी रूह है निकलती
बेला फूल की रूह को बनाने के लिए सबसे ज्यादा कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. इसके लिए एक बार डेग में 30 किलो से लेकर 50 किलो तक फूल भर दिया जाता है और लगातार फूल भरने की प्रक्रिया चलती रहती है. इत्र व्यापारी बताते हैं कि करीब एक कुंटल बेला के फूल में मात्र 10 से 15 ग्राम रूह तैयार होती है.
क्या होती कीमत
बेला इत्र और रूह की कीमत की बात की जाए तो बेला का इत्र ₹2000 किलो से शुरू होता है और इसके रूह की कीमत 10 लाख रुपए किलो तक पहुंच जाती है. इसकी कीमत ग्राहकों की डिमांड के आधार पर भी निर्धारित होती है.
इत्र व्यापारी विपिन दीक्षित बताते हैं कि हमारे यहां कन्नौज में हजारों साल से इत्र बनाने का काम किया जा रहा है. विपिन ने अपनी फैक्ट्री के बारे में बताया कि उनकी फैक्ट्री 100 साल से ज्यादा पुरानी है. वह अपनी फैक्ट्री में सभी प्रकार का इत्र बनाते हैं. हालांकि, इस सीजन में उनकी फैक्ट्री में भी बेला इत्र की मार है.
उन्होंने बताया कि वो किसानों से बेला का फूल खरीदते हैं और फिर प्रोसेसिंग करके उसको इत्र और रूह में तैयार करते हैं. कन्नौज में बनने वाला बेला का इत्र सबसे शुद्ध होता है. इसके पीछे की वजह यह है कि यहां जिस पद्धति से इत्र व्यापारी इत्र बनाते हैं उस तरह से और उतना शुद्ध बेला इत्र कहीं और नहीं बनाया जाता है.
Tags: Local18FIRST PUBLISHED : May 15, 2024, 16:46 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed