रिपोर्ट: हिमांशु जोशी
पिथौरागढ़. उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में इन दिनों शरदोत्सव की धूम मची हुई है. इस दौरान लोग बड़ी संख्या में देव सिंह मैदान में लगे शरदोत्सव मेले में खरीदारी के लिए उमड़ रहे हैं. एक समय था जब स्थानीय उत्पादकों को सालभर इस मेले का इंतजार रहता था और वे यहां अपने स्टॉल लगाकर अच्छी आमदनी कर लिया करते थे, लेकिन बदलते दौर में उनका काम प्रभावित हुआ है. उनमें से एक है भेड़ के ऊन से बने कपड़ों की दुकान. एक समय में खरीदारों की पहली पसंद होने वाले इन कपड़ों को अब खरीदार ही नहीं मिल पा रहे हैं. इसकी एक वजह है बाजार में कम दाम में मिल रहे रेडीमेड कपड़े.
दरअसल भेड़ से ऊन निकालकर कपड़े बनाने में लागत अधिक आती है, जिसकी वजह से यह कपड़े रेडीमेड कपड़ों की तुलना में अधिक महंगे होते हैं. हालांकि हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में भी इन कपड़ों की गर्मी का कोई जवाब नहीं है.
पिथौरागढ़ जिले की एक ऐसी ही स्थानीय उत्पादक हैं पार्वती खंपा, जो लगभग 50 सालों से भेड़ के ऊन कपड़े बनाने का काम कर रही हैं. पार्वती राज्य स्तर के कई पुरस्कार भी प्राप्त कर चुकी हैं. उनका कहना है कि वह तिब्बत से शुद्ध ऊन मंगाकर चुटका (गर्म कंबल), थोलमा, पंखी आदि चीजें बनाती हैं, लेकिन तिब्बत के बंद होने से अब विदेश और स्थानीय भेड़पालकों से वह ऊन खरीद रही हैं, जो उन्हें महंगी मिलती है और महंगा होने के कारण खरीदार भी कम मिल रहे हैं.
पार्वती खंपा ने कहा कि वह 150 महिलाओं को इसका प्रशिक्षण दे चुकी हैं, जो ऊन से इन गर्म कपड़ों को बना रही हैं. साथ ही उनका कहना है कि अब नई पीढ़ी को इसमें कोई रुचि नहीं है और पुराने लोग जो इस विधा को जानते हैं, वह भी धीरे-धीरे कम हो रहे हैं, जिससे आने वाले कुछ सालों में इस विधा के लुप्त होने का खतरा भी है.
गौरतलब है कि जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोग वर्षों से इस काम को करते आ रहे हैं. एक दौर था जब देश ही नहीं दुनिया के कई इलाकों में इन कपड़ों की भारी डिमांड होती थी, लेकिन समय के साथ-साथ अब लोग इनको कम पसंद करने लगे हैं. हालांकि जानकार लोग अभी भी इन कपड़ों को खरीदते हैं.
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Tags: Pithoragarh news, Uttarakhand newsFIRST PUBLISHED : November 17, 2022, 11:17 IST