Diwali 2022: प्लास्टिक के स्टीकरों में सिमटती उत्तराखंड की लोक कला ऐंपण युवा नहीं ले रहे दिलचस्पी

Diwali 2022: कुमाऊं में ऐंपण को विवाह, जनेऊ संस्कार, तीज-त्योहार के अलावा अन्य मांगलिक कार्यों में बनाने का रिवाज सदियों से चला आ रहा है, लेकिन गेरू-बिस्वार हो या फिर लाल-सफेद पेंट, ऐंपण बनाने में लगने वाला समय आज की युवा पीढ़ी पर भारी पड़ रहा है. इस वजह से वे दिवाली पर प्लास्टिक के स्टीकरों को दहलीज, मंदिरों में चिपकाकर अपना वक्‍त बचाने में यकीन रखते हैं.

Diwali 2022: प्लास्टिक के स्टीकरों में सिमटती उत्तराखंड की लोक कला ऐंपण युवा नहीं ले रहे दिलचस्पी
रिपोर्ट- रोहित भट्ट अल्मोड़ा. दिवाली  (Diwali 2022) का त्योहार नजदीक है. वहीं, दिवाली से करीब एक महीने पहले से ही लोग अपने घरों की साफ-सफाई में लग लग जाते हैं. इसके अलावा अधिकांश घरों में पेंट, साज-सजावट आदि शुरू हो जाती है. जबकि त्योहार के मौके पर उत्तराखंड की लोक कला ऐंपण को घरों की दहलीज और मंदिर में बनाने का चलन सदियों पुराना है. कुमाऊं में ऐंपण को विवाह, जनेऊ संस्कार, तीज-त्योहार के अलावा अन्य मांगलिक कार्यों में बनाने का रिवाज सदियों से चला आ रहा है. कभी गेरू और बिस्वार से ऐंपण को बनाया जाता था, फिर लाल और सफेद पेंट ने इसकी जगह ली. हालांकि अब इसे बनाने का चलन ही खत्म होता जा रहा है. दरअसल अब प्लास्टिक के ऐंपण स्टीकरों ने इसकी जगह ले ली है. आज के समय में गिने-चुने लोग ही गेरू और बिस्वार से ऐंपण बनाते हैं. अब बाजारों में ऐंपण वाले प्लास्टिक स्टीकर आने से लोग इस लोक कला को बनाने का हुनर त्याग रहे हैं. पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के दरमियान जो फासला है, उसकी वजह से उत्तराखंड की संस्कृति की पहचान से जुड़ी निशानियां धुंधली पड़ती जा रही हैं. दरअसल गेरू-बिस्वार हो या फिर लाल-सफेद पेंट, ऐंपण बनाने में लगने वाला समय आज की युवा पीढ़ी पर भारी पड़ रहा है. समय की कीमत की बात करने वाले युवा अब ऐंपण बनाने में घंटों नहीं लगाना चाहते, वे तो प्लास्टिक के स्टीकरों को दहलीज, मंदिरों में चिपकाकर अपना वक्‍त बचाने में यकीन रखते हैं. दुकानदार गिरीश धवन ने बताया कि धीरे-धीरे ऐंपण का समय बदला है. पहले के लोग गेरू और बिस्वार से ऐंपण बनाते थे. समय बदला और फिर लोग इसे सफेद और लाल पेंट से बनाने लगे और अब इस आधुनिक युग में लोग अपना समय बचाने के लिए बाजार में आने वाले ऐंपण के स्टीकर खरीद रहे हैं और अपने घरों में लगा रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस बार काफी संख्या में लोग ऐंपण वाले स्टीकर खरीद रहे हैं. देवी लक्ष्मी के पैर (ऐंपण स्टीकर) 10 से 20 रुपये के सेट में बिक रहे हैं, तो वहीं दहलीज का ऐंपण और लक्ष्मी चौकी का स्टीकर 50 से 100 रुपये के बीच बिक रहा है. स्थानीय निवासी कृतिका भट्ट ने बताया कि दीपावली के एक महीने पहले से ही घरों में ऐंपण बनाने का काम शुरू हो जाता है. पहले गेरू और बिस्वार से इसे बनाया जाता था, पर अब धीरे-धीरे युवा पीढ़ी इन्हें बनाना भूलते जा रही है. इस समय लोग अपना समय बचाने के लिए दीवाली से एक दिन पहले ऐंपण वाले स्टीकरों को अपने-अपने घरों में लगा रहे हैं. यह आसान जरूर है लेकिन इसका खामियाजा युवा पीढ़ी को भविष्य में लोक कला की विलुप्ति की कीमत देकर चुकाना पड़ेगा. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी| Tags: Almora News, Diwali, Uttarakhand newsFIRST PUBLISHED : October 21, 2022, 18:03 IST