Guru Purnima 2024: आखिर क्या है गुरु दीक्षा यह किसे और कौन दे सकता है

Guru Purnima 2024: भगवान द्वारकाधीश मंदिर में कार्यरत और ज्योतिष अजय तैलंग ने गुरु का महत्व समझाते हुए बताया कि हमारा जीवन गुरु के बिना अधूरा है. गुरु ही हमें अंधकार से मुक्ति दिलाते हैं. हमारे जीवन में जो अंधकार है, उसे गुरु ही दूर कर सकते हैं. इसलिए हमारा जीवन गुरु के बिना किसी भी कार्य को करने में सक्षम नहीं हो पता. गुरु और शिष्य की परंपरा सदियों से चली आ रही है.

Guru Purnima 2024: आखिर क्या है गुरु दीक्षा यह किसे और कौन दे सकता है
निर्मल कुमार राजपूत /मथुरा: भारत देश सदियों से ही गुरु- शिष्य की परंपरा को निभाता चला आ रहा है. ज्ञान के बदले शिष्य गुरु को दक्षिणा के रूप में कुछ न कुछ जरूर देते हैं. जैसे एकलव्य ने अपने गुरु को दक्षिणा में अपना अंगूठा दिया था. यह परंपरा हमारे देश में आज भी बरकरार बनी हुई है. आइए जानते हैं कि गुरु दीक्षा क्या है और गुरु का हमारे जीवन में क्या महत्व है. भगवान द्वारकाधीश मंदिर में कार्यरत और ज्योतिष अजय तैलंग ने गुरु का महत्व समझाते हुए बताया कि हमारा जीवन गुरु के बिना अधूरा है. गुरु ही हमें अंधकार से मुक्ति दिलाते हैं. हमारे जीवन में जो अंधकार है, उसे गुरु ही दूर कर सकते हैं. इसलिए हमारा जीवन गुरु के बिना किसी भी कार्य को करने में सक्षम नहीं हो पता. गुरु और शिष्य की परंपरा सदियों से चली आ रही है. गुरु का जीवन में महत्व दीक्षा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है. दीक्षा का अर्थ विस्तार या कुशल है. दीक्षा शब्द को समर्पण की संख्या भी दी गई है. अजय बताते हैं कि गुरु और शिष्य के बीच आत्मा का मिलन होता है. तब गुरु अपने शिष्य को दीक्षा देता है. दीक्षा लेने के बाद गुरु और शिष्य का उत्तरदायित्व और भी अधिक बढ़ जाता है. इसके अलावा शिष्य के बीच आने वाली सभी बधाओं को दूर कर उसे आध्यात्मिक की ओर बढ़ाते हैं. क्या है गुरु दीक्षा? ज्योतिषी अजय बताते हैं कि गुरु दीक्षा जब ली जाती है, जब हमारा मन पूरी तरह से साफ हो. हमारे जीवन में अच्छा बुरा सोचने की समझ आ गई हो, तब गुरु दीक्षा लेनी चाहिए. किसी व्यक्ति को ग्रस्त जीवन में प्रवेश करने के बाद ही गुरु दीक्षा दी जाती है. उन्होंने आगे बताया कि गुरु दीक्षा के भी कई अलग-अलग पहलू होते हैं. शिव पुराण में भगवान शिव माता पार्वती को योग्य शिष्य को दीक्षा देने के महत्व को इस प्रकार समझाते हैं- हे वरानने, आज्ञा हीन, क्रिया हीन, श्रद्धाहीन तथा विधि के पालनार्थ दक्षिणाहीन, जो जप किया जाता है वह निष्फल होता है. इस वाक्य से गुरु दीक्षा का महत्व स्थापित होता है. दीक्षा के उपरान्त गुरु और शिष्य एक दूसरे के पाप और पुण्य कर्मों के भागी बन जाते हैं. शास्त्रों के अनुसार गुरु और शिष्य एक दूसरे के सभी कर्मों के छठे हिस्से के फल के भागीदार बन जाते हैं. यही कारण है कि दीक्षा सोच समझकर ही दी जाती है. Tags: Dharma Aastha, Guru Purnima, Local18, Mathura newsFIRST PUBLISHED : July 18, 2024, 10:08 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ेंDisclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.
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