पप्पू वाले इमैज से काफी आगे निकले राहुल गांधी हरियाणा चुनाव से है खास कनेक्शन
पप्पू वाले इमैज से काफी आगे निकले राहुल गांधी हरियाणा चुनाव से है खास कनेक्शन
Haryana Election: बीते 10 वर्षों के राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो आप पाएंगे कि ऐसा पहली बार हो रहा है जब कांग्रेस पार्टी के भीतर राहुल गांधी की बातों को इतनी गंभीरता से ली जा रही है.
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी अब वो राहुल गांधी नहीं हैं. इनके बारे में लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष के साथ उनकी पार्टी का एक धड़ा बेहद हल्की राय रखता था. बीते करीब 10 साल की राजनीति पर नजर दौड़ाएं तो आप पाएंगे कि मीडिया और विपक्ष लगातार राहुल गांधी की छवि पप्पू वाली बनाने में लगा रहा. लेकिन, उनके पार्टी के नेता भी कम नहीं थे. राहुल गांधी की पप्पू वाली छवि बनाने में कांग्रेस के एक बड़े धड़े की भूमिका भी अहम रही. वे ऑफ रिकॉर्ड उनके खिलाफ खबरे प्लांट करवाते थे. उनकी एक ऐसी छवि गढ़ी गई कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी लगातार कमजोर होती गई.
तथ्यों के जरिए भी इसमें एक सच्चाई दिखाने की कोशिश हुई. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों और राज्यों में हुए तमाम विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बुरी तरह हारती रही. लेकिन, लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने अपनी छवि दुरुस्त करने के लिए भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ा न्याय यात्रा की. इन दो यात्राओं से सोशल मीडिया के जरिए जनता के एक वर्ग में राहुल काफी हद तक अपनी छवि दुरुस्त करने में कामयाब रहे. लेकिन, बावजूद इसके उनकी पार्टी के भीतर दिग्गज कांग्रेसी उनको कोई भाव नहीं दे रहे थे.
कमलनाथ ने राहुल को नहीं दिया भाव
इसका सबसे उचित उदाहरण बीते साल मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में देखने को मिला. मध्य प्रदेश में पूरी कांग्रेस पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के आगे सरेंडर कर दिया. कमलनाथ ने उस चुनाव में पूरी तरह केंद्रीय नेतृत्व की अनदेखी की. उन्होंने सहयोगी दलों के साथ गठबंधन से इनकार कर दिया. उन्होंने मध्य प्रदेश चुनाव में सपा के मुखिया अखिलेश यादव के साथ गठबंधन के सवाल की खिल्ली उड़ाई थी और कहा था कि कौन अखिलेश-ओखिलेश.
इसी तरह राजस्थान में भी अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने राहुल गांधी को कोई भाव नहीं दिया. उन्होंने गांधी परिवार की तमाम कोशिशों के बावजूद ऐन मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया. उस वक्त राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा कर रहे थे. इसको लेकर मीडिया में कांग्रेस पार्टी की बड़ी फजीहत हुई. राजस्थान चुनाव में भी पूरी तरह से अशोक गहलोत का सिस्का चला और चुनाव में कांग्रेस हार गई.
लोकसभा के नतीजों से मिली मजबूती
लेकिन, बीते लोकसभा चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व खासकर राहुल गांधी को काफी मजबूती प्रदान की. बीते चुनाव में कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के साथ अच्छा तालमेल बिठाया और खुद की सीटों की संख्या करीब-करीब दोगुनी कर ली. 99 सीटों के साथ कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल बनी और राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली इस सफलता के पीछे राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के जरिए बनी उनकी छवि और विपक्षी दलों के साथ बेहतर समन्वय को श्रेय दिया गया. कांग्रेस की मजबूती की वजह से ही पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा अपने दम पर बहुमत से चूक गई.
हरियाणा में राहुल का पावर
आज राहुल गांधी के पास पार्टी के भीतर इतनी राजनीतिक ताकत है कि वह अगर कुछ कहते हैं तो उसे पार्टी मानने को बाध्य हो रही है. वरना प्रदेशों में कांग्रेस के छत्रपों को आगे उनकी नहीं सुनी जाती थी. इसका सबसे ताजा उदाहरण हरियाणा है. हरियाणा में निर्विवाद रूप से कांग्रेस के सबसे बड़े नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा हैं. हालांकि वहां पार्टी तीन खेमों हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला में बंटी है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली सफलता के बाद प्रदेश नेतृत्व इस आत्मविश्वास में थी कि इस बार विधानसभा में निश्चित रूप से उसे बड़ी जीत मिलेगी. ऐसे में वह इंडिया गठबंधन के किसी दल के साथ कोई गठबंधन नहीं चाहती थी.
लेकिन, बीते दिनों राहुल गांधी ने प्रदेश नेतृत्व को सुझाव दिया कि वे गठबंधन की संभावना पर विचार करें. आज उनकी राजनीतिक ताकत का ही नतीजा है कि प्रदेश कांग्रेस अब आम आदमी पार्टी और सपा के साथ राज्य में सीटों के बंटवारे पर बातचीत करने लगी है. यह सब चंद दिनों के भीतर हुआ है. राहुल के सुझाव पर कांग्रेस के भीतर इतनी त्वरित कार्रवाई पर राजनीतिक पंडितों को भी भरोसा नहीं हो रहा है.
Tags: Congress, Haryana election 2024, Rahul gandhiFIRST PUBLISHED : September 4, 2024, 20:26 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed