इस गांव के हर घर में बसता है संगीत प्रसिद्ध ठुमरी गायक का है जन्मस्थली

संगीत का गुरुकुल कहे जाने वाले हरिहरपुर के हर घर से सुबह शाम निकलने वाली सारंगी, तबले की जुगलबंदी और सुरों के अलाप मंत्रमुग्द  कर देता है. इस गांव में काफी छोटी उम्र से ही बच्चे संगीत की अपनी पुरानी विरासत को आगे बढ़ाने में लगे हैं. हरिहरपुर का संगीत घराना 600 वर्ष से अधिक पुराना है और इस विरासत को संजाने का प्रयास जारी है.

इस गांव के हर घर में बसता है संगीत प्रसिद्ध ठुमरी गायक का है जन्मस्थली
आजमगढ़. यूपी के आजमगढ़ स्थित हरिहरपुर संगीत घराना बेहद खास है. यह आजमगढ़ की पहचान से जुड़ा हुआ है. ऋषियों की तपोभूमि कहे जाने वाले आजमगढ़ को हरिहरपुर घराने ने नई पहचान दिलाई है.  हरिहरपुर का संगीत घराना 600 वर्ष से अधिक पुराना है. इस गांव में संगीत अकादमी बनने के बाद इसे नई पहचान मिली है. संगीत का गुरुकुल कहे जाने वाले हरिहरपुर के हर घर से सुबह-शाम निकलने वाली सारंगी, तबले की जुगलबंदी और सुरों के अलाप मंत्रमुग्द कर देता है. संगीत अकादमकी की वजह से मिल रही है पहचान हरिहरपुर गांव में छोटी उम्र से ही बच्चे संगीत की अपनी पुरानी विरासत को आगे बढ़ाने में लगे हैं. हरिहरपुर संगीत घराने की यह खासियत है कि यहां संगीत की शिक्षा लेने के लिए हर जाति-धर्म के बच्चे आते हैं. हाल ही में प्रस्तावित संगीत महाविद्यालय बनने से यहां नए कलाकारों को भी शास्त्रीय संगीत, तबला वादन आदि कलाओं को सीखने का मौका मिलेगा. हरिहरपुर ने कई महान गायक, तबला और सारंगी वादक दिए हैं. उपेक्षा के कारण इस विधा का पतन हुआ, लेकिन इसके गौरव को पुनः प्राप्त करने के प्रयास जारी है. इंडियन ट्रस्ट फॉर रूरल हेरिटेज एंड डेवलपमेंट ने एक दशक पहले हरिहरपुर संगीत अकादमी की स्थापना की थी, जिसके बाद इस घराने में नई चमक उभरने लगी. प्रसिद्ध ठुमरी गायक का जन्मस्थली है हरिहरपुर 1936 में जन्मे प्रसिद्ध ठुमरी गायक पं. छन्नूलाल मिश्र का जन्म आजमगढ़ के हरिहरपुर में ही हुआ है. हालाकि पंडितजी की कर्मभूमि बनारस रही है, लेकिन हरिहरपुर संगीत घराने से उनका विशेष लगाव है. वे खयाल, ठुमरी, भजन, दादरा, कजरी और चैती गायकी के लिए देश भर में प्रसिद्ध हैं उन्हें वर्ष 2020 में पद्म विभूषण और 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. कजरी को संजोने का प्रयाज है जारी इस संगीत घराने ने लुप्त हो रही लोक विधा कजरी, चैता, फगुआ आदि को बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. हरिहरपुर में संगीत संस्थान के माध्यम से लगभग 25 वर्षों से हर वर्ष कजरी महोत्सव का आयोजन किया जाता है. यह महोत्सव अगस्त माह में धूमधाम से मनाया जाता है. इसके लिए पूरे घराने के लोग मिलकर अपनी विलुप्त हो रही कजरी को संजोने का प्रयास करते हैं. हरिहरपुर घराने के शंभूनाथ मिश्रा का कहना है कि अपनी परंपरा व पारंपरिक गीतों को भुलाते जा रहे हैं. सावन माह में कजरी की अलग पहचान है, लेकिन अब कहीं भी कजरी की धुन सुनाई नहीं पड़ती है. कभी कजरी की धुन इतनी लोकप्रिय थी कि शास्त्रीय संगीत के घरानों ने भी इसे अपना कर वाहवाही लूटी. Tags: Azamgarh news, Classical Music, Local18, UP newsFIRST PUBLISHED : September 10, 2024, 13:08 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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