2024 नजदीक विपक्ष खेमे में नहीं है सब ठीक: पटने की बजाय चौड़ी हो रही कांग्रेस-TMC के बीच की खाई
2024 नजदीक विपक्ष खेमे में नहीं है सब ठीक: पटने की बजाय चौड़ी हो रही कांग्रेस-TMC के बीच की खाई
विश्लेषकों का कहना है कि दो प्रमुख विपक्षी दलों के बीच सामंजस्य की कमी और तृणमूल कांग्रेस का उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर रहना, विपक्ष के लिए 2024 के संसदीय चुनावों की ओर बढ़ने के लिए अच्छा संकेत नहीं है और उनकी चुनावी संभावनाएं कमजोर पड़ रही हैं. कांग्रेस और टीएमसी को संयुक्त राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर सर्वसम्मति बनाने के लिए श्रेय लेने की होड़ करते देखा गया. उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान इन दोनों दलों के मतभेद खुले में आ गए.
नई दिल्लीः राष्ट्रपति और उपाध्यक्ष के चुनाव के लिए चुनाव भले ही खत्म हो गए हों, लेकिन विपक्षी दलों में कड़वाहट के बाद कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच फूट बनी रह सकती है. दोनों दलों की ओर से एक दूसरे पर ताने कसने की संभावना है. इन चुनावों में विपक्ष के उम्मीदवारों की हार अपेक्षित थी, लेकिन कई लोगों को आश्चर्य हुआ कि एकजुटता की लाख कोशिशों के बावजूद विपक्षी खेमे में गुटबाजी को उजागर कर दिया.
विश्लेषकों का कहना है कि दो प्रमुख विपक्षी दलों के बीच सामंजस्य की कमी और तृणमूल कांग्रेस का उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर रहना, विपक्ष के लिए 2024 के संसदीय चुनावों की ओर बढ़ने के लिए अच्छा संकेत नहीं है और उनकी चुनावी संभावनाएं कमजोर पड़ रही हैं. कांग्रेस और टीएमसी को संयुक्त राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर सर्वसम्मति बनाने के लिए श्रेय लेने की होड़ करते देखा गया. उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान इन दोनों दलों के मतभेद खुले में आ गए.
उपराष्ट्रपति चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने नहीं की वोटिंग
कांग्रेस की दिग्गज नेता मार्गरेट अल्वा को विपक्ष ने सत्तारूढ़ एनडीए के जगदीप धनखड़ के खिलाफ उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मैदान में उतारा था. लेकिन ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने घोषणा की कि वह चुनाव से दूर रहेंगी क्योंकि उम्मीदवार पर फैसला करने से पहले उसके साथ कोई उचित परामर्श नहीं हुआ था. इसको लेकर मार्गरेट अल्वा की पहली प्रतिक्रिया भी काफी कठोर थी. उन्होंने कहा कि यह अहंकार या क्रोध दिखाने का नहीं है, बल्कि साहस, नेतृत्व और एकजुटता प्रदर्शित करने का समय है.
हालांकि, वह उम्मीद जताती रहीं कि ममता बनर्जी उनके साथ आएंगी और उनका समर्थन करेंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उपराष्ट्रपति चुनाव में मार्गरेट अल्वा की बड़ी हार के साथ, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश सार्वजनिक रूप से टीएमसी के स्टैंड को लेकर अपनी निराशा प्रकट करने में पीछे नहीं रहे. जयराम रमेश ने ट्विटर पर कहा कि मार्गरेट अल्वा ने एक उत्साही अभियान चलाया और यह बहुत बुरा था कि टीएमसी ने उनका समर्थन नहीं किया.भारत को अपनी पहली महिला उपराष्ट्रपति के लिए इंतजार करना होगा.
मार्गरेट अल्वा ने अपरोक्ष रूप से टीएमसी पर कसा तंज
मार्गरेट अल्वा ने खुद टीएमसी पर परोक्ष रूप से तंज कसते हुए कहा कि यह चुनाव विपक्ष के लिए एक साथ काम करने, अतीत को पीछे छोड़ने और आपस में विश्वास बनाने का अवसर था. दुर्भाग्य से, कुछ विपक्षी दलों ने एकजुट विपक्ष के विचार को पटरी से उतारने के प्रयास में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा का समर्थन करना चुना. मेरा मानना है कि ऐसा करके इन पार्टियों और उनके नेताओं ने अपनी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया है. हमारे संविधान की रक्षा करने, हमारे लोकतंत्र को मजबूत करने और संसद की गरिमा को बहाल करने की लड़ाई जारी रहेगी.
तृणमूल कांग्रेस नेता साकेत गोखले ने एक टीवी चैनल से कहा कि पश्चिम बंगाल में राज्यपाल के रूप में धनखड़ के साथ उनकी पार्टी को जिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, उसका इस्तेमाल किसी भी दल द्वारा दूसरे को नीचा दिखाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि कांग्रेस टीएमसी की सहयोगी नहीं है और वे समान विचारधारा वाली पार्टियां हैं. साकेत गोखले ने कहा कि कांग्रेस ने माकपा के साथ पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा था. उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए जिस तरह से विपक्षी उम्मीदवार का चयन किया गया था, हमने इस कारण वोटिंग सेदूर रहने का फैसला किया.
विपक्षी दलों में नेतृत्व को लेकर नहीं बन पा रही आम सहमति
विपक्षी दलों के लिए यह बड़ी समस्या है. क्योंकि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में वे न केवल अंदरूनी कलह से जूझ रहे थे, बल्कि चुनाव में क्रॉस वोटिंग से भी प्रभावित हुए. इसके अलावा, झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसे विपक्षी दलों ने विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के साथ जाने के बजाय राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की पसंद का पक्ष लिया. असम, झारखंड और मध्य प्रदेश विधानसभाओं में बड़ी संख्या में विपक्षी विधायकों ने भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया.
उपराष्ट्रपति चुनाव में, शिशिर अधिकारी और उनके बेटे दिब्येंदु अधिकारी ने अपनी पार्टी टीएमसी के अलग रहने का फैसला करने के बावजूद मतदान किया. एनडीए के उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू और जगदीप धनखड़ क्रमशः राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में आराम से जीत गए और विपक्ष को अपेक्षित संख्या से भी कम वोट मिले. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इन चुनावों के परिणाम पहले से ही निर्धारित थे. लेकिन विपक्षी दलों के बीच एकता की कमी ने उनके लिए 2024 में सत्तारूढ़ एनडीए को चुनौती देने की राह को और कठिन बना दिया है.
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Tags: Congress, Opposition, TMCFIRST PUBLISHED : August 08, 2022, 08:16 IST