जंगल से बाहर क्यों आ रहा है भेड़िया बाघों से भी कम हो गई है इनकी संख्या

Rajasthan News : उत्तर प्रदेश के बहराइच में फैले भेड़ियों का आतंक चर्चा का विषय बना हुआ है. वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार भेड़ियों के जंगल से बाहर आकर इंसानों पर हमले करने के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं. देश में भेड़ियों की संख्या बाघों से भी कम रह गई है.

जंगल से बाहर क्यों आ रहा है भेड़िया बाघों से भी कम हो गई है इनकी संख्या
जयपुर. उत्तर प्रदेश के बहराइच में इन दिनों भेड़ियों का जबर्दस्त आतंक फैला हुआ है. आदमखोर भेडियों के कारण वहां आमजन दहशत में है. लेकिन ये भेड़िये जंगल से बाहर क्यों आ रहे हैं? इसके पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आज बाघों की संख्या 3 हजार से ज्यादा है. लेकिन भेड़ियों की संख्या लगातार कम होती जा रही है. भारतीय वन्यजीव संस्थान ने ताजा स्टडी में इस बात पर चिंता जताई थी कि पूरे देश में भेड़ियों की तादाद तीन हजार से कम हो गई है. वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार राजस्थान में 80 के दशक से पहले तक 5 हजार से ज्यादा भेड़िये थे. वो अब सिमटकर 532 पर ही रह गए हैं. यहां जयपुर जू में पहले भेड़ियों को बचाने के लिए कैप्टिव ब्रीडिंग कराई गई थी जो देश में पहली बार सफल हुई. उसके बाद से ही देश के सभी बड़े जू बायोलॉजिकल और जूलॉजिकल पार्क में भेड़िये एक्सचेंज में भेजे गए. इससे वहां भी भेड़िये संरक्षण की कोशिशें आगे बढ़ सकी. बरसात के मौसम यह जीव बेहद कन्फ्यूज हो जाता है जयपुर के नाहरगढ़ बॉयोलोजिल पार्क के वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. अरविंद माथुर के अनुसार भेड़िया एक जंगली जीव है. बरसात के दौरान वन्य जीव बेहद कन्फ्यूज होता है. यह जीव पिछले कुछ समय से बेहद बुरे दौर से गुजर रहा है. भेड़ियों को जंगली जीव बाघ, बघेरे और भालू पसंद नहीं करते हैं. वहीं जंगल के बाहर आबादी की सरहदों पर इन्हें इंसान नहीं आने देते. ऐसे में इनके जीवनयापन के लिए जंगल और आबादी की सरहदों के बीच काफी कम सुरक्षित स्थान बचा होता है. वहां भी जरख और सियार जैसे जीवों से इनका कॉम्पटीशन जारी रहता है. यह मौसम इनके प्रजनन काल का भी होता है भारतीय वन सेवा के पूर्व अधिकारी आरएन मेहरोत्रा का कहना है कि इन दिनों बरसात में हर जगह हरियाली होती है. जंगल, आबादी और खेतों के बीच फर्क करना मुश्किल होता है. भेड़ियों की अपनी हदों को समझने के लिए की गई मार्किंग को बरसात बार-बार धो देती है. वहीं भूखे होने की वजह से भोजन की तलाश बहुत मुश्किल हो जाती है. ऐसे मौसम में इनका प्रजनन काल भी होता है. इसमें युवा जोड़े अपनी नई टेरिटरी बनाने के लिए नये इलाकों की तलाश में रहते हैं. इन तमाम हालात में इंसानों और भेडियों का टकराव बढ़ने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. उन्नाव और रायबरेली क्षेत्र में 90 के दशक में पहले भी ऐसा हो चुका है भेडियों के इंटरनेशनल विशेषज्ञ डॉ. बिलाल हबीब कहते हैं कि इंसानों में भी बच्चे काफी आसान शिकार होने की वजह से वे ऐसा कर रहे हैं. ऐसे में लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है. उन्नाव और रायबरेली क्षेत्र में 90 के दशक में पहले भी ऐसा केस हो चुका है. तब भी भेड़ियों ने ऐसा किया था. इस मामले को संभालने के लिए पूरे झुंड को पकड़ना जरूरी है. पहले जब ऐसा हुआ था तब भी भोजन की कमी वजह से उनका स्वभाव बदला था. अब भी हालात काफी चिंताजनक हैं. फील्ड बायोलॉजिस्ट मोहम्मद मैराज का कहना है कि हर जगह उनको घेरने के लिए हाका लगाया जा रहा है. यह गलत है. भेड़ियों को लेकर लोगों की गलतफहमी दूर नहीं हो रही है घटते हैबिटेट में इन चुनौतियों को लेकर वन विभाग की ओर से इंसान और जानवर के संघर्ष को रोकने की वन कर्मचारियों को लगातार ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वे ऐसी चुनौतियों को समय रहते समाधान कर लोगों को जागरूक कर सकें. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है. न तो वन विभाग भेड़ियों को लेकर लोगों की गलतफहमी दूर करने में कामयाब हो पाया है और न ही मौके पर सिचुएशन को हैंडल कर पा रहा है. इससे हालात खराब हो रहे हैं. भेड़ियों को भेड़, बकरी और मृत जीवों पर निर्भर होना पड़ रहा है बहराइच केस को लेकर वन विभाग के अधिकारियों को कहना है कि उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में भेड़ियों के मुख्य भोजन, चिंकारा, चीतल, खरगोश आदि प्रजातियां खत्म होने के कगार पर आ चुकी हैं. ऐसे में मजबूरन भेड़ियों को इंसानी आबादी में भेड़, बकरी और मृत जीवों पर निर्भर होना पड़ रहा है. इसकी चपेट में इंसान भी आ रहे हैं. इससे इंसानों और भेड़ियों में संघर्ष की स्थिति पैदा हो रही है. Tags: Jaipur news, Rajasthan news, Wild lifeFIRST PUBLISHED : September 2, 2024, 12:34 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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