बंगाल के पुलिस वालिंटियर को 310 रुपया रोज संजय राय भी यही था क्या इनका काम
बंगाल के पुलिस वालिंटियर को 310 रुपया रोज संजय राय भी यही था क्या इनका काम
Kolkata Doctor Rape & Murder : कोलकाता रेप - मर्डर का मुख्य आरोपी संजय राय बंगाल में सिविक पुलिस वालिंटियर था. इस कांड के बाद अब पुलिस वालिंटियर भी चर्चाओं में आ गए हैं. जो कई मामलों में पुलिस की मदद करते हैं.
हाइलाइट्स ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद बेरोजगारों को नागरिक पुलिस वालिंटियर बनाना शुरू किया गया इन पुलिस वालिंटियर को सरकार महीने में एक तय पैसा देती है लेकिन ये पार्टी के लिए ज्यादा काम करते हैं बंगाल में पुलिस वालिंटियर्स को लेकर हाल के दिनों में कई विवाद हुए और इन पर सवाल भी उठे
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक महिला डॉक्टर के रेप और मर्डर के बाद पता चला है कि अपराधी संजय राय खुद कोलकाता में एक सिविक पुलिस वालिंटियर है, जिसकी न केवल अस्पताल बल्कि आपातकालीन भवन तक भी पहुंच थी. जहां घुसकर उसने 31 वर्षीय महिला डॉक्टर को अपना शिकार बनाया. इस घटना के बाद सिविक पुलिस वालिंटियर की भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठा दिए हैं. उसकी जांच की मांग होने लगी है.
कोलकाता डॉक्टर रेप – मर्डर मामले का आरोपी संजय रॉय 2019 से कोलकाता पुलिस के साथ सिविक पुलिस वालंटियर के तौर पर काम कर रहा था. सिविक पुलिस वालंटियर के तौर पर काम करने के बावजूद वह पुलिस को मिलने वाली कई सुविधाएं हासिल कर रहा था. वह पुलिस की मोटरसाइकिल चलाता था. कोलकाता सशस्त्र पुलिस की चौथी बटालियन के बैरक में रहता था. 35 वर्षीय आरोपी कोलकाता पुलिस कल्याण समिति से भी जुड़ा था. पुलिसकर्मियों के रिश्तेदारों को अस्पताल में भर्ती कराने में मदद करता था.
सवाल – क्या होते हैं सिविक पुलिस वालिंटियर, कैसे इन्हें नियुक्त किया जाता है?
– इन्हें नागरिक पुलिस स्वयंसेवक या ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पुलिस स्वयंसेवक के तौर पर जाना जाता है. ये संविदा कर्मी होते हैं जिन्हें पुलिस सहायता के लिए नियुक्त करती है. खासतौर पर यातायात प्रबंधन और ऐसे अन्य छोटे-मोटे कामों में, जहां पुलिसकर्मियों की जरूरत नहीं होती.
सवाल – क्या ये भर्ती ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद शुरू हुई. इसकी क्या पात्रता होती है?
– हां नागरिक पुलिस स्वयंसेवकों की भर्ती की प्रक्रिया 2011 में ममता बनर्जी सरकार के सत्ता में आने के तुरंत बाद शुरू हुई. 26 सितंबर, 2011 को एक सरकारी आदेश में नागरिक पुलिस स्वयंसेवकों की भर्ती के लिए पात्रता मानदंड तय किए गए. इसमें आवेदक को उस पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र का निवासी होना चाहिए जहां उसे तैनात किया जाएगा. उसकी आयु 20 वर्ष से अधिक होनी चाहिए. उसे दसवीं तक पढ़ा होना चाहिए. उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होना चाहिए. नागरिक पुलिस की शैक्षणिक योग्यता को बाद में बदलकर आठवीं कक्षा पास कर दी गई.
हालांकि इस अवधारणा की शुरुआत नेक इरादे से की गई थी, ताकि बेरोजगार युवाओं को आय का एक नियमित स्रोत दिया जा सके. शुरुआत में इसे 2008 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या सीपीआई (एम) की सरकार के तहत छोटे पैमाने पर लागू किया गया था. उस समय पुलिस बल में लोगों की कमी थी, जिससे रोज की पुलिसिंग प्रभावित हो रही थी. इस कमी को पूरा करने के लिए अनुबंध के आधार पर नागरिक स्वयंसेवकों को शामिल करने का निर्णय लिया गया. उनका काम व्यस्त चौराहों पर यातायात पुलिस की सहायता करना था.
सवाल – बंगाल में ऐसे कितने सिविक पुलिस वालिंटियर हैं?
– 2011 में भर्ती के पहले चरण के तुरंत बाद पुलिस ने सरकार को 1.3 लाख नागरिक पुलिस स्वयंसेवकों को नियुक्त करने का प्रस्ताव दिया था. तो माना जाना चाहिए कि बंगाल में इतने पुलिस वालिंटियर तो होंगे ही.
कोलकाता पुलिस के पास इस समय 7,200 नागरिक स्वयंसेवक हैं, जबकि राजधानी की पुलिस बल की ताकत 37,400 है. राज्य में पुलिस की ताकत 79,024 है तो 1.24 लाख से अधिक नागरिक पुलिस स्वयंसेवक हैं.
सवाल – इन्हें कितना पैसा दिया जाता है?
– नागरिक पुलिस स्वयंसेवकों को रोज 310 रुपया दिया जाता है यानि करीब 9,300 रुपया हर महीने. इन्हें तदर्थ बोनस के तौर पर पहले सालाना 5,300 रुपए मिलते थे जो पिछले साल ही बढ़ाकर ₹6,000 कर दिया गया. हालांकि ये जरूरी नहीं कि उनकी ड्यूटी रोज लगाई ही जाए.
इन स्वयंसेवकों को शुरू में 141 रुपये रोज या 4,080 रुपये प्रति माह मानदेय दिया जाता था. जो बढ़ाया गया. उन्हें तदर्थ बोनस के साथ चिकित्सा बीमा भी मिलता है.
सवाल – बाद में नागरिक पुलिस वालिंटियर पर सवाल क्यों उठने लगे?
– पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा की जांच करने वाली राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की 2021 की रिपोर्ट में कहा गया कि बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्रदान करने के बावजूद, यह योजना सही तरीके से क्रियान्वित नहीं की गई. जैसे अपर्याप्त प्रशिक्षण और नागरिक स्वयंसेवकों का करियर आगे नहीं बढ़ पाना.
रिपोर्ट में कहा गया है, “बड़ी संख्या में पुलिस थानों में पाए जाने वाले नागरिक स्वयंसेवक स्थानीय स्तर पर लिये गए युवा लड़के होते हैं, जिनकी न तो नियमित भर्ती की जाती है और न ही उन्हें नियमित कांस्टेबलों की तरह कोई प्रशिक्षण दिया जाता है, इसलिए वे न तो प्रभावी होते हैं और न ही अपराध या कानून-व्यवस्था की स्थिति से निपटने में सक्षम होते हैं.”
इन नागरिक स्वयंसेवकों को “आम तौर पर सत्तारूढ़ पार्टी का एजेंट माना जाता है क्योंकि उन्हें एआईटीसी (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस) के कार्यकाल के दौरान भर्ती किया गया. वे स्थानीय पार्टी नेताओं के साथ संपर्क बनाए रखते हैं”.
सवाल – इन नागरिक स्वयंसेवकों को पहले ग्रीन पुलिस क्यों कहा जाता था?
– वर्ष 2008 में जब तत्कालीन माकपा सरकार ने बहुत सीमित तौर पर उनकी नियुक्त पेड़ काटने से बचाने के लिए की तब उन्हें हरी वर्दी दी गई, जिससे उनका नाम “ग्रीन पुलिस” पड़ा. हालांकि वर्ष 2018 से वे पुरानी हरी वर्दी के अलावा नीली वर्दी भी पहन रहे हैं. नए भर्ती होने वाले सभी लोग नीली शर्ट पहनते हैं, जिसके पीछे सिविक वॉलंटियर लिखा होता है और नेवी ब्लू रंग की पतलून पहनते हैं.” उन्हें दो वर्दियां दी जाती हैं, जिसका खर्च राज्य सरकार वहन करती है.
सवाल – अब इन नागरिक पुलिस वालिंटियर्स के खिलाफ कैसी शिकायतें आ रही हैं?
– सिविक वालंटियर द्वारा व्यावसायिक वाहनों के ड्राइवरों से पैसे ऐंठने और अन्य अवैध गतिविधियों में लिप्त होने की शिकायतें बहुत हैं. उनकी कोई जवाबदेही नहीं है. अगर कोई सिविक वालंटियर पैसे लेते पकड़ा जाता है, तो उसे बस घर भेज दिया जाता है.
नागरिक पुलिस स्वयंसेवकों द्वारा की गई ज्यादतियों के कई मामले सामने आए हैं. सबसे चर्चित मामला फरवरी 2022 में छात्र नेता अनीश खान की अप्राकृतिक मौत का था, जिसमें एक नागरिक पुलिस स्वयंसेवक और एक होमगार्ड को गिरफ्तार किया गया था. हाल ही में आरजी कर की घटना में तो संजय राय तो आरोपी के तौर पर सामने आय़ा ही है, जो नागिरक पुलिस वालिंटियर था लेकिन वो अपनी हनक किसी पुलिसवाले से ज्यादा दिखाता था. खुद संजय राय पर घरेलू हिंसा के आरोप लगे और कोई कार्रवाई नहीं हुई.
करीब 10 दिन पहले नादिया के कृष्णानगर में नौकरी का वादा करके एक टोटो चालक से 11,370 रुपये की ठगी करने के आरोप में एक नागरिक स्वयंसेवक को गिरफ्तार किया गया था.
टेलीग्राफ में छपी एक खबर के अनुसार, कोलकाता में नागरिक स्वयंसेवकों ने दरें तय कर रखी हैं. उदाहरण के लिए, जो कोई भी व्यक्ति नई गाड़ी खरीदने पर विशेष प्रार्थना के लिए काली बाड़ी झील पर जाता है, उसे 100 रुपये देने पड़ते हैं; अगर गाड़ी सेकंड-हैंड है तो 50 रुपये देने पड़ते हैं. पुलिस ट्रेनिंग स्कूल की ओर डीएल खान रोड पर यू-टर्न के लिए मौजूदा दर दिन के समय के हिसाब से 20 से 50 रुपये के बीच है.
सवाल – कलकत्ता हाईकोर्ट ने सिविक पुलिस वालिंटियर के बारे में क्या कहा है, क्योंकि ये भर्ती विवादों से घिरी रही है?
– कलकत्ता हाईकोर्ट ने कई आदेशों के माध्यम से नागरिक पुलिस स्वयंसेवकों की भर्ती और कानूनी सत्यता पर सवाल उठाए हैं. 20 मई, 2016 को दिए गए आदेश में कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति संजीव बनर्जी ने कहा कि नागरिक पुलिस स्वयंसेवकों की भर्ती योजना करदाताओं के पैसे की परवाह किए बिना बेरोजगारों को शिकार बनाने के लिए बनाई गई थी.
विपक्षी नेताओं और राजनीतिक पर्यवेक्षकों दोनों का कहना है कि सिविक पुलिस पार्टी का ही विस्तार है.स्थानीय तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व ऐसे कर्मियों को नियुक्त करता है जो उनके प्रति वफादार होंगे. राज्य में बेरोजगारी के संकट ने ममता बनर्जी सरकार को अनुबंध पर भर्ती का एक सरल तरीका तैयार करने के लिए प्रेरित किया है, जहां हजारों युवाओं को लगभग न्यूनतम वेतन दिया जाता है. वो सभी बिना किसी जवाबदेही के पार्टी के लिए काम कर सकते हैं.
Tags: Kolkata News, Kolkata Police, Rape and MurderFIRST PUBLISHED : August 27, 2024, 16:50 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed