वसीम अहमद/अलीगढ़: अलीगढ़ के कटपुला स्थित बरछी बहादुर की दरगाह अपने आप में खास इतिहास रखती है. यहां पर हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्म के लोग इबादत करने के लिए दूर-दूर से आते हैं. लेकिन एक ऐसी मान्यता है जो सैकड़ों साल पुरानी बताई जाती है. चलिए बताते हैं कि क्या है मान्यता?
बाबा बरछी बहादुर की दरगाह
दरअसल अलीगढ़ के कटपुला पर बाबा बरछी बहादुर की दरगाह स्थित है. बाबा बरछी बहादुर की ये दरगाह करीब 750 साल पुरानी बताई जाती है. दरगाह के सदर नूर मोहम्मद के अनुसार अजमेर के ख्वाजा गरीब नवाज ने ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकवी को अपना शार्गिद बनाया था. बाबा बरछी बहादुर कालवी के साथी थे. बाबा बरछी बहादुर का नाम सैयद तहबुर अली था. उनके अनुयायी हजरत जोरार हसन ने सबसे पहले बरछी बहादुर पर उर्स की शुरुआत की थी.
हर मन्नत होती है पूरी
बाद से यहां हिन्दू–मुस्लिम सिख–इसाई सभी धर्म के लोग इबादत करने के लिए दूर-दूर से आते हैं. दरगाह के बारे में यह मान्यता बताई जाती है कि जो भी यहां चादर चढ़ाकर इबादत करता है. उसकी हर मन्नत पूरी होती है और इसका यही कारण है कि यहां रोज सैकड़ों लोग दरगाह पर आते हैं.
आखिर ट्रेन क्यों करती है सलाम
बाबा बरछी बहादुर दरगाह को लेकर जो सबसे बड़ी मान्यता है, वो ये कि दरगाह से होकर जब भी कोई रेल गुजरती है, तब रेल भी सीटी की शक्ल में इस दरगाह पर सलामी पेश करती हुई जाती है. इसके पीछे की मान्यता को लेकर ये कहा जाता है कि ब्रिटिश हुकूमत के समय जब दरगाह के पास रेल की पटरी बिछाई जा रही थी, तभी रात के समय पटरी अपने आप उखड़ जाती थी. एक मुस्लिम इंजीनियर थे उनके ख्वाब में बाबा ने कहा कि दरगाह को छोड़कर पटरी बनाओ. जब ऐसा किया गया तभी पटरी बिछाने का काम पूरा हो सका. यह बात अलीगढ़ के ऐतिहासिक दस्तावेजों में दर्ज सत्य घटना है.
Tags: Aligarh news, Local18FIRST PUBLISHED : June 22, 2024, 09:27 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed