वसीम अहमद /अलीगढ़: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने बहुत कदम उठाए. शिक्षा के लिए उन्होंने पैरों में घुंघरू बांध कर चंदा मांगा. सर सैयद अहमद खान ने अंग्रेजों की गुलामी के समय मुस्लिमों में शिक्षा का अलख जगाने की मुहिम चलाई. 27 मार्च, 1898 में सर सैयद ने आखरी सांस ली.
शिक्षा से होगी उन्नति
सर सैयद अहमद खान 1857 की क्रांति के बाद की स्थिति को समझ गए थे. सर सैयद ने देश की आजादी के लिए चिंतन किया. सर सैयद अहमद खान उस समय शिक्षा को राजनीतिक सशक्तिकरण का माध्यम मानते थे. उन्होंने माना कि अगर हम शिक्षा में आगे आए तो उन्नति करेंगे.
असबाब बगावत ए हिंद
राहत अबरार ने बताया कि सर सैयद अहमद खान के राजनीतिक विचारों पर कम लिखा गया. सर सैयद ने असबाब बगावत ए हिंद किताब लिखी, जो 1857 की क्रांति को लेकर लिखी गई थी. वर्ष 1860 में सर सैयद की किताब का उर्दू से अंग्रेजी में अनुवाद हुआ था. सर सैयद अहमद खान पहले व्यक्ति थे, जिनकी किताब को लेकर ब्रिटिश पार्लियामेंट में डिबेट हुई थी. जिसके बाद अंग्रेजों ने 1857 में अपनी कमजोरी पहचानी और कमियों को दूर किया. उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी से शासन ब्रिटेन की रानी मलिका विक्टोरिया के हाथ में चला गया था.
घुंघरू पहनकर करना पड़ा था नृत्य
राहत अबरार बताते हैं कि सर सैयद अहमद खान ने जब आधुनिक तालीम का मिशन शुरू किया, तब मुसलमानों में मॉडर्न एजुकेशन का कांसेप्ट नहीं था. केवल दीनी तालीम थी. जब वो अंग्रेजी और साइंस की तालीम लेकर आये तो उसे कुफ्र कहा गया. सर सैयद को एथिस्ट माना गया और उनके ऊपर फतवे जारी किए गए. इतना ही नहीं, ईस्ट इंडिया कंपनी में जब सर सैयद अहमद खान ने नौकरी करनी शुरू की तो घरवालों ने भी पर्दा शुरू कर दिया. लेकिन, सर सैयद ने इन नफरतों की परवाह नहीं की और अपने ज्ञान के मिशन को आगे बढ़ाया. सर सैयद अहमद खान को चंदा देने वाले भी परेशान करते थे. उन्हें एक ड्रामा में घुंघरू पहन कर नृत्य करना पड़ा. तब उन्हें चंदा दिया गया.
Tags: Aligarh news, Local18FIRST PUBLISHED : September 4, 2024, 16:38 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed