निश्चित रूप से क्रूरता है पत्नी ने क्या किया कि पति के हक में आया फैसला
निश्चित रूप से क्रूरता है पत्नी ने क्या किया कि पति के हक में आया फैसला
High Court News: बॉम्बे हाईकोर्ट में पति-पत्नी के बीच झगड़े का एक मामला गया था. इससे पहले परिवार न्यायालय ने पति की अर्जी स्वीकार कर ली थी. हाईकोर्ट ने जब पूरा मामला सुना तो जज को भी कहना पड़ा कि यह तो पत्नी द्वारा की गई क्रूरता है.
मुंबई. बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने कहा कि पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ झूठे मामला दर्ज कराना क्रूरता है. इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने एक कुटुम्ब अदालत (Family Court) द्वारा एक दंपति को दिए गए तलाक को रद्द करने से इनकार कर दिया. हाईकोर्ट ने एक महिला द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया. महिला ने अपनी याचिका में अपने वैवाहिक अधिकारों को बहाल किए जाने का अनुरोध किया था और कुटुम्ब अदालत के फरवरी 2023 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें तलाक की मंजूरी दी गई थी.
पति ने अपनी पत्नी की क्रूरता और उसके अलग हो जाने के आधार पर तलाक मांगा था. हाईकोर्ट ने 25 अप्रैल को यह आदेश दिया जिसकी प्रति मंगलवार को उपलब्ध कराई गई. जस्टिस वाईजी खोबरागड़े ने कहा कि घरेलू हिंसा कानून के तहत कार्यवाही शुरू करना और वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग करना अपने आप में क्रूरता नहीं है. उन्होंने कहा, ‘लेकिन, पति, उसके पिता, भाई और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ पुलिस के पास विभिन्न झूठी, आधारहीन रिपोर्ट दर्ज करना निश्चित रूप से क्रूरता के दायरे में आता है.’
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साल 2004 में शादी, 2012 से अलगाव
इस जोड़े की 2004 में शादी हुई और 2012 तक वे साथ रहे. पति ने दावा किया कि साल 2012 में उसकी पत्नी ने उसे छोड़ दिया और अपने अपने माता-पिता के घर में रहने लगी. बाद में महिला ने अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ झूठी शिकायतें दर्ज कराई. पति ने अपनी पत्नी के खिलाफ कुटुम्ब अदालत में दायर याचिका में दावा किया कि इन झूठी शिकायतों के कारण उसे और उसके परिवार के सदस्यों को मानसिक क्रूरता का सामना करना पड़ा. पति ने दावा किया था कि उसकी पूर्व पत्नी ने उनके पिता और भाई के खिलाफ छेड़छाड़ करने तक का आरोप लगाया.
प्रतिष्ठा को नुकसान
बाद में उन्हें आरोपों से बरी कर दिया गया लेकिन उस व्यक्ति ने कहा कि इस पूरे मामले से उसके परिवार के सदस्यों को परेशानी हुई और समाज में उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान हुआ. बॉम्बे हाईकोर्ट ने महिला की याचिका खारिज कर दी और कहा कि तलाक मंजूर करने के निचली अदालत के आदेश में कोई गड़बड़ी या अवैधता नहीं है. बता दें कि महिला पिछले तकरीबन 12 वर्षों से पति से अलग रही थी, इसके बावजूद तलाक के फैसले को रद्द करवाने हाईकोर्ट पहुंची थी.
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Tags: Bombay high court, Divorce, Triple Talaq lawFIRST PUBLISHED : May 1, 2024, 07:31 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed