कांटों को निपटाने के चक्कर में तेजस्वी ने भाजपा को तोहफे में दे दी ये सीटें!

मौजूदा वक्त में तेजस्वी यादव बिहार में लालू-नीतीश की पीढ़ी के बाद के दौर के सबसे बड़े नेता हैं. दूसरी तरफ एनडीए की ओर से सम्राट चौधरी और चिराग पासवान का उभार हुआ है. लेकिन, क्या तेजस्वी खुद को बड़ा बनाने के लिए सहयोगी दलों में नेतृत्व को पनपने से रोक देते हैं?

कांटों को निपटाने के चक्कर में तेजस्वी ने भाजपा को तोहफे में दे दी ये सीटें!
उत्तर प्रदेश में भाजपा के बुरे प्रदर्शन के पीछे के कारणों का विश्लेषण करना एक जटिल राजनीतिक टास्क है. क्योंकि राज्य में हर एक चीज और समीकरण भाजपा के पक्ष में था. राममंदिर के निर्माण से लेकर सीएम योगी की अपनी छवि और फिर पीएम मोदी का वाराणसी से चुनाव लड़ना. इसके अलावा एक सॉलिड गठबंधन का होना. बसपा का किसी गठबंधन में शामिल न होना… ऐसी कई चीजें थीं जो राज्य में भाजपा को 2019 के मुकाबले 2024 में मजबूत बनाती थी. लेकिन, यहां भाजपा का प्रदर्शन बहुत बुरा रहा. वह देश के इस सबसे बड़े सूबे की 80 सीटों में से केवल 33 पर सिमट गई. लेकिन, पड़ोसी राज्य बिहार का विश्लेषण इतना उलझाऊ नहीं है. बिहार में एनडीए के बेहतर करने के पीछे कहीं न कहीं तेजस्वी यादव का अहम योगदान है. राज्य की कई ऐसी सीटें हैं जिनके बारे में कहा जा सकता है कि तेजस्वी में उन्हें तोहफे में भाजपा को थमा दिया. दरअसल, बिहार की राजनीति को समझने वाले सब लोग जानते हैं कि लालू-नीतीश-मोदी (दिवंगत सुशील मोदी)-रामविलास के बाद की पीढ़ी में अभी कोई नेता है तो वह खुद तेजस्वी यादव हैं. तेजस्वी लगातार बतौर ब्रांड अपने आप को स्थापित करना चाहते हैं. वह यह बिल्कुल नहीं चाहते हैं कि राजद की सहयोगी कांग्रेस और अन्य दलों में ऐसा कोई नेतृत्व उभरे जो भविष्य में उनके नेतृत्व को चुनौती दे. इसके लिए वह इंडिया गठबंधन का नुकसान करवाने तक के लिए तैयार दिखते हैं. चुनाव से पहले के ड्रामे इस बात को समझने लिए आप चुनाव से पहले बिहार में महागठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर हुए ड्रामे को देख सकते हैं. सीट बंटवारे में राजद ने सहयोगी कांग्रेस को बुरी तरह नजरअंदाज किया. उसे ऐसी-ऐसी सीटें दीं गई जहां उसके उम्मीदवार के जीतने की संभावना बहुत कम थी. हम बात सीमांचल से शुरू करते हैं. इस पूरे ड्रामे की शुरुआत पूर्णिया से हुई. कांग्रेस ने यहां से पप्पू यादव को टिकट देने का मन बनाया था लेकिन राजद ने बिना सलाह लिए एकतरफा यहां से वीणा देवी को राजद के टिकट पर मैदान में उतार दिया. फिर पप्पू यादव यहां से निर्दलीय मैदान में उतरे और विजयी हो गए. अगर पप्पू यादव गठबंधन के साथ होते तो आसपास की कई सीटों पर इंडिया गठबंधन के पक्ष में माहौल बनाते. लेकिन, पप्पू यादव से राजद की अदावत पुरानी है. तेजस्वी के रहते यादव समुदाय के किसी दूसरे नेता के उभरने को लालू परिवार स्वीकार नहीं कर पाता है. हालांकि, सीमांचल की चार में से तीनों सीटें इंडिया गठबंधन के पास रह गईं, लेकिन एक सीट अररिया महज 20 हजार वोटों से यह गठबंधन हार गया. अररिया में भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह 20 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीत गए. सीमांचल की ही तरह कोशी अंचल के खगरिया में चिराग पासवान का खेमा और मधेपुरा व सुपौल में जदयू ने जीत हासिल की. गौरतलब है कि सुपौल सीट से पप्पू यादव की पत्नी और कांग्रेस की राज्यसभा सांसद रंजीता रंजन लोकसभा सांसद रह चुकी हैं. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि पप्पू यादव बनाम राजद के बीच तकरार की वजह से बिहार के इन दोनों इलाकों में इंडिया गठबंधन को नुकसान उठाना पड़ा. मुजफ्फरपुर और मधुबनी इसके अलावा दो और सीटें हैं, जिनका जिक्र किया जाना चाहिए. उत्तर बिहार का केंद्र समझा जाने वाला मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट और नेपाल से सटा मधुबनी क्षेत्र. मुजफ्फरपुर सीट कांग्रेस के खाते में थी, जबकि मधुबनी से राजद ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया. मुजफ्फरपुर में हाल के दशकों में कभी कांग्रेस पार्टी का लोकसभा प्रत्याशी जीता हो, ऐसा इतिहास नहीं है. अंतिम बार साल 1984 में यहां कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. वहीं मधुबनी संसदीय सीट से कांग्रेस के शकील अहमद 2004 में सांसद बने, लेकिन 2009 के बाद यहां भाजपा का कब्जा रहा है. इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि मुजफ्फरपुर में कांग्रेस प्रत्याशी की जबर्दस्त हार और मधुबनी से राजद का न जीत पाना, इंडिया गठबंधन की रणनीतिक हार है. क्या बेगूसराय भी तोहफे में दिया? कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार बेगूसराय से हैं. 2019 में उन्होंने यहां से भाकपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और दूसरे नंबर थे. उस चुनाव में राजद ने उनके खिलाफ तनवीर हसन को टिकट दिया था. उन्हें भी अच्छे वोट मिले थे. हालांकि 2019 में बेगूसराय से भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह 4 लाख से अधिक सीटों से जीत मिली थी. उसके बाद कन्हैया कांग्रेस में आ गए और वह बेगूसराय से चुनाव लड़ने की तैयारी करने लगे. लेकिन, 2024 में राजद ने यह सीट कांग्रेस को नहीं दी और कन्हैया को उम्मीदवार नहीं बनाया जा सका. कन्हैया को दिल्ली में उत्तर-पूर्वी सीट से टिकट मिला और वह हार गए. बेगूसराय में 2019 के चुनाव के बाद कन्हैया की लोकप्रियता काफी बढ़ी थी. अगर उनको महागठबंधन की ओर से कांग्रेस से टिकट और राजद का समर्थन मिलता तो संभवतः बहुत करीबी मुकाबला होता. लेकिन, यहां भी तेजस्वी के सामने वही डर आ गया कि अगर कन्हैया सांसद बन गए तो भविष्य में वे बड़े नेता बन जाएंगे और उनके लिए एक चुनौती खड़ी हो जाएगी. बेगूसराय में गिरिराज सिंह 80 हजार से अधिक वोटों से चुनाव जीत गए हैं. Tags: Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, Pappu Yadav, Tejashwi YadavFIRST PUBLISHED : June 5, 2024, 14:02 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed