बेरोजगारी को किक मार रहा मेरठ का यह गांव तीन दशक से रोजगार का माध्यम है फुटबॉल
बेरोजगारी को किक मार रहा मेरठ का यह गांव तीन दशक से रोजगार का माध्यम है फुटबॉल
मेरठ जिले के सिसौला बुजुर्ग गांव में तीन दशक पहले फुटबॉल बनाने की शुरुआत हुई थी. गांव के निवासी हरि प्रकाश अपने यहां कच्चा माल लेकर आए थे. इसके बाद शौक में युवा भी फुटबॉल बनाने लगे, लेकिन यही शौक आज गांव के सभी लोगों के लिए रोजगार का सशक्त माध्यम बन गया है. इसकी ऐसी नींव रखी गई कि अब छोटे बच्चों से लेकर बड़े तक सभी घर में रहकर फुटबॉल बनाते हैं
विशाल भटनागर
मेरठ. रोजगार की तलाश में युवा तेजी से ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन कर शहर की तरफ आ रहे हैं. ऐसा करने के पीछे उनका मकसद अपने भविष्य को संवारना है, लेकिन उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले का एक गांव पिछले तीन दशकों से अपने युवाओं को गांव में ही रोजगार उपलब्ध कराने में कामयाब हैं. इतना ही नहीं युवाओं के साथ-साथ महिला सहित सभी लोगों को गांव में ही रोजगार मिल रहा है. हम बात कर रहे हैं मेरठ शहर से 25 किलोमीटर दूर सिसौला बुजुर्ग गांव की जहां घर-घर में फुटबॉल तैयार होती है.
सिसौला बुजुर्ग गांव में तीन दशक पहले फुटबॉल बनाने की शुरुआत हुई थी. गांव के निवासी हरि प्रकाश अपने यहां कच्चा माल लेकर आए थे. इसके बाद शौक में युवा भी फुटबॉल बनाने लगे, लेकिन यही शौक आज गांव के सभी लोगों के लिए रोजगार का सशक्त माध्यम बन गया है. इसकी ऐसी नींव रखी गई कि अब छोटे बच्चों से लेकर बड़े तक सभी घर में रहकर फुटबॉल बनाते हैं. आपके शहर से (मेरठ) उत्तर प्रदेश बिहार मध्य प्रदेश राजस्थान उत्तराखंड हरियाणा झारखंड छत्तीसगढ़ हिमाचल प्रदेश महाराष्ट्र पंजाब मेरठ लखनऊ वाराणसी मेरठ आगरा अलीगढ़ कानपुर गोरखपुर नोएडा इलाहाबाद झांसी हापुड़ गाजियाबाद अमेठी अम्बेडकर नगर अयोध्या आजमगढ़ इटावा उन्नाव एटा कन्नौज कासगंज कुशीनगर कौशाम्बी गाजीपुर गोंडा चित्रकूट जौनपुर देवरिया पीलीभीत प्रतापगढ़ फतेहपुर फर्रुखाबाद फिरोजाबाद फैजाबाद बदायूं बरेली बलिया बस्ती बहराइच बांदा बागपत बाराबंकी बिजनौर बुलंदशहर भदोही मऊ मथुरा महाराजगंज महोबा मिर्जापुर मुजफ्फरनगर मुरादाबाद मैनपुरी रामपुर लखीमपुर खेरी शामली शाहजहांपुर श्रावस्ती संत रविदास नगर संतकबीरनगर संभल सहारनपुर सिद्धार्थनगर सीतापुर सुल्तानपुर सोनभद्र हमीरपुर हरदोई हाथरस
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हर साल तैयार करते हैं 11 लाख फुटबॉल
गांव में ऐसा कोई घर नहीं है जहां पर फुटबॉल नहीं बनाई जाती हो. महिलाओं से लेकर पुरुष और बच्चे सभी फुटबॉल बनाने में व्यस्त रहते हैं. कोई फुटबॉल की सिलाई करता है. तो कोई कटाई करता है, तो कोई धुलाई करता है. इसी तरीके से पूरा परिवार फुटबॉल बनाने में लगा रहता है. परिवारों की मानें तो उनके घर बैठे रोजगार मिलता है जिससे अन्य कार्यों के साथ-साथ वो फुटबॉल बनाने का कार्य भी करते हैं.
स्कूल की फीस खुद देते हैं स्टूडेंट
गांव में ही रोजगार मिलने का एक फायदा यह हुआ कि जो बच्चे स्कूल में अध्ययन करते हैं वो भी अपने खाली समय में घर में बैठकर फुटबॉल बनाते हैं. इसके वो आत्मनिर्भर बनते हुए अपने स्कूल की फीस सहित अन्य खर्चे खुद ही उठाते हैं. न्यूज़ 18 लोकल से बात करते हुए युवाओं ने बताया कि सरकार को इसी तरीके से ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार उपलब्ध कराना चाहिए जिससे कि शहर की तरफ युवाओं का रुझान कम हो और वो स्थानीय स्तर पर ही रोजगार पा सकें.
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Tags: Employment, Football, Meerut news, Up news in hindiFIRST PUBLISHED : November 17, 2022, 14:23 IST