Lucknow: कभी लखनऊ का अशोक सिनेमा हॉल था मनोरंजन का ठिकाना टिकट की जगह हाथ पर लगती थी मुहर
Lucknow: कभी लखनऊ का अशोक सिनेमा हॉल था मनोरंजन का ठिकाना टिकट की जगह हाथ पर लगती थी मुहर
Lucknow First Cinema Hall: लखनऊ में 1935 में अंग्रेजों के जमाने में अशोक सिनेमा हॉल बनाया गया था. वहीं, यह सिनेमा हॉल 5000 स्क्वायर फीट में फैला हुआ है, जिसमें ढाई सौ लोग आराम से बैठकर एक साथ फिल्म देख सकते थे. जबकि 10 सितंबर 1989 में आखिरी बार सिनेमा हॉल का पर्दा उठाया था.
अंजलि सिंह राजपूत
लखनऊ. अंग्रेजों के जमाने में 1935 में लखनऊ में पहला ‘अशोक सिनेमा हॉल’ बनाया गया था. अंग्रेजों ने इसका नाम रोज़ सिनेमा हॉल रखा था. इसके बाद 1964 में इसका नाम बदलकर अशोक सिनेमा कर दिया गया. उस जमाने में लोग अपने मनोरंजन के लिए यहां पर आते थे. इस सिनेमा हॉल का जब पहली बार पर्दा उठा था तो पहली फिल्म बिना किसी आवाज के चार्ली चैप्लिन लगी थी.
लखनऊ के चौक इलाके में बने इस सिनेमा हाल का उस जमाने में मात्र 25 पैसे का टिकट हुआ करता था और टिकट के नाम पर लोगों के हाथों पर मुहर लगाई जाती थी.1984 में वीसीआर आने के बाद धीमे-धीमे यहां पर लोगों का आना कम हो गया और देखते ही देखते हैं इस सिनेमा हॉल में सन्नाटा पसरने लगा. लगातार नुकसान होने के कारण यहां के मालिकों ने 10 सितंबर 1989 में आखिरी बार सिनेमा हॉल का पर्दा उठाया था. उसके बाद यहां का पर्दा गिरा तो आज तक उठ नहीं पाया. अब यह पूरा सिनेमा हॉल यहां के संरक्षक के अधीन है. पुरखों की निशानी होने की वजह से वह इसे बेचना नहीं चाहते हैं. सिनेमा हॉल के कुछ हिस्से में यहां के संरक्षक ने अपना कार्यालय बना लिया है.
5000 स्क्वायर फीट में फैला है
1935 में इस सिनेमा हॉल को 25000 रुपए की लागत से बनाया गया था. इसकी स्क्रीन 70 एमएम से कम है. यह सिनेमा हॉल 5000 स्क्वायर फीट में फैला हुआ है. इस सिनेमा हॉल में नीचे की ओर 150 और ऊपर की ओर 100 लोगों के बैठने की क्षमता थी. करीब ढाई सौ लोग इसमें आराम से बैठकर एक साथ फिल्म देख सकते थे.
सिर्फ गुरुवार को ही बदलता था शो
इस सिनेमा हॉल के संरक्षक संजय कपूर ने बताया कि इस सिनेमा हॉल में 1 दिन में चार शो चलते थे. पहला शो 12:00 से 3:00 तक, दूसरा शो 3:00 बजे से लेकर 6:00 बजे तक, तीसरा शो 6:00 बजे से लेकर 9:00 बजे तक, तो वहीं अंतिम शो 9:00 बजे से लेकर रात 12:00 बजे तक चलता था. रात 12:00 तक चलने वाले शो में ज्यादा दर्शकों की भीड़ पहुंचती थी. अवकाश होने की वजह से गुरुवार को ही फिल्म को बदला जाता था. एक फिल्म एक हफ्ते तक यहां पर्दे पर लगी रहती थी. गुरुवार के दिन टिकट भी ब्लैक होते थे. यहां फिल्म देखने के लिए लोग कोई भी कीमत चुकाने के तैयार रहते थे. सिनेमा प्रेमी शशि कपूर ने बताया कि पहले मनोरंजन का साधन सर्कस या सिनेमा हॉल ही हुआ करते थे. सर्कस रोज नहीं होता था, लेकिन सिनेमा हॉल में फिल्म रोज लगी रहती थी. इसी वजह से ज्यादातर लोग यहां पर आते थे. यहां पर खूब सीटियां, खूब तालियां बजती थीं. जब बिजली चली जाती थी तो लोग शोर भी करते थे.
तीन बार बदला गया सिनेमा हॉल का नाम
सिनेमा हॉल का नाम सबसे पहले 1935 में अंग्रेजों ने Rose रखा था. इसके बाद 1955 में यहां के संरक्षक की दादी के नाम पर इस सिनेमा हॉल का नाम लक्ष्मी सिनेमा हॉल पड़ा. इन 1964 में इसका नाम बदलकर अशोक कर दिया गया. यहां के संरक्षक संजय कपूर बताते हैं कि इस इस सिनेमा हॉल को खरीदने के लिए कई लोग आए, लेकिन उन्होंने मना कर दिया क्योंकि यह उनके दादा जी की निशानी है और वह पुरखों की निशान को किसी को बेचना नहीं चाहते.
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Tags: Lucknow city, Lucknow city facts, Lucknow newsFIRST PUBLISHED : July 26, 2022, 12:58 IST