लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के मास्टरस्ट्रोक से विपक्षी एकता धराशायी
लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के मास्टरस्ट्रोक से विपक्षी एकता धराशायी
मौजूदा राजनीतिक हालात में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष बनाम एनडीए की जंग में कई राज्यों के सियासी गठबंधनों पर चोट लगती दिख रही है. झारखंड से लेकर महाराष्ट्र तक कई प्रमुख राजनीतिक दलों की राय गठबंधन के अपने सहयोगियों से मेल नहीं खा रही है.
ममता त्रिपाठी
नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव में लगभग दो साल का वक्त बचा है मगर भाजपा ने राष्ट्रपति चुनाव के जरिए विपक्षी एकता में ऐसी सेंधमारी की है कि पूरा विपक्ष बिखर सा गया है. एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के चुनाव मैदान में उतरते ही कई ऐसे क्षेत्रीय दल हैं जो राज्यों में कांग्रेस के साथ गठबंधन में हैं मगर सत्तापक्ष के इस मास्टरस्ट्रोक के सामने बेबस हो गए और विचारधारा के इतर अपनी सियासत को बचाए रखने के लिए विरोध ना कर सके.
मौजूदा राजनीतिक हालात में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष बनाम एनडीए की जंग में कई राज्यों के सियासी गठबंधनों पर चोट लगती दिख रही है. झारखंड से लेकर महाराष्ट्र तक कई प्रमुख राजनीतिक दलों की राय गठबंधन के अपने सहयोगियों से मेल नहीं खा रही है. सबसे दिलचस्प बात ये है कि गठबंधनों में पड़ने वाली इस दरार से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होता दिख रहा है.आइए आपको बताते हैं कैसे…
झामुमो और कांग्रेस के सुर अलग
झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद गठबंधन की सरकार है, जिसका नेतृत्व झामुमो कर रही है. खास बात ये है कि 81 सीटों के झारखंड राज्य में कांग्रेस के पास 18 सीटें है और आए दिन 30 सीटों वाली झामुमो के साथ उसकी खटपट की खबरें आती रहती हैं. देखा जाए तो इसकी शुरुआत राज्यसभा चुनाव के वक्त ही हो गई थी जब सोनिया गांधी की संयुक्त उम्मीदवार की इच्छा के विपरीत झामुमो ने महुआ मांझी को अपने उम्मीदवार के तौर पर उतारा था. इस बार राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी दोनों गठबंधन दलों के सुर अलग हैं. जिससे माना जा रहा है कि दोनों के बीच खाई और बढ़ सकती है. द्रौपदी मुर्मू आदिवासी हैं जिसको देखते हुए झामुमो ने अपना स्टैंड साफ रखा है कि वो उन्हें ही समर्थन देंगे. आपको बता दें कि झारखंड में 28 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं जबकि कुल 35 सीटों पर आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में हैं.
महा विकास अघाड़ी गठबंधन में भी फूट
इसी तरह महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की सरकार थी मगर जून के आखिर में शुरू हुई सियासी उठापठक के बाद महा विकास अघाड़ी सरकार गिर गई और भाजपा ने शिवसेना के शिंदे गुट के साथ मिलकर सरकार बना ली है. आश्चर्य की बात ये है कि महा विकास अघाड़ी गठबंधन के घटक दलों कांग्रेस और एनसीपी ने विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा को समर्थन दिया है. एनसीपी नेता शरद पवार ने तो यशवंत सिन्हा के चुनाव प्रचार में भी मुख्य भूमिका निभाई है मगर उद्धव ठाकरे ने अपने बचे हुए विधायकों और सांसदों के साथ एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दे दिया है. जिसके बाद ये उम्मीद जताई जा रही है कि महा विकास अघाड़ी गठबंधन भी अब खटाई में पड़ गया है जिससे सबसे ज्यादा धक्का कांग्रेस को लगेगा.
राजभर-शिवपाल ने दिया मुर्मू को समर्थन
कमोबेश उत्तर प्रदेश में भी एनडीए प्रत्याशी के नाम पर विपक्ष एकजुट नहीं है. ओम प्रकाश राजभर, शिवपाल यादव ने खुलकर मुर्मू को समर्थन का ऐलान किया है. शिवपाल यादव ने तो अखिलेश को भी नसीहत देते हुए चिट्ठी लिख डाली है कि यशवंत सिन्हा का साथ ना दें क्योंकि उन्होंने बीते दौर में नेताजी मुलायम सिंह यादव की बेइज्जती की थी. राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ही सपा गठबंधन में शामिल कई छोटे दलों ने गठबंधन को तोड़ने का ऐलान भी कर दिया है.
आदिवासी महिला प्रत्याशी उतारने का दांव कारगर
गौरतलब है कि 2022 की शुरुआत में कांग्रेस देश के तीन बड़े राज्यों पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता में थी जबकि झारखंड और महाराष्ट्र में गठबंधन में शामिल थी. पंजाब विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा और महाराष्ट्र में शिवसेना में बगावत के बाद से सत्ता हाथ से जाती रही. राष्ट्रपति चुनाव के बाद झारखंड में भी हालात बहुत ज्यादा अच्छे नहीं दिख रहे हैं. लोकल स्तर पर कांग्रेस के नेता गठबंधन से हटने और अकेले चुनाव लड़ने की बातें कर रहे हैं.
भाजपा ने आदिवासी महिला प्रत्याशी उतार कर विपक्षी खेमे में जिस तरह से सेंधमारी की है उससे 2024 के लोकसभा चुनाव की राह आसान होती दिख रही है, क्योंकि टूटा फूटा विपक्ष भाजपा के लिए उतनी परेशानी नहीं पैदा कर सकता.
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Tags: Draupadi murmu, Loksabha Elections, Rashtrapati ChunavFIRST PUBLISHED : July 18, 2022, 11:49 IST