‘उम्मीदों के डॉक्टर’ रोज़ाना 300 से ज्यादा लोगों को मुफ़्त खाना खिलाते हैं उदय मोदी
‘उम्मीदों के डॉक्टर’ रोज़ाना 300 से ज्यादा लोगों को मुफ़्त खाना खिलाते हैं उदय मोदी
12 लोगों से शुरू की गई सेवा आज 325 लोगों तक पहुंच गई है. अब उन्होंने तीन रसोई घर किराये पर ली हैं और सारा खाना वही बनता है. वह बताते हैं, “अब हमारा 11 लोगों का स्टाफ है जिसमें दो रसोइया हैं. हर रोज़ सुबह 6 बजे खाना बनना शुरू होता है और 10 बजे तक हमारे लोग डिलीवरी करने निकल जाते हैं. दोपहर के 1 बजे तक तीनों टेम्पो डिलीवरी करके लौट आते हैं.
श्रवण कुमार को उनके माता- पिता के प्रति समर्पण के लिए आज भी याद किया जाता है. परंतु उनसे प्रेरित 21वीं सदी के श्रवण कुमार से शायद ज़्यादा लोग वाफ़िक नहीं होंगे. आज के इस श्रवण कुमार को मुंबई के लोग प्यार से ‘उम्मीदों का डॉक्टर’ भी बुलाते हैं. गुजरात में पले-बढ़े डॉक्टर उदय मोदी जब 27 साल पहले मुंबई आए थे तो उन्हें ये अंदाज़ा भी नहीं था कि एक दिन वह इस सपनों की नगरी की उम्मीद बन जाएंगे.
न्यूज18 से बात करते हुए उदय बताते हैं कि उन्होंने 16 साल पहले, 2006 में ये टिफ़िन सेवा शुरू की थी. दरअसल, उनकी क्लिनिक में आए दो बुज़ुर्ग मरीजों ने उन्हें बताया कि उन्होंने कई दिनों से ठीक से खाना नहीं खाया है. पूछे जाने पर पता चला कि उनके बच्चों ने उन्हें छोड़ दिया है और उनकी देख रेख करने वाला कोई नहीं है. जब अपनी पत्नी से उन्होंने ये बात साझा की तो उनकी पत्नी ने कहा कि अगले दिन से वो खाना बना कर भेजेंगी और आस-पास में और भी लोग हैं तो जितने का हो सकेगा वो खुद बनाएंगी. वह बताते है, “फिर हमने आस पास के मंदिरों में बैनर लगवाए कि अगर लोगों की जान पहचान में ऐसा कोई बुज़ुर्ग है जो आर्थिक या शारीरिक कारणों से अक्षम हो तो हमें बताएं. हमें आश्चर्य हुआ जब पहले ही हफ़्ते में हमारे पास 12-13 नाम आए.”
श्रवण टिफ़िन के नाम से यह सेवा शुरू की
उन्होंने और उनकी पत्नी ने तो कभी सोचा भी नहीं था कि यह समस्या इतने बड़े स्तर पर है. पहले 12-13 लोगों का खाना रोज उनकी पत्नी ही बनाती थीं, लेकिन जैसे जैसे संख्या बढ़ने लगी उदय मोदी ने अपने स्वर्गवासी पिता के नाम पर ‘स्वर्गीय श्री हिम्मतलाल हरजीवनदास मोदी चैरिटेबल ट्रस्ट’ की स्थापना की. परंतु वो नहीं चाहते थे कि बुजुर्गों को ये पता चले कि उनके लिए टिफ़िन किसी ट्रस्ट के माध्यम से आ रहा है. उदय चाहते थे कि सभी माता-पिता को यही लगे की वह उनके बेटे हैं और उनका फर्ज़ है अपने सभी माता-पिता को खाना खिलाना, इसलिए उन्होंने श्रवण टिफ़िन के नाम से यह सेवा शुरू की.
आज 325 लोगों का बनता है खाना
12 लोगों से शुरू की गई सेवा आज 325 लोगों तक पहुंच गई है. अब उन्होंने तीन रसोई घर किराये पर ली हैं और सारा खाना वही बनता है. वह बताते हैं, “अब हमारा 11 लोगों का स्टाफ है जिसमें दो रसोइया हैं. हर रोज़ सुबह 6 बजे खाना बनना शुरू होता है और 10 बजे तक हमारे लोग डिलीवरी करने निकल जाते हैं. दोपहर के 1 बजे तक तीनों टेम्पो डिलीवरी करके लौट आते हैं. हमारे यहां केवल दोपहर का खाना वितरित किया जाता है. इसलिए हम लोगों को महीने भर की एक किट भी देते हैं जिसमें हम खाखरा, चाय पत्ती, चीनी, दंत मंजन, साबुन वगैरहा देते हैं. इस टिफ़िन सेवा का खर्च महीने का सात से आठ लाख रुपये आता है.”
रविवार को बनता है खास खाना
श्रवण टिफ़िन सेवा द्वारा वितरित टिफ़िन में रोज़ाना रोटी, सब्ज़ी, दाल, चावल जाता है परंतु हर रविवार को इन बुजुर्गों के लिए खास खाना बनता है. डॉ. मोदी इन बुजुर्गों के स्वास्थ का भी पूरा ध्यान रखते हैं इसलिए मधुमेह रोगियों को कम कैलोरी और कम चीनी वाला भोजन मिलता है. श्रवण टिफ़िन सेवा में रसोई की साफ सफाई और खाने की गुणवत्ता का भी पूरा ध्यान रखा जाता है. हर दिन जब तक उदय या उनकी पत्नी खाने को चख नहीं लेते हैं तब तक खाने को पैक नहीं किया जाता है. यह टिफ़िन सेवा पूर्वी भयंदर, वेस्ट भयंदर और मीरा रोड पर उपलब्ध है.
परिवार ने दिया साथ
डॉ. मोदी कहते है कि इस पूरे सफर में उनके परिवार ने पूर्ण रूप से उनका साथ दिया है. वो कहते है कि परिवार के सहयोग के बिना 16 सालों तक सेवा कर पाना नामुमकिन होता. वह आगे बताते है कि जब वो शूटिंग या क्लिनिक के कामों में व्यस्त रहते हैं तो उनकी पत्नी टिफ़िन का सारा काम संभालतीं हैं. और जब वो दोनों व्यस्त रहते हैं तो उनके बच्चे सारा कार्यभार संभाल लेते हैं.
उनका मानना है कि उनके यहां काम करने वाले सारे लोग उनके परिवार का ही हिस्सा हैं. जब भी कोई एक बीमार पड़ता है या किसी कारणवश काम पर नहीं आ पाता तो दूसरा व्यक्ति उसकी जगह लेकर कार्यभार संभाल लेता है. कई बार तो लोग न होने पर वो खुद खाना बनाकर पहुंचाते हैं.
स्वयंसेवी हैं सभी काम करने वाले
वह बताते हैं कि कई सारे लोग उनके ट्रस्ट से बतौर स्वयंसेवी जुड़े हैं. 3-4 स्वयंसेवी तो ऐसे भी हैं जो घर- घर जाकर बेड रिडन मरीजों को अपने हाथ से खाना खिलाते हैं. बहुत सारे कॉलेज स्टूडेंट्स हैं जो इन बुजुर्गों का जन्मदिन और सालगिरह मनाते हैं. हम तीन-चार महीने में इन बुजुर्गों को बाहर घूमाने भी ले जाते हैं और सारे त्योहार हम सब मिलकर एक साथ ही मनाते हैं.
लोग अपनी इच्छा से देते हैं दान
धीरे-धीरे हमारे साथ बहुत सारे लोग जुड़े हैं, लोग अपनी इच्छा और सामर्थ के मुताबिक सहायता कर देते हैं. ट्रस्ट को कोई ना कोई दाता मिल ही जाता है. उदय एक आयुर्वेदिक डॉक्टर होने के साथ साथ एक एक्टर और प्रोडूसर भी हैं. उनके मुताबिक उनकी एक्टिंग से जो भी पैसे आते हैं वो सब इस नेक काम के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. इसके साथ ही उनकी क्लिनिक की आमदनी का भी दस प्रतिशत वो टिफ़िन सेवा में डालते हैं. इसके साथ ही भयंदर मीरा के सारे डॉक्टर इन बुजुर्गों का इलाज बहुत ही कम फीस पर करते हैं.
बनाना चाहते हैं ‘माता- पिता का मंदिर’
बेसहारा बुजुर्गों को रोज़ पौष्टिक आहार मिले ये सुनिश्चित करने के बाद डॉक्टर उदय अब उनके लिए एक आवास का निर्माण करने में जुट गए हैं. वह बुजुर्गों के लिए कोई वृद्ध आश्रम नहीं बल्कि माता- पिता का मंदिर बनाना चाहते हैं जहां सारे बुज़ुर्ग अपने आखिरी दिनों में आराम से रह सकें. इसके लिए उन्होंने भयंदर के पास 25000 स्क्वायर फुट जगह ली है और प्लान को अप्रूवल के लिए भी दे दिया है.
उदय अपने ट्रस्ट के लिए बड़े ही अजीब भविष्य की कामना करते हैं. वो चाहते हैं कि भविष्य में जल्द से जल्द उनकी ये सेवा बंद हो जाए, ऐसा कोई बुज़ुर्ग ना हो जिसको उसके बच्चे त्याग दें.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी |
Tags: Inspiring story, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : July 12, 2022, 14:07 IST