RJ ने तय किया ‘बीट राजा’ से ‘ईट राजा’ तक का सफर मां के सपने को किया साकार

ईट राजा का मकसद जूस बेचना नहीं बल्कि eco- friendly तरीकों को बेचना है. वह कहते हैं, हमारी बिक्री जूस के वजह से कम और हमारे नायाब तरीकों की वजह से ज़्यादा होती है. हम लोगों को यह बताना चाहते हैं कि पर्यावरण के अनुकूल भी बिजनस मॉडल हो सकते हैं.

RJ ने तय किया ‘बीट राजा’ से ‘ईट राजा’ तक का सफर मां के सपने को किया साकार
दिखने में तो यह एक आम जूस की दुकान लगती है, लेकिन इसकी एक खासियत है जो इसे शहर की बाकी सभी या यूं कहें हर जूस की दुकान से अलग बनाती है. जो चीज़ इस जूस बार को सबसे अलग बनाती है वो है इसकी ‘ज़ीरो वेस्ट नीति.’ ‘ज़ीरो वेस्ट नीति’ वाला यह जूस बार, बेंगलुरु के आनंद राज के मौलिक विचारों का परिणाम है. आनंद राज, ईट राजा के नाम से भी जाने जाते हैं. न्यूज 18 से बात करते हुए वो अपनी दुकान के नाम के पीछे का एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं. वह कहते हैं कि बेंगलुरु में राजा शब्द काफ़ी सामान्य है, लोग इसका प्रयोग एक दूसरे को बुलाने के लिए किया करते हैं, इससे एक जुड़ाव महसूस करते हैं. इसलिए उन्होंने अपनी दुकान का नाम ईट राजा रखा है ताकि लोग जुड़ाव महसूस कर सकें. वह आगे कहते हैं कि हर भाषा के लोग हम से जुड़ सकें इसलिए हमने ईट इंग्लिश में और राजा कन्नड में लिखा है. हालांकि काफ़ी सारे लोगों ने इस बात का मज़ाक भी उड़ाया. पहले थे ‘बीट राजा’ आपको बात दें कि आज के ‘ईट राजा’ इससे पहले अपने शहर में ‘बीट राजा’ के नाम से प्रसिद्ध थे. आनंद उर्फ ‘बीट राजा’, जूस बार से पहले रेडियो में काम करते थे. उन्होंने 13 साल तक बतौर रेडियो jockey काम किया है और ‘बीट राजा’ के नाम से लोगों के बीच अपनी पहचान बनाई. आनंद ने तो शायद अपने सपने में भी जूस बार चलाने के बारे में नहीं सोचा होगा, लेकिन जीवन में अचानक आई त्रासदी ने तो उनकी पूरी दुनिया ही बदल दी. मां चाहती कि ये दोबारा खुले दरअसल 2017 में उनके पिता की मृत्यु हो गई, इससे पहले ये जूस बार उनके पिता ही चलाते थे. आनंद बताते हैं, “मेरे पिता भी नहीं चाहते थे कि मैं जूस बार चलाऊं इसलिए उनकी मृत्यु के पश्चात सात महीनों तक दुकान बंद थी परंतु मेरी मां ये चाहती थीं कि ये दुकान फिर से खुले. 2018 में इस दुकान की फिर से शुरुआत मेरी मां -सरोजा नागराज ने ही की थी. ‘ज़ीरो वेस्ट नीति’ से पहले भी हमने कई सारे प्रयोग किए थे, हमने इससे पहले ‘मोम made’ सामग्री बेचने का प्रयास किया था, पर उस व्यक्त ज़्यादा ग्राहक नहीं आते थे. इसलिए फिर एक साल बाद मैंने मां की मदद करने के लिए 2019 में रेडियो छोड़ कर दुकान संभालने का निर्णय लिया. मुझे लगा कि हमें ग्राहक लाने के लिए कुछ नायाब कुछ अलग करना होगा. 2019 में हमने फ्रूट कप की शुरुआत की थी. विदेश में घूमने के दौरान मिली प्रेरणा उनकी प्रेरणा के बारे में पूछने पर वह बताते हैं, “मुझे घूमने का बहुत शौक है इसलिए बाहर एक देश में मैंने ऐसा ही कुछ देखा तो वापस आकर सोचा क्यों ना हम यह अपनी दुकान में भी प्रयोग करें. सबसे पहला कप जो मैंने बनाया था वो तरबूज का था. यह हमारी पहली कोशिश थी, कुछ लोगों को अच्छा लगा, लेकिन ज़्यादातर लोगों को पसंद नहीं आया. फिर भी हमने कोशिश नहीं छोड़ी.फिर धीरे-धीरे हमने बाकी सारे फलों के साथ प्रयोग किया.” आनंद के मुताबिक उनकी इंजीनियरिंग की पढ़ाई और रेडियो का तजुर्बा उनके नए- नए प्रयासों को सफल बनाने में काफ़ी उपयोगी था. उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग का प्रयोग करके जब केले के छिलके के कप में लोगों को जूस दिया तो बहुतों को आश्चर्य हुआ कि क्या ये भी मुमकिन है!. सबसे ज्यादा बिकता है चिली अमरूद वह बताते हैं, “हमारा सबसे सफल प्रयास अमरूद के साथ था, मुझे याद है कि हम रेडियो में अक्सर ये बातें किया करते थे कि इस कंटेंट में मसाला नहीं है, मिर्ची नहीं है बस फिर क्या मैंने अपने अमरूद में भी मिर्च मसाला डाल कर चिली अमरूद बना डाला, अब ये हमारा सबसे ज़्यादा बिकने वाला जूस है.” उनके मुताबिक उनकी बिक्री जूस के वजह से कम और उनके नायाब तरीकों की वजह से ज़्यादा होती है. वह यह तक कहते हैं कि उनकी दुकान का मकसद जूस बेचना नहीं बल्कि eco- friendly तरीकों को बेचना है. वह लोगों को यह बताना चाहते हैं कि पर्यावरण के अनुकूल भी बिजनस मॉडल हो सकते हैं. पूरे दिन नहीं आता था कोई ग्राहक शुरुआती दिनों की कठिनाइयों के बारे में बात करते हुए आनंद उर्फ बेंगलुरु के ‘ईट राजा’ कहते हैं, “कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि बहुत लोगों ने स्ट्रॉ मांगा और हमारे मना करने पर वो वापस भी चले गए. जब मैं लोगों को समझाता था तो लोग नाराज़ हो जाते और कई बार तो पूरे-पूरे दिन दुकान पर कोई नहीं आता था. लेकिन फिर वक्त के साथ मैंने अपने समझाने के तरीके में भी सुधार किया और लोगों ने भी समझना शुरू किया.” आनंद अपनी मां के साथ मिलकर ये जूस बार चलाते थे, लेकिन फिर 2020 में कोरोना ने अपना कहर उन पर ढाया और उनसे उनकी मां को छीन लिया. अब आनंद अकेले ही ये जूस बार संभालते हैं. अपनी मां के शुरू किए गए कार्य को वो अभी भी जारी रखना चाहते हैं इसलिए वो अलग से होम made खाने का ऑर्डर भी लेते हैं जो उनकी मां की सहेलियों द्वारा पूरा किया जाता है. अपनी पहचान बनाने की चाहत आनंद हमेशा से पर्यावरण संरक्षण में अपना सहयोग देना चाहते थे और इस ‘ज़ीरो वेस्ट नीति वाले’ जूस बार ने उनको यह मौका दिया. वह कहते हैं कि वो ज़्यादा से ज़्यादा कोशिश करते हैं कि पर्यावरण को कोई नुकसान ना पहुंचे यहां तक की वो अपनी दुकान धोने के लिए संतरे के छिलके से बनाए गए बाइओ एन्ज़ाइम का प्रयोग करते हैं. रेडियो छोड़ कर जूस बार चलाने तक का आनंद का सफ़र काफ़ी रोमांचक था. जीवन में आए बदलावों के बारे में बताते हुए वह कहते हैं, “बतौर rj मैं एक सेलिब्रिटी वाली लाइफ जी रहा था और अच्छे खासे पैसे भी कमा रहा था. जीवन में कुछ उतार -चढ़ाव तो ज़रूर आए मगर अब बतौर ‘ईट राजा’ में पूरे देश भर में अपनी पहचान बना पा रहा हूं. इससे बड़ी बात मेरे लिए और क्या होगी.” भविष्य की योजना भविष्य की योजना के बारे में पूछे जाने पर वह कहते हैं, “भगवान की कृपा से अभी बिजनेस काफ़ी अच्छा चल रहा है. महीने में दो-तीन लाख का बिजनेस हो जाता है पर हमारा मकसद कभी भी जूस बेचना नहीं था इसलिए हम बाकी शहरों में भी ‘अपनी ज़ीरो वेस्ट नीति’ पर अमल करते हुए दुकान खोलना चाहते हैं.” ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें 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