झारखंड सिपाही भर्ती मौत मामला- नेता मातमपुरसी कर रहे या राजनीति

राजनेता लगातार उन परिवारों से मिलने जा रहे हैं जिनके घरों के चिराग की जान सिपाही बनने की दौड़ में चली गई. नेताओं की ये होड़ अब मातमपुरसी से ज्यादा राजनीतिक लगने लगी है.

झारखंड सिपाही भर्ती मौत मामला- नेता मातमपुरसी कर रहे या राजनीति
आबकारी या उत्पाद में सिपाही बनने के चक्कर में जान गंवा देने वाले नौजवानों के मामले पर झारखंड में सियासत भी गरमाई हुई है. एक के बाद एक नेता किसी न किसी नौजवान के परिवार वालों से मिलने जा रहे हैं. राज्य के नेताओं का तो उनके घरों में जाना रिवायत जैसा ही लगता है. राजनेता अक्सर क्षेत्र में या आस पास के लोगों के यहां ऐसे मौकों पर मातमपुरसी करने जाते हैं. लेकिन दूसरे राज्यों से आ कर नेताओं का जाना परंपराओं से अलग हट कर लगता है. इससे सियासत की गंध आती है. ताजा दौरा असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का है. कोई मुख्यमंत्री ऐसी स्थिति में जाकर सिर्फ मातमपुरसी करे तो ये अटपटा सा लगता है. सीएम का परिवार वालों से सिर्फ मिलने जाना राजनीतिक दौरे से कम नहीं लगता. झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा की गठबंधन सरकार है. भारतीय जनता पार्टी प्रतिपक्ष में है. विपक्षी नेता लगातार इस मामले पर सरकार को घेरे हुए थे. घेरना भी चाहिए. इसकी भी जांच होनी चाहिए कि क्या सरकार की ओर से भर्ती प्रक्रिया में क्या लापरवाही बरती गई. हालांकि इस घटना के बाद से झारखंड सरकार ने सिर्फ एक एक लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की. ये रकम पूरी तरह नाकाफी है. सरकारी भर्ती प्रक्रिया के दौरान एक जो नहीं बारह युवकों की मौत पर सरकार को कुछ ऐसा मुआवजा देना चाहिए था, जो भुक्तभोगी के परिवारों के जख्मों पर मरहम लगा सके. महज मातमपुरसी से काम नहीं चलने वाला. इनमें से ज्यादा गरीब, आदिवासी परिवारों से थे. अगर ये सिपाही बन जाते तो अपने परिवार का सहारा बनते. कई परिवारों ने उन युवाओं की अर्थियां अपने कंधों पर उठाई होंगी जिन्हें अपने परिवार बोझ उठाना था. ये भी पढ़ें : कांग्रेस बनाम भाजपा: हरियाणा में किसका पलड़ा भारी, कितनी टाइट है फाइट? आंकड़ों ने बता दी सियासी तस्वीर ये भी विचित्र है कि झारखंड में इस विभाग में सिपाही बनने के लिए एक घंटे में 10 किलोमीटर की दौड़ कराई जाती है. जबकि पंजाब, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में छह मिनट में एक किलोमीटर छह सौ मीटर की दूरी तक दौड़ना होता है. झारखंड में भी 2016 से पहले तक पांच मिनट में 1600 मीटर (1.6 किलोमीटर) की दौड़ कराई जाती रही. ये मौसम बहुत उमस वाला है. ऐसे में दौड़ वगैरह की प्रतियोगिता सुबह के अपेक्षाकृत ठंडे मौसम में करा लेनी चाहिए. नौजवानों की मौत के बाद सोरेन सरकार को इसकी सुधि आई और उसने नौ बजे के पहले दौड़ पूरा करने के निर्देश दिए. इसके अलावा दौड़ के केंद्रों पर जरूरी मेडिकल एड भी रखने के निर्देश दिए गए. लेकिन ये सब 13 युवाओं की जान जाने के बाद किया गया. इन्हें मुद्दा बनाने की बजाय अगर किसी दूसरे राज्य के मुखयमंत्री झारखंड आकर वास्तव में पीड़ित परिवारों से सहानुभूति जताना चाहते हैं तो वे अपने राज्य से इन मृत छात्रों के परिवार वालों के लिए कोई कल्याणकारी योजना दे सकते थे. आखिर मुख्यमंत्री हैं. अनुग्रह के आधार पर नौकरी देना भी उनके अख्तियार में है. अगर वे इस तरह से कोई राहत पीड़ितों के परिवार वालों को नहीं दे सकते तो सिर्फ मातमपुरसी को राजनीति का ही हिस्सा माना जाएगा. ये कोई ऐसा मसला नहीं है जिसमें राजनीति की जाय. निश्चित तौर से केंद्र सरकार से भी परिवारों को मदद की अपेक्षा रही होगी. लेकिन केंद्र की ओर से भी कोई मदद या पहल अभी तक नहीं की गई है. अलबत्ता, पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए नेताओं का रेला लगा रह रहा है. अब तक झामुमो प्रतिनिधि मंडल के अलावा बाबू लाल मरांडी और बिहार झारखंड के तमाम नेता पीड़ित परिवारों से मिल चुके हैं. Tags: Bihar Jharkhand News, BJP, CM Hemant Soren, CM Himanta Biswa SarmaFIRST PUBLISHED : September 9, 2024, 18:45 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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