OPINION: घर में खुला मैदान और जंग में बुरी हार मोदी की तुलना नेहरू से न करें

मोदी और नेहरू के तुलनात्मक अध्ययन में एक बुनियादी चीज़ है जिसे शायद कुछ लोगों ने ही सामने रखा है. मैं उस तरफ़ ध्यान दिलाना चाहता हूं. क्या ये सच नहीं है कि कांग्रेस पार्टी आज़ादी के आंदोलन की प्रणेता मानी गई? क्या उससे पहले कांग्रेस को कोई राजनीतिक विरोध झेलना पड़ा? ऐसा तो है नहीं. फिर जब 1951-52 में पहली लोकसभा के लिए चुनाव हुए तो क्या विपक्ष इतना मज़बूत था जो नेहरू को टक्कर दे सके? इसके बावजूद जवाहरलाल नेहरू की पार्टी को लगभग 45% वोट मिलते हैं. जब मोदी 2014 में आए तो लगभग 32% वोट पार्टी को मिला. अकेले बहुमत आई.

OPINION: घर में खुला मैदान और जंग में बुरी हार मोदी की तुलना नेहरू से न करें
नरेंद्र मोदी ने इतिहास रच दिया है. जवाहरलाल नेहरू के बाद लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने वाले देश के दूसरे नेता बन गए हैं. राष्ट्रपति भवन में जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मोदी को शपथ दिलाई तो उस दौरान भी और उससे पहले भी और शायद कल के बाद भी इसकी चर्चा होती रहेगी. मतलब मोदी और नेहरू की तुलना तेज होगी. मोदी और नेहरू के तुलनात्मक अध्ययन में एक बुनियादी चीज़ है, जिसे शायद कुछ लोगों ने ही सामने रखा है. मैं उस तरफ़ ध्यान दिलाना चाहता हूं. जब नेहरू प्रधानमंत्री बने तो उन पर गांधीजी की कृपा बरसी. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि कैसे पटेल को पीछे किया गया. ये सब जानते हैं. एक बार पीएम बनने के बाद क्या उस दौर में नेहरू को चुनौती देने वाली परिस्थितियां थी? क्या ये सच नहीं है कि कांग्रेस पार्टी आज़ादी के आंदोलन की प्रणेता मानी गई? क्या उससे पहले कांग्रेस को कोई राजनीतिक विरोध झेलना पड़ा? ऐसा तो है नहीं. फिर जब 1951-52 में पहली लोकसभा के लिए चुनाव हुए तो क्या विपक्ष इतना मज़बूत था जो नेहरू को टक्कर दे सके? इसके बावजूद क्या होता है? जवाहरलाल नेहरू की पार्टी को लगभग 45% वोट मिलते हैं. कांग्रेस पार्टी 489 लोकसभा सीटों में 364 सीटें हासिल करती है. और विपक्ष का हाल देख लीजिए. दूसरे नंबर पर सोशलिस्ट पार्टी बारह सीटों के साथ. फिर तमाम छोटी पार्टियां. मेरे कहने का मतलब यह है कि आज़ाद भारत का वो दौर था, जब राजनीतिक विचारधारा के आधार पर प्रतिस्पर्धी पार्टियां बन ही नहीं थी. और यही हाल 1957 के चुनाव में था. तब नेहरूजी लगभग 48 फ़ीसदी वोटों के साथ सत्ता में आए. यानी जब विरोध आज जैसा नहीं था तब भी वो 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट नहीं ला पाए. 1962 के चुनाव में वोट प्रतिशत फिर गिरा और कांग्रेस को 361 सीटें मिलीं. यहां ये जानना जरूरी है कि 1957 के चुनाव में ही भारतीय जनसंघ ने चार सीटें जीती थी, जो भारतीय जनता पार्टी की जन्मदाता पार्टी बनी. तभी अटल बिहारी वाजपेयी बलरामपुर से जीते थे. नेहरू के निधन, चीन युद्ध में हमारी बुरी गत और फिर लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता की रहस्यमय मौत के बाद 1967 के चुनाव होते हैं तो कांग्रेस की हालत खराब होती है. इस बीच निधन से पहले बड़ी चालाकी से नेहरू ने इंदिरा को ही प्रधानमंत्री बनाना सुनिश्चित कर दिया था. मात्र 10 साल के भीतर कांग्रेस 361 से 283 सीटों पर सिमट जाती है. और दूसरे नंबर पर स्वतंत्र पार्टी 44 सीटें के साथ, फिर तीसरे नंबर पर भारतीय जनसंघ को 30 सीटें मिलीं. इसके बाद सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट पार्टियां रहीं. कांग्रेस का वोट प्रतिशत 40 हो जाता है और छह राज्यों में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो जाती है. तुलना वाजिब नहीं ऐसी परिस्थिति में नेहरू से मोदी की तुलना वाजिब नहीं है. जब मोदी 2014 में आए तो लगभग 32% वोट पार्टी को मिला. अकेले बहुमत आई. 2019 में 37 प्रतिशत वोट मिले और 2024 में 36.6% वोट मिले, जबकि सामने विपक्षी दलों का महागठबंधन था. वैसा ही महागठबंधन जो इंदिरा को हराने के लिए 1977 के चुनाव में बना था. नेहरू की पार्टी इस गठबंधन का नेतृत्व कर रही थी. ऐसी परिस्थिति में तुलना ठीक नहीं है. मेरे कहने का मतलब ये नहीं कि मोदी की तीसरी जीत नेहरू से बड़ी है. कोई तुलना तभी ठीक होती है जब परिस्थितियां भी समान हो. नेहरूजी आधुनिक भारत के निर्माता रहे. समाजवादी सोच के साथ पूंजीवाद को भी बढ़ाया था, लेकिन तब हम 0 से ऊपर बढ़ रहे थे. इसमें कोई श़क नहीं कि बाद की कांग्रेसी सरकारों ने भी नेहरू के रास्ते पर देश के लिए ही काम किया. यह सिलसिला टूटता भी रहा. जनता पार्टी की सरकार बीच में बनी. पीवी नरसिंह राव ने नेहरू की पूरी नीति ही बदल दी और हम खुले बाज़ार की इकॉनामी बन गए. वो पहली गैर कांग्रेसी सरकार वाजपेयी की थी, जो पांच साल चली और उस दौरान भी नेहरू और इंदिरा गांधी की तरह ही ऐसे फ़ैसले लिए गए जो राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखता हो. इसके बाद मनमोहन सिंह की पांच साल के जो दो टर्म रहे उस दौरान हमने दोनों तस्वीरें देखीं. तेज़ रफ़्तार विकास और 2007-08 का आर्थिक संकट भी. जब 2014 में मोदी ने पहली बार सत्ता संभाल ली तो GDP की हालत भी ख़राब थी और हमारी विदेश नीति भी डांवाडोल थी. आज 10 साल बाद विश्व पटल पर भारत की तस्वीर देखिए. हम विषम परिस्थितियों से पहले भी गुजरे. 1965 के बाद कई जगहों में अकाल की स्थिति थी और मोदी के समय कोरोना वायरस. मोदी सरकार ने जिस तरीक़े से इसका सामना किया उसकी तारीफ़ पूरी दुनिया में हुई. इससे उबरते हुए आज जब मोदी तीसरी बार पीएम बने हैं तब भारत की सालाना विकास दर 8 फ़ीसदी के पार है. तब नेहरू के सामने तो ज़ीरो से ऊपर उड़ने का मौक़ा था, फिर भी 1950 से 1964 बीच जीडीपी 4.4 पर्सेंट पर सिमटी रही. हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ समाजवादी सोच का परिणाम थी या नीतियों में कोई गड़बड़ी थी इस पर मैं कोई सवाल नहीं उठाना चाहता. (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए jharkhabar.comHindi उत्तरदायी नहीं है.) Tags: Jawaharlal Nehru, Modi government, Narendra modiFIRST PUBLISHED : June 10, 2024, 08:44 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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