आज भी इन गलियों में सुनाई देती है ठक-ठक की आवाज 500 वर्ष पुराना है इतिहास
आज भी इन गलियों में सुनाई देती है ठक-ठक की आवाज 500 वर्ष पुराना है इतिहास
UP News Today: मिर्जापुर में करीब 500 साल पहले पीतल के बर्तन का कारोबार शुरू हुआ. 1868 ब्रिटिश गजेटियर में प्रसिद्ध पीतल के बर्तन के उल्लेख मिलते हैं. शहर के कसरहट्टी, गनेशगंज और चौबेटोला में वृहद स्तर पर बर्तनों को तैयार किया जाता है. इस कारोबार से करीब 25 सौ लोग जुड़े हुए हैं, जहां प्रतिदिन करीब चार टन पीतल के बर्तन तैयार किए जाते हैं. पीतल से गिलास, कटोरी, थार-परात बटुआ, हंडा, थाली, लोटा, मग, करछुल व अन्य बर्तन बनते हैं.
मुकेश पांडेय/मिर्जापुर: यूपी के मिर्जापुर में शहर की गलियों में गुजरते वक्त आपको ठक-ठक की आवाज जरुर सुनाई दी होगी. यह आवाज 500 वर्षों से पीतल नगरी मिर्जापुर के इतिहास को जीवंत किए हुए है. हालांकि, मॉर्डन जमाने में बर्तनों की चमक पहले से जरुर कम हुई है. पहले के जैसा बर्तनों की डिमांड नहीं है और स्टील के बर्तनों ने कारोबार को समेट दिया है. तीज-त्योहार व शादी समारोह के शुभ अवसरों पर ही बर्तन की मांग रहती है. ओडीओपी में चयन होने के बाद भी कारोबार को पंख नहीं लग सका.
मिर्जापुर में करीब 500 साल पहले पीतल के बर्तन का कारोबार शुरू हुआ. 1868 ब्रिटिश गजेटियर में प्रसिद्ध पीतल के बर्तन के उल्लेख मिलते हैं. शहर के कसरहट्टी, गनेशगंज और चौबेटोला में वृहद स्तर पर बर्तनों को तैयार किया जाता है. इस कारोबार से करीब 25 सौ लोग जुड़े हुए हैं, जहां प्रतिदिन करीब चार टन पीतल के बर्तन तैयार किए जाते हैं. पीतल से गिलास, कटोरी, थार-परात बटुआ, हंडा, थाली, लोटा, मग, करछुल व अन्य बर्तन बनते हैं.
अब दो से तीन महीने चलता है काम
कारोबारी अनिल अग्रवाल ने बताया कि पीतल के बर्तन का कारोबार काफी पहले से चला आ रहा है. एक समय ऐसा था कि यह कारोबार इतना फैला था कि बात करने की फुर्सत नहीं थी. सरकार की ओर से कच्चे और पक्के माल पर जीएसटी लगा दिया गया है. इससे कॉस्ट ज्यादा हो जा रही है. अन्य प्रदेशों में कच्चे माल की उपलब्धता आसानी से होने की वजह से यह कारोबार खत्म होता जा रहा है. यह कारोबार सिजिनल हो गया है. बस दो से तीन महीने कार्य चलता है.
नेपाल सहित पूरे भारतवर्ष में थी सप्लाई
कारोबारी अनिल अग्रवाल ने बताया कि पहले यहां से पीतल के बर्तन नेपाल व म्यामांर सहित पूरे भारतवर्ष में भेजे जाते थे. जलमार्ग सहित अन्य वाहनों से बर्तन एक्सपोर्ट किए जाते थे. अब यह कारोबार मंदी में चला गया है. यहां का बाजार मुरादाबाद, बिहार और पश्चिम बंगाल चला गया है. नई पीढ़ी कारोबार से जुड़ना नहीं चाह रही है. ओडीओपी में चयन होने के बाद भी कोई ग्रोथ नहीं हुआ.
पहले जैसा नहीं मिलता है काम
मजदूर राजकुमार गुप्ता ने बताया कि पहले की अपेक्षा कम काम मिलता है. शादी-विवाह के सीजन में काम मिलता है. बाकी दिनों तक घर पर बैठे रहते हैं. महीने में 8 से 10 दिन काम् करते हैं, जहां प्रतिदिन तीन सौ रुपये मजदूरी मिलता है. श्यामसुंदर ने बताया कि 20 वर्षों से पीतल के थाल तैयार कर रहे हैं. पहले से कारोबार कम हो गया है. वजह दाम ज्यादा हो गया है और डिमांड कम है. सरकार को इसपर ध्यान देना चाहिए.
Tags: Local18, Mirzapur news, Up news today, Uttar pradesh newsFIRST PUBLISHED : August 7, 2024, 17:01 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed