यूपी: हिंदुत्व पर भारी सोशल इंजीनियरिंग 2027 के चुनाव पर भी क्या पड़ेगा असर
यूपी: हिंदुत्व पर भारी सोशल इंजीनियरिंग 2027 के चुनाव पर भी क्या पड़ेगा असर
Lok Sabha Result 2024: 22 जनवरी 2025 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर के उद्घाटन के मौके पर पूरे उत्तर प्रदेश में जो माहौल था, उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि बीजेपी क्लीन स्वीप नहीं करेगी. लेकिन तीन महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव और उसके नतीजों ने सभी को चौंका दिया.
हाइलाइट्स उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम ने बीजेपी को चौंकाया, हिंदुत्व का मुद्दा भी नहीं आया काम समाजवादी पार्टी के पीडीए फॉर्मूला और सोशल इंजीनियरिंग चुनाव में हिट रही
लखनऊ. 2024 के लोकसभा चुनाव में वैसे तो NDA को बहुमत मिला है, लेकिन बीजेपी अपने बुते 272 का जादुई आंकड़ा पार करने में काफी पीछे रह गई. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह उत्तर प्रदेश में उसकी परफॉरमेंस रही. उत्तर प्रदेश में पिछले दो लोकसभा चुनावों में एक तरफ़ा जीत दर्ज करने वाली बीजेपी इस बार महज 33 सीट जीत दर्ज कर सकी, जबकि समाजवादी पार्टी को 37 और कांग्रेस के कहते में 6 सीटें आई. 2019 में सपा को 5 सीटें तो कांग्रेस को महज एक सीट पर जीत मिली थी. उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम ने न सिर्फ बीजेपी को चौंकाया है बल्कि पॉलिटिकल पंडितों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है. क्या हिंदुत्व पर सोशल इंजीनियरिंग भारी पड़ी? सपा-कांग्रेस गठबंधन की इस जीत का असर 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा? बीजेपी की करारी शिकस्त की मुख्य वजह समेत ऐसे कई सवाल हैं, जिन पर सियासी जानकार भी हतप्रभ हैं.
22 जनवरी 2025 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर के उद्घाटन के मौके पर पूरे उत्तर प्रदेश में जो माहौल था, उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि बीजेपी क्लीन स्वीप नहीं करेगी. लेकिन तीन महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव और उसके नतीजों ने सभी को चौंका दिया. यहां तक कि बीजेपी और आरएसएस के लिए हिंदुत्व की सबसे बड़ी प्रयोगशालाओं में से एक अयोध्या सीट पर पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. इतना ही नहीं संगमनगरी प्रयागराज में भी पार्टी की हार हुई जबकि वाराणसी में पीएम नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर कम रहा और वे महज डेढ़ लाख से कुछ अधिक मतों से जीते.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल के मुताबिक बीजेपी ने यूपी में सभी 80 सीटों और देश भर में 400 का नारा दिया. इस नारे को सपा और कांग्रेस ने हाथों हाथ लिया और जनता खासकर दलित व ओबीसी मतदाताओं में यह सन्देश देने में सफल रहे कि अगर बीजेपी 400 पार हो गई तो संविधान बदल देगी और आरक्षण खत्म हो जाएगा. जिसके बाद बसपा का प्रमुख वोटर कांग्रेस में घर वापसी करता दिखा. जिसका फायदा न सिर्फ कांग्रेस को मिला बल्कि सपा की सीटें 6 गुना से अधिक बढ़ गईं. बसपा का दलित वोटर सपा नहीं राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में इंडी गठबंधन को मतदान किया, ताकि बाबा साहेब का संविधान और आरक्षण बचा रहे. दूसरी तरफ बीजेपी नेता और प्रत्याशी जमीनी स्तर पर मतदाताओं को यह समझाने में नाकाम रहे कि संविधान या आरक्षण को कोई खतरा नहीं है. लेकिन 2024 का यह जनादेश 2027 में भी कायम रहेगा या बीजेपी इसका काट खोजने में कामयाब रहेगी, इसका जवाब तो आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन एक बात तो जरूर है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में जान फूंकने का काम किया है.
PDA फॉर्मूला भी रहा हिट
वरिष्ठ पत्रकार अग्निवेश कहते हैं कि 2019 में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन को सबसे मजबूत माना जा रहा था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बसपा का वोट बैंक सपा को ट्रांसफर नहीं हुआ. यह बात अखिलेश यादव कई बार कह भी चुके हैं. लेकिन इस बार कांग्रेस और सपा गठबंधन में बसपा का वोट इस वजह से शिफ्ट हुआ कि वह राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में कांग्रेस को बड़ा प्लेयर के रूप में देख रहा था. इसके अलावा समाजवादी पार्टी का PDA फार्मूला भी हिट रहा. उन्होंने बीजेपी के मुकाबले काफी समझदारी से टिकटों का बंटवारा किया.
1993 में भी हिंदुत्व पर भारी पड़ा था सोशल इंजीनियरिंग
वैसे यह पहला मौका नहीं है जब हिंदुत्व के एजेंडे पर सोशल इंजीनियरिंग भारी पड़ी हो. 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद जब बीजेपी की चार राज्यों में सरकार बर्खास्त कर दी गई थे. उसके बाद 1993 में हुए विधानसभा चुनावों में मुलायम सिंह और कांशीराम के गठबंधन के सामने राम मंदिर आंदोलन का मुद्दा कहीं नहीं टिक पाया. इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ, जिसे बीजेपी और आरएसएस भांप नहीं पाई. नतीजा यह रहा कि बड़ी संख्या में दलित और ओबीसी वोट, जिसमें बीजेपी के लाभार्थी वोटर में शामिल थे सपा और कांग्रेस की तरफ चले गए.
मुस्लिम वोटर्स ने भी एकमुश्त वोट गठबंधन के लिए किया
पहले और दूसरे चरण के बाद ही बीजेपी को अंदाजा हो गया था कि मामला हाथ से निकल रहा है. इसके बाद बीजेपी नेताओं की तरफ से हिन्दू-मुस्लिम वोट के ध्रुवीकरण की कोशिश की गई, लेकिन आरक्षण और संविधान के मुद्दे के सामने राम मंदिर कहीं नहीं टिका. इतना ही नहीं 2019 में जो मुस्लिम मतदाता बीजेपी की तरफ गए थे, उन्होंने भी इस बार गठबंधन के लिए एकमुश्त वोट किया. मुस्लिम मतदाताओं में इस बात का डर था कि अगर बीजेपी 400 पार गई तो UCC और जनसंख्या नियंत्रण जैसे कानून भी ला सकती है.
महंगाई, पेपरलीक और बेरोजगारी का मुद्दा भी रहा हावी
इसके अलावा विपक्ष के महंगाई, बेरोजगारी, पेपर लीक और अग्निवीर योजना का मुद्दा भी जोरशोर से उठाया गया. जिसकी वजह से भी जो युवा 2019 तक बीजेपी के साथ था, वह गठबंधन की तरफ जाता दिखा. वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल कहते हैं कि अग्निवीर योजना को लेकर जिस तरह अखिलेश यादव और राहुल गांधी हमलावर रहे, उसका असर युवाओं पर पड़ा. अब सवाल
Tags: 2024 Lok Sabha Elections, Loksabha Election 2024FIRST PUBLISHED : June 5, 2024, 08:14 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed