37 साल पहले पिता ने तोड़ा पुलिस बनने का सपना अब बेटी को सभी क्यों कर रहे सलाम

Wayanad Landslide News: 57 वर्षीय विजयकुमारी मुप्पयनाड पंचायत में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं. करीब एक हफ्ते पहले दो जगह हुए भूस्खलन के बाद वायनाड के आपदा वाली जगह पर पहुंचने वाली वह पहली महिला स्वयंसेवक भी थीं.

37 साल पहले पिता ने तोड़ा पुलिस बनने का सपना अब बेटी को सभी क्यों कर रहे सलाम
नई दिल्ली: सपने कब हकीकत में बदल जाए, कोई नहीं जानता. सारे टूटे सपने मरते नहीं हैं. कुछ तो विषम परिस्थितियों में भी अपनी राह खोज ही लेते हैं. एक महिला के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है. सालों पहले एक सपना देखा था, मगर पिता ने हकीकत नहीं होने दिया. मगर केरल के वायनाड त्रासदी में उस महिला को उन टूटे सपनों को फिर से जिंदा करने का मौका मिला. जी हां, 37 साल पहले आंगनवाड़ी वर्कर्स विजयकुमारी एनएस ने पुलिस बनने का सपना देखा था. उन्होंने अपने सपने को हकीकत में बदल भी दिया था. मगर उनके पिता ने ऐन वक्त पर पुलिस भर्ती का ऑफर लेटर फाड़ दिया. पिता द्वारा फाड़ दिए गए पुलिस भर्ती के नियुक्ति पत्र के कारण वह पुलिसवाली न बन सकीं. मगर आंगनवाड़ी वर्कर विजयकुमारी एन एस को वायनाड त्रासदी के बाद अपने अधूरे सपने से प्रेरणा मिली. वे इकलौती महिला स्वयंसेवक के तौर पर वर्दीधारी पुलिस बलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर शवों को निकालने और लाने-ले जाने में जुटी रहीं. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, 57 वर्षीय विजयकुमारी मुप्पयनाड पंचायत में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं. करीब एक हफ्ते पहले दो जगह हुए भूस्खलन के बाद वायनाड के आपदा वाली जगह पर पहुंचने वाली वह पहली महिला स्वयंसेवक भी थीं. 30 जुलाई को सुबह 4 बजे फोन की घंटी से उनकी नींद खुली और इसके बाद से उनका मिशन शुरू हो गया. फोन करने वाले ने बताया कि चंद घंटों के भीतर मुंडक्कई और चूरलमाला में दो भूस्खलन हुए हैं और तबाही मची हुई है. इसके बाद विजयकुमारी की नींद उड़ गई. वह तुरंत घर से निकलीं और मूसलाधार बारिश में स्कूटर दौड़ाती हुई चूरलमाला पहुंचीं. वे सुबह करीब 5 बजे वहां पहुंचीं तो देखा कि उनका जाना-पहचाना इलाका कीचड़ और मलबे के ढेर में तब्दील हो चुका है. विजयकुमारी ने तुरंत बचाव कार्य में शामिल होने की पेशकश की. उन्होंने अधिकारियों को बताया कि वह प्रशिक्षित सिविल डिफेंस स्वयंसेवक हैं. इसी दिलेरी की वजह से शाम 8 बजे तक उन्होंने 17 शवों को निकालने में मदद की. इस घटना को लेकर उन्होंने कहा कि नजारा विचलित करने वाला था, लेकिन मैं मुंह नहीं मोड़ सकती थी. अगले दो दिनों तक आंगनवाड़ी वर्कर विजयकुमारी ने मेप्पडी में बनाए गए अस्थायी मुर्दाघर में अथक परिश्रम किया. यहां नीलांबूर से लाए गए शवों और शरीर के अंगों को रखा गया था. उन्होंने बताया, ‘मुझे अपनी भावनाओं पर लगातार काबू रखना पड़ रहा था. मुझे लगा कि मेरे होने से उन महिलाओं को मदद मिलेगी जो अपनों की पहचान करने आ रही थीं. क्षत-विक्षत शवों को देखकर कुछ महिलाएं बेहोश हो गईं.’ विजयकुमारी कराटे में ब्राउन बेल्ट विजेता रही हैं. विजयकुमारी की मानें तो पुलिस बल में शामिल होने का उनका सपना पूरा न हो सका, लेकिन इसकी वजह से उन्हें आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की पारंपरिक भूमिका से बाहर नहीं जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘मैं लंबे समय से समाज सेवा में सक्रिय रही हूं. यहां तक ​​कि जब भी मौका मिला तो मैंने मेडिकल पैलिएटिव केयर का काम भी किया है. इससे पहले भी जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की स्वयंसेवक के तौर पर वह पहले भी चूरलमाला और मुंडक्कई प्रखंडों के सभी घरों का दौरा कर चुकी थीं. Tags: Kerala, Kerala News, Natural DisasterFIRST PUBLISHED : August 5, 2024, 06:50 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed