क्या रद्द हो सकती हैं विधानसभा के 72 पदों पर की गई बैकडोर भर्तियां सचिव की भी जा सकती है कुर्सी
क्या रद्द हो सकती हैं विधानसभा के 72 पदों पर की गई बैकडोर भर्तियां सचिव की भी जा सकती है कुर्सी
उत्तराखंड विधानसभा की अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने 72 पदों पर बैकडोर से की गई भर्तियों की जांच शुरू करा दी है. प्रदेश में नियमविरुद्ध भर्ती के आरोपों को लेकर इन दिनों सियासत गर्माई हुई है. विधानसभा से लेकर विभिन्न विभागों के लिए की गई भर्ती प्रक्रियाओं में गड़बड़ी की जांच हो रही है, लेकिन विपक्ष लगातार सरकार पर आरोप लगा रहा है.
देहरादून. विधानसभा में बैकडोर भर्तियों के मामले में रिटायर्ड आईएएस डीके कोटिया की अध्यक्षता में बनी जांच कमेटी ने काम शुरू कर दिया है. जांच कमेटी की सिफारिश क्या होती है, ये तो रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा. लेकिन सरसरी तौर पर जानकार भी मान रहे हैं कि विधानसभा की नियुक्तियों में नियमों का सिरे से उल्लंघन हुआ है. कार्मिक विभाग में अपर सचिव के पद से हाल ही में रिटायर हुए एसएस वल्दिया का कहना है कि विधानसभा स्पीकर को विशेषाधिकार है. लेकिन यह अधिकार केवल सदन की कार्यवाही के संचालन के मामले में होता है. पब्लिक इम्प्लायमेंट में विधानसभा अध्यक्ष को किसी तरह का विशेषाधिकार नहीं है. उन्हें नियमों का पालन करना होगा.
दरअसल, उत्तराखंड विधानसभा में 72 पदों पर मंत्रियों के रिश्तेदार, बीजेपी और आरएसएस नेताओं के रिश्तेदार नियुक्त किए जाने के मामले से उत्तराखंड की सियासत इन दिनों गरम है. विपक्ष के भारी दबाव, जनता में आक्रोश के बाद बीते शनिवार को ही विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने राज्य बनने से लेकर अब तक विधानसभा में हुई सभी नियुक्तियों पर जांच बैठा दी. इसके दायरे में विधानसभा सचिव की विवादास्पद नियुक्ति भी होगी. अध्यक्ष ने जांच होने तक विधानसभा सचिव के ऑफिस को भी सील करा दिया और उन्हें फोर्स लीव पर भेज दिया गया.
तत्कालीन स्पीकर ने दी थी ये दलील
पिछले साल 72 पदों पर बैकडोर नियुक्ति और सचिव को नियमविरुद्ध प्रमोशन दिए जाने के मामले में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष और मौजूदा सरकार में कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल का कहना था कि ये उनका विशेषाधिकार था. मगर विशेषज्ञ इस तर्क से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. उत्तराखंड सचिवालय में कार्मिक विभाग में अपर सचिव रहे एसएस वाल्दिया विधानसभा सचिवालय की सेवा नियमावली का हवाला देते हैं. वे कहते हैं कि सचिव पद पर मौलिक रूप से नियुक्त अपर सचिवों में से ही किसी को सीनियरिटी के आधार पर प्रमोशन देकर सचिव बनाया जा सकता है. या फिर न्यायिक सेवा के जिला जज श्रेणी के अधिकारी की प्रतिनियुक्ति से ये पद भरा जा सकता है. लेकिन, विधानसभा में सचिव मुकेश सिंघल की नियुक्ति में इनमें से किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया.
सिंघल की नियुक्ति के बाद भी झोल
मुकेश सिंघल को प्रमोशन पर प्रमोशन दिया गया, इस तथ्य को छोड़ भी दिया जाए तो उनकी मूल नियुक्ति प्रशासनिक कैडर की थी ही नहीं. वे दूसरी सेवा के अधिकारी हैं. उनकी नियुक्ति शोध एवं संदर्भ अधिकारी के पद पर हुई थी. लिहाजा, नियमानुसार मुकेश सिंघल विधानसभा सचिव बन ही नहीं सकते हैं. यही नहीं उन्हें डिप्टी सेक्रेटरी से लेकर ज्वाइंट सेक्रेटरी, अपर सचिव और सचिव पद तक बिना प्रोसेस फॉलो किए प्रमेाशन पे प्रमोशन दे दिए गए.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
जानकार कहते हैं कि संविधान के आर्टिकल 16 में जहां समानता के अधिकार की बात है, तो वहीं आर्टिकल 14 में पब्लिक इम्पलाइमेंट में समानता के अधिकार की बात कही गई है. कोई भी विशेषाधिकार पिक एंड चूज नहीं कर सकता. अन्यथा ये संविधान की मूल भावना के विपरीत माना जाएगा. इसी तरह तमाम अन्य नियुक्तियों में भी नियमों का जमकर उल्लंघन हुआ है. इसीलिए जांच के बाद कार्यवाही तय मानी जा रही है. सचिव मुकेश सिंघल पर तो गाज गिरना करीब-करीब तय है. बैकडोर नियुक्तियां भी रदद की जा सकती हैं. हालांकि तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष एवं वर्तमान में कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल इस जांच का स्वागत कर रहे हैं. लेकिन वे अपने विशेषाधिकार वाली बात पर अब भी कायम हैं.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी |
Tags: Dehradun news, ScamFIRST PUBLISHED : September 05, 2022, 18:26 IST