नया साल तो मना रहे क्या मालूम है कि कभी हिंदू-मुस्लिमों ने किया था इसका विरोध

New Year 2025: नए साल 2025 के स्वागत में भारत में जमकर जश्न हुआ. क्या आपको मालूम है कि जब अंग्रेजी ग्रिगोरियन कैलेंडर लागू हो रहा था तो हिंदू और मुसलमानों ने जमकर विरोध किया था.

नया साल तो मना रहे क्या मालूम है कि कभी हिंदू-मुस्लिमों ने किया था इसका विरोध
हाइलाइट्स ईस्ट इंडिया कंपनी पहले केवल अपने कामों में अंग्रेजी कैलेंडर का इस्तेमाल करती थी 1858 में उसने पूरी तरह से देश में इसको लागू कर दिया भारत में इसका बड़ा विरोध हुआ लेकिन प्रशासनिक कामकाज इसी से होने लगा भारत में अंग्रेजी कैलेंडर यानि ग्रिगोरियन कैलेंडर पूरी तरह से 1858 में लागू किया गया, तब इसका बहुत विरोध हुआ. क्योंकि अंग्रेज सरकार ने सरकारी कामकाज और अन्य कामों में इसे लागू करने का फैसला किया था. हिंदू और मुसलमानों ने इसका जमकर विरोध किया.देशभर में इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई. हिंदू संगठनों ने तो इसके खिलाफ आंदोलन ही छेड़ दिया. आखिर उन्होंने क्यों इसका विरोध किया था भारत में ग्रिगोरियन कैलेंडर को 1752 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अपनाया गया. उसी साल इसे ब्रिटेन में लागू किया गया था.  हालांकि तब ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभाव क्षेत्र देश में उतना नहीं था, जितना बाद के कुछ दशकों में होता चला गया. तब ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे अपने कब्जे वाले इलाकों में प्रशासनिक और व्यापारिक कामों को सरल और मानकीकृत करने के लिए लागू किया. 100 साल बाद इसे 1858 में पूरी तरह से लागू कर दिया. तब भारत में सारा कामकाज ग्रिगोरियन कैलेंडर से ही होने लगा. क्यों हुआ अंग्रेजी कैलेंडर का विरोध तब इसका बहुत विरोध हुआ. भारत में ग्रिगोरियन कैलेंडर को अपनाने का विरोध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कारणों से हुआ. भारत में पहले से ही विक्रम संवत, शक संवत, और अन्य पारंपरिक पंचांगों का उपयोग होता था, जिसके जरिए धार्मिक त्योहार, सामाजिक काम और कृषि आधारित समय का निर्धारण होता था. लिहाजा भारतीय संस्कृति के लिहाज से हमारा पारंपरिक कैलेंडर ज्यादा महत्वपूर्ण था. इसे भारतीय संस्कृति पर आक्रमण माना गया ग्रिगोरियन कैलेंडर को अपनाने से पारंपरिक कैलेंडरों के महत्व में कमी आई, जिससे धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाएं आहत हुईं. जब ब्रिटिश प्रशासन ने इसे पूरे देश में लागू किया तो इसे भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक स्वतंत्रता पर एक आक्रमण माना गया. क्योंकि ये काम कभी मुगलों ने भी नहीं किया था. इसे औपनिवेशिक नियंत्रण और पश्चिमीकरण के प्रतीक के रूप में देखा गया. ज्योतिषियों, पंडितों और धार्मिक नेताओं ने किया विरोध चूंकि ग्रिगोरियन कैलेंडर भारतीय त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों के समय निर्धारण से मेल नहीं खाता था. इससे धार्मिक समारोहों और पंचांग आधारित परंपराओं में भ्रम की स्थिति पैदा हुई. स्थानीय पंडितों, ज्योतिषियों और धार्मिक नेताओं ने इसका विरोध किया. बड़ा विरोध काशी के पंडितों और ज्योतिषियों की ओर से हुआ. क्योंकि वे पारंपरिक भारतीय कैलेंडरों को अधिक प्रामाणिक और उपयोगी मानते थे. कई समाज सुधारकों ने भी इसे भारतीय संस्कृति और परंपराओं को कमजोर करने वाला कदम माना. गांधीजी ने किस तरह किया विरोध महात्मा गांधी ने भी इसका विरोध किया. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ग्रिगोरियन कैलेंडर को पश्चिमी आधिपत्य का प्रतीक मानते हुए भारतीय परंपराओं को पुनर्जीवित करने की मांग उठाई गई. महात्मा गांधी और अन्य नेताओं ने भारतीय परंपराओं को प्राथमिकता देने पर जोर दिया. गांधीजी “स्वदेशी” और “स्वराज” की विचारधारा के समर्थक थे. उनका मानना था कि भारत को अपने फैसले खुद लेने चाहिए, चाहे वह शिक्षा प्रणाली हो, न्याय प्रणाली, या सांस्कृतिक मानदंड. मुस्लिम क्यों कर रहे थे अंग्रेजी कैलेंडर की खिलाफत विरोध करने वालों में केवल हिंदू संगठन ही नहीं थे बल्कि मुस्लिमों ने भी इसकी खिलाफत की. मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने इस आधार पर ग्रिगोरियन कैलेंडर का विरोध किया कि यह इस्लामी हिजरी कैलेंडर की अनदेखी करता है. हिजरी कैलेंडर इस्लामी परंपराओं और धार्मिक आयोजनों के लिए महत्वपूर्ण था. इसे ग्रिगोरियन कैलेंडर के साथ बदलना मुस्लिमों को मंजूर नहीं था. आर्य समाज ने विरोध किया तो स्वदेशी आंदोलन से जुड़े कुछ समूहों ने भी ग्रिगोरियन कैलेंडर को पश्चिमी सांस्कृतिक प्रभुत्व का प्रतीक माना. ज्योतिषाचार्यों और पंचांग समितियों ने जोर दिया कि ग्रिगोरियन कैलेंडर भारतीय जलवायु, कृषि, और सामाजिक-धार्मिक अनुष्ठानों के लिए उपयुक्त नहीं है. मुगल शासन में कौन सा कैलेंडर लागू था मुगल शासन के दौरान भारत में मुख्य रूप से इस्लामी हिजरी कैलेंडर का उपयोग आधिकारिक और धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाता था. हालांकि क्षेत्रीय परंपराओं और कृषि संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अन्य कैलेंडरों का भी उपयोग होता था. 1. हिजरी कैलेंडर – हिजरी कैलेंडर इस्लामी परंपरा पर आधारित है और इसे चंद्र कैलेंडर के रूप में जाना जाता है. – यह 354-355 दिनों का होता है और 12 चंद्र महीनों में विभाजित होता है. – मुगलों ने अपने प्रशासनिक और धार्मिक कार्यों के लिए हिजरी कैलेंडर का उपयोग किया – इस कैलेंडर का उपयोग मुख्य रूप से इस्लामी त्योहारों (जैसे ईद, रमजान) और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए किया जाता था. 2. फसली कैलेंडर (तारीख-ए-इलाही) अकबर ने प्रशासनिक और कृषि कार्यों की जरूरतों को पूरा करने के लिए 1584 ई. में एक नया कैलेंडर शुरू किया, जिसे फसली कैलेंडर या तारीख-ए-इलाही कहा गया. यह कैलेंडर सौर चक्र पर आधारित था और इसे हिंदू पंचांग और हिजरी कैलेंडर के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए तैयार किया गया था. इसका उपयोग मुख्य रूप से भूमि राजस्व संग्रह और कृषि गतिविधियों के लिए किया जाता था. तारीख-ए-इलाही का पहला वर्ष 1556 ई. (अकबर के राज्याभिषेक का वर्ष) माना गया. 3. हिंदू पंचांग मुगलों के शासनकाल में हिंदू प्रजा और क्षेत्रीय शासक अपने धार्मिक और सांस्कृतिक उद्देश्यों के लिए विक्रम संवत और शक संवत जैसे पारंपरिक हिंदू कैलेंडरों का उपयोग करते थे. ये कैलेंडर धार्मिक त्योहारों, सामाजिक समारोहों, और कृषि कार्यों के लिए उपयोगी थे. 4. अन्य क्षेत्रीय कैलेंडर भारत में विभिन्न क्षेत्रों में अपने-अपने स्थानीय कैलेंडर प्रचलित थे. उदाहरण के लिए बंगाल में बंगाली कैलेंडर, दक्षिण भारत में तमिल कैलेंडर, गुजरात में गुजराती कैलेंडर. मुगल प्रशासन ने इन क्षेत्रीय परंपराओं को पूरी तरह समाप्त नहीं किया और इन्हें जारी रहने दिया. Tags: Happy new year, New year, New Year CelebrationFIRST PUBLISHED : January 1, 2025, 15:14 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed