Explainer: अगर एक देश एक चुनाव लागू हुआ तो कितना पैसा बचेगा
Explainer: अगर एक देश एक चुनाव लागू हुआ तो कितना पैसा बचेगा
केंद्रीय कैबिनेट ने फिर एक देश एक चुनाव के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. देखना होगा कि सरकार क्या इस पर अगले सत्र में बिल लाएगी या इससे पहले इस पर बहस कराएगी. जानते हैं कि ऐसा होने पर कितना खर्च कम होगा.
हाइलाइट्स हालिया लोकसभा चुनावों में एक लाख करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान सारे राज्यों की विधानसभा चुनावों में 80,000 करोड़ से ज्यादा खर्च होता है भारत का चुनाव दुनिया के सबसे महंगे चुनावों में शीर्ष पर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्रीय कैबिनेट ने एक मीटिंग वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है. हालांकि अभी ये साफ नहीं है कि सरकार इससे संबंधित बिल को कब संसद में लाएगी. सरकार का इरादा इसके बिल को पेश करने से पहले इस पर चर्चा करानी चाहती है. सरकार के रुख के बाद ये सवाल जायज है कि अगर ऐसा बिल संसद में आया और कानून बन गया तो चुनावों में कितना खर्च कम हो जाएगा.
मोटे तौर पर इस साल के शुरू में भारत में जो लोकसभा चुनाव हुए तो उन पर एक लाख करोड़ का खर्च आया. ये आंकड़ा चुनाव आयोग का है. लिहाजा मान सकते हैं कि ये खर्च कुछ ज्यादा भी हो सकता है. लेकिन ये तय है कि ये लोकसभा चुनाव 2024 दुनिया का सबसे महंगा चुनाव था. अमेरिका में 2020 में हुए प्रेसीडेंट इलेक्शन से भी कहीं ज्यादा खर्चीला और महंगा.
पिछले यूपी चुनाव में कितना खर्च हुआ
देश में जब विधानसभा चुनाव होते हैं तो उन पर मोटे तौर पर कितना खर्च आता है, इसका मुकम्मल डाटा उपलब्ध नहीं है लेकिन यूपी यानि उत्तर प्रदेश में जब 2022 में विधानसभा चुनाव हुए तो उस पर 6000 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. यूपी विधानसभा सीटों के लिहाज से देश की सबसे बड़ी विधानसभा है. देश की सबसे छोटी विधानसभा में उत्तर पूर्वी राज्य से लेकर गोवा और हरियाणा जैसे छोटे राज्य शामिल हैं.
सबसे छोटे राज्य गोवा विधानसभा चुनावों में कितना खर्च
आंकड़ों के अनुसार गोवा में जब वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव हुए तो सभी सियासी दलों और निर्दलियों ने मिलकर वहां करीब 100 करोड़ रुपए खर्च किए. इसके अलावा चुनाव आयोग ने मोटे तौर पर इस राज्य में चुनाव कराने में करीब 20-25 करोड़ रुपए खर्च किए होंगे. इस लिहाज से भारत के सभी 28 राज्यों में विधानसभा चुनावों में होने वाला खर्च भी अलग है. तो ऐसा लगता है कि देशभर में इन विधानसभाओं चुनावों पर होने वाला खर्च भी अमूमन एक लाख करोड़ रुपए के आसपास होना चाहिए.
दुनिया के सबसे महंगे चुनावों में शीर्ष 4 देश
वन नेशन वन इलेक्शन कराने पर चुनावी खर्च में कितनी कमी आएगी, ये बताने से पहले हम ये देख लेते हैं कि हाल फिलहाल दुनिया के सबसे महंगे 04 चुनाव कौन से रहे हैं.
1. भारत (2024): भारत में 2024 के लोकसभा चुनाव अब तक के सबसे महंगे चुनाव थे, जिसमें एक लाख करोड़ रुपए खर्च हुए. वर्ष 2019 में चुनावों में 55,000 से 60,000 करोड़ रुपए खर्च हुए थे.
2. संयुक्त राज्य अमेरिका (2020): चार साल पहले अमेरिका का प्रेसीडेंट इलेक्शन अमेरिकी इतिहास में सबसे महंगे चुनावों में था, जिसमें कुल खर्च लगभग $14.4 बिलियन (लगभग ₹1.2 लाख करोड़) होने का अनुमान है. इस आंकड़े में उम्मीदवारों के खर्च और अन्य खर्च शामिल हैं.
3. संयुक्त राज्य अमेरिका (2016): 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में भी खूब खर्च देखा गया. जिसका अनुमान लगभग 6.5 बिलियन डॉलर (55,000 करोड़ रुपए) था.
4. ब्राजील (2018): 2018 में ब्राजील के आम चुनावों में खूब खर्च हुआ. जो करीब 2 बिलियन डॉलर (17,000 करोड़ रुपए) था.
खर्चीले के साथ ज्यादा दिनों में फैले हुए
भारतीय चुनाव रिकॉर्डतोड़ खर्चीले तो होते जा ही रहे हैं, साथ ही काफी लंबे दिनों में होते हैं. मसलन हालिया लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया 44 दिनों में फैली रही. कश्मीर विधानसभा चुनाव ही चार चरणों में हो रहे हैं.
पहले आम चुनावों में कितना खर्च हुए थे
जब भारत में 1951-52 में हुए पहले आम चुनावों हुए थे तो लोकसभा और विधानसभा दोनों के चुनाव साथ ही हुए थे, इस पर कुल मिलाकर 10.5 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. आम चुनाव इसे तब इसीलिए कहा गया क्योंकि देश और राज्यों दोनों के चुनाव साथ हो रहे थे.
कितनी बचत होगी तब चुनावों में
केंद्र सरकार का दावा है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने से खर्च में काफी बचत हो सकती है. इस बचत को लेकर दो तीन अलग अनुमान हैं.
– भारत के विधि आयोग ने अनुमान लगाया है कि एक राष्ट्र, एक चुनाव से अलग-अलग चुनावों पर होने वाले व्यय में 4,500 करोड़ रुपये ($615 मिलियन) तक की बचत हो सकती है.
– नीति आयोग की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि चुनावों की आवृत्ति कम करने से 7,500 करोड़ रुपये से लेकर 12,000 करोड़ रुपये ($1 बिलियन से $1.6 बिलियन) तक की बचत हो सकती है.
इसका दूसरा असर क्या होगा
– भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) का तर्क है कि एक साथ चुनाव कराने से परियोजना कार्यान्वयन में होने वाली देरी को प्रभावी ढंग से कम किया जा सकेगा. यानि इसका देश के दूसरे कामों पर होगा और इस हिसाब से केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा चुनावों के संचालन में किए जाने वाले कुल व्यय का करीब आधा हिस्सा बचेगा.
– प्रत्यक्ष मौद्रिक बचत के अलावा, एक राष्ट्र, एक चुनाव प्रशासनिक मशीनरी और सुरक्षा बलों पर दबाव को भी कम कर सकता है, संसाधनों का बेहतर उपयोग कर सकता है. शासन और सार्वजनिक सेवाओं में व्यवधान को कम कर सकता है.
इसके लिए क्या करना होगा
एक साथ चुनाव लागू करने के लिए संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन करना होगा. इसके अलावा, राजनीतिक आम सहमति बनाने, लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कायम रखने और राज्य सरकारों की स्थिरता सुनिश्चित करने जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा.
भारत में अलग क्षेत्रों में कैसे चुनावों में खर्च भी अलग होगा
उत्तर भारत: उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे क्षेत्रों में उनके बड़े मतदाता आधार और प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच ज्यादा कंपटीशन होने से ज्यादा खर्च होता है. रैलियों और विज्ञापनों सहित प्रचार की लागत काफी अधिक हो जाती है.
पश्चिम भारत: महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में भी चुनावी खर्च बढ़ जाता है. खासकर शहरी क्षेत्रों में जहां मीडिया अभियान अधिक प्रचलित हैं. संपन्न उम्मीदवारों की उपस्थिति भी खर्च को बढ़ा देती है.
दक्षिण भारत: तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में अक्सर अच्छी तरह से वित्तपोषित राजनीतिक दल होते हैं जो स्थानीय अभियानों में भारी निवेश करते हैं. यहां व्यय उत्तरी राज्यों की तुलना में जमीनी स्तर पर लामबंदी पर अधिक और राष्ट्रीय मीडिया पर कम केंद्रित होता है.
पूर्वी भारत: पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में स्थानीय पार्टी की ताकत के आधार पर खर्च अलग हो सकता है. उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस अपनी मज़बूत प्रचार रणनीतियों के लिए जानी जाती है, जिससे लागत बढ़ जाती है.
पूर्वोत्तर भारत: इस क्षेत्र में छोटी आबादी के कारण प्रचार लागत कुल मिलाकर कम हो जाती है
Tags: 2024 Lok Sabha Elections, Assembly elections, Lok sabha, One Nation One Election, UP Vidhan SabhaFIRST PUBLISHED : September 18, 2024, 20:47 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed