शेख हसीना का पासपोर्ट भारत के लिए मुसीबत 12 दिन और अब क्या हैं ऑप्शन

Sheikh Hasina: बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पर शेख हसीना के प्रत्यर्पण का दबाव है. BNP और जमात ए इस्लामी बार-बार यह मांग कर रहे हैं. पर भारत उन्हें क्यों वापस नहीं भेजना चाहेगा?

शेख हसीना का पासपोर्ट भारत के लिए मुसीबत 12 दिन और अब क्या हैं ऑप्शन
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना तख्तापलट के बाद से ही भारत में हैं. वह 5 अगस्त को अपनी छोटी बहन शेख रेहाना के साथ इंडिया आई थीं और 28 दिनों से यहीं हैं. बांग्लादेश में उनके खिलाफ अबतक मर्डर-किडनैपिंग जैसे 50 से ज्यादा केस दर्ज हो चुके हैं. मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार शेख हसीना के प्रत्यर्पण का भी दबाव है. अंतरिम सरकार में विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने रॉयटर्स को दिये एक इंटरव्यू में कहा कि अगर होम मिनिस्ट्री या लॉ मिनिस्ट्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग करती है तो भारत को उन्हें वापस भेजना होगा. हुसैन ने कहा कि शेख हसीना नई दिल्ली में हैं. भारत को सारी चीजें अच्छे से पता है. हमारी कोशिश है कि पड़ोसी देशों से संबंध अच्छे रहें, लेकिन बांग्लादेश का हित सबसे ऊपर है. प्रत्यर्पण के लिए कौन बना रहा दबाव? मोहम्मद यूनुस की सरकार (Muhammad Yunus Government) ने भले ही अब तक भारत से शेख हसीना के प्रत्यर्पण की डिमांड न की हो, लेकिन जमात-ए-इस्लामी और खालिदा जिया की पार्टी BNP बार-बार ये मांग कर रही हैं. खालिदा जिया, शेख हसीना की कट्टर दुश्मन हैं. हसीना के तख्तापलट में भी खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान का नाम लिया जा रहा है. BNP लगातार प्रत्यर्पण संधि का हवाला दे रहा है. भारत-बांग्लादेश के बीच साल 2013 में प्रत्यर्पण संधि हुई थी. उस वक्त शेख हसीना ही सत्ता में थीं. साल 2016 में इस संधि में कुछ संशोधन भी हुआ. संधि के मुताबिक दोनों देश ऐसे व्यक्तियों का प्रत्यर्पण करेंगे जिनके खिलाफ किसी अदालत में मुकदमा चल रहा हो या उसे दोषी ठहराया गया हो. इस ग्राउंड पर अगर बांग्लादेश शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग करता है तो वह वैलिड नजर आएगा. हालांकि संधि में कई शर्तें भी हैं, जिनके आधार पर दोनों देश किसी के प्रत्यर्पण से इनकार कर सकते हैं. उदाहरण के तौर पर अगर किसी व्यक्ति के ऊपर राजनीतिक नेचर का आरोप हो तो प्रत्यर्पण से मना किया जा सकता है. संधि में यह भी कहा गया है कि अगर किसी के खिलाफ कोई आरोप न्यायिक प्रक्रिया के हित में न हों, तो भी प्रत्यर्पण की मांग ठुकराई जा सकती है. भारत इस आधार पर हसीना को वापस भेजने से मना कर सकता है. ये भी पढ़ें- Explainer: भारत-बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि, फिर भी क्यों शेख हसीना को सौंपने से मना कर सकता है इंडिया? क्या शेख हसीना का पासपोर्ट बनेगा मुसीबत? शेख हसीना के मामले में असली पेंच उनका पासपोर्ट है. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने उनका डिप्लोमेटिक पासपोर्ट रद्द कर दिया है. भारत की वीजा नीति के मुताबिक डिप्लोमेटिक पासपोर्ट होल्ड करने वाला कोई भी शख्स यहां बगैर वीजा के 45 दिन रुक सकता है. शेख हसीना को भारत आए हुए 28 दिन हो चुके हैं और 12 दिन और बचे हैं. भारत ने उन्हें अभी तक राजनीतिक शरण भी नहीं दी है. ऐसे में सवाल है कि वीजा अवधि पूरी होने के बाद क्या करेगा? भारत के सामने क्या विकल्प हैं? भारत के सामने क्या विकल्प हैं? बीबीसी हिंदी एक रिपोर्ट में पूर्व राजनयिक और विदेश मंत्रालय के प्रोटोकॉल डिविजन के चीफ रह चुके पिनाक रंजन चक्रवर्ती के हवाले से लिखता है कि शेख हसीना का भारत में प्रवास पूरी तरह कानूनी है. चक्रवर्ती कहते हैं कि जिस समय शेख हसीना यहां आई थीं, उनके पासपोर्ट पर ‘अराइवल’ की मुहर लगी. इसका मतलब यह है कि उनकी एंट्री वेध है. अब अगर अराइवल की मुहर के बाद उनका देश पासपोर्ट रद्द कर देता है, तो भी भारत को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. चक्रवर्ती कहते हैं कि अब शेख हसीना सामान्य पासपोर्ट के लिए अप्लाई कर सकती हैं और अगर बांग्लादेश उनका एप्लीकेशन खारिज कर देता है तो भी भारतीय कानून के मुताबिक उनका यहां प्रवास लीगल ही माना जाएगा. क्यों शेख हसीना के लिए सॉफ्ट कॉर्नर? अंतरिम सरकार के फॉरेन अफेयर्स एडवाइजर तौहीद हुसैन ने दावा किया है कि अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस भारत के रुख से खुश नहीं हैं. भारतीय हाई कमिश्नर को इस बारे में अवगत करा दिया गया है. ऐसे में सवाल है कि क्या भारत, शेख हसीना के लिए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को नाराज करना चाहेगा? भारत के लिए बांग्लादेश से अच्छे संबंध जरूरी हैं. दोनों देश करीब 4000 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं. खासकर पूर्वोत्तर में, जहां लंबे समय तक अशांति थी और अब जाकर शांति बहाली हो पाई. कूटनीतिक जानकार कहते हैं कि खालिदा जिया और जमात-ए-इस्लामी फैक्टर की वजह से अंतरिम सरकार से भारत के संबंध अच्छे हों, इस बात की गारंटी नहीं है. खालिदा जिया के दौर में पूर्वोत्तर में अलगाववाद को बढ़ावा मिला. बांग्लादेश की धरती से भारत विरोधी काम हुए. दूसरी तरफ, शेख हसीना (Sheikh Hasina) के साथ भारत के संबंध बहुत अच्छे रहे हैं. उनकी सरकार में दोनों देशों के रिश्ते बेहतर हुए. बॉर्डर पर स्टेबिलिटी आई. पूर्वोत्तर में हिंसा पर भी रोक लगी. व्यापार भी बढ़ा. एक तरीके से भारत ने शेख हसीना में इनवेस्ट किया है. हसीना को भले ही अभी कुर्सी छोड़नी पड़ी हो लेकिन उनकी पार्टी आवामी लीग पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. बांग्लादेश में उसके चाहने वाले अभी भी हैं और शेख हसीना की अगली पीढ़ी भी है, जो उनकी राजनीतिक विरासत को आगे ले जा सकती है. इस केस में भारत का पलड़ा उनकी तरफ झुका नजर आता है. Tags: Bangladesh, Bangladesh news, International news, Sheikh hasina, World newsFIRST PUBLISHED : September 1, 2024, 16:11 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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