इटावा के इस मंदिर में महाभारत के अमर योद्धा आज भी आते है फूल चढ़ाने!

विवेक बताते है कि अपने पिता के बाद वो भी मंदिर में लगातार पूजा करने के लिए आ रहे है उनके सामने भी वैसा ही दृश्य दिखाई देता है जैसा पिता के वक्त नजर आया करता था. जब मंदिर का गर्भ ग्रह खोला जाता है तो तड़के देवी मां की मूर्ति पर फूल मिलते है, श्रद्धालु ऐसा मानते हैं कि महाभारत का अमर पत्र अश्वत्थामा इस मंदिर में देवी मां की पूजा अर्चना करने सबसे पहले आते है.

इटावा के इस मंदिर में महाभारत के अमर योद्धा आज भी आते है फूल चढ़ाने!
रजत कुमार/ इटावा: यमुना नदी के किनारे स्थापित काली वाहन मंदिर करीब तीन सौ साल पुराना माना जाता है. इटावा के इस मंदिर का वैसे तो अपने आप में विशेष महत्व है लेकिन नवरात्रि में इसका महत्व अपने आप में बढ़ जाता है. इस मंदिर को गुप्त शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है. महाभारत कालीन सभ्यता से जुड़े उत्तर प्रदेश में यमुना नदी के किनारे मां काली का एक ऐसा मंदिर है जिसके बारे में जनश्रुति है कि इस मंदिर में महाभारत काल का अमर पात्र ‘अश्वत्थामा’ अदृश्य रूप में आकर सबसे पहले पूजा करते है. यह मंदिर इटावा मुख्यालय से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी के किनारे स्थित है. इस मंदिर पर नवरात्रि के समय में दर्शन का विशेष महत्त्व माना जाता है. इस मंदिर में अपनी -अपनी मनोकामना को पूरा करने के इरादे से दूर दराज से भक्त गण यहां पहुंचते हैं. इटावा के इस ऐतिहासिक काली वाहन मंदिर की संरक्षक श्रीमती जया गिरी बताती है कि यमुना नदी के किनारे स्थापित मंदिर में दूर दराज से श्रद्धालु पूजा अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं, जो श्रद्धालु मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आते हैं उनकी मनोकामना जरुर पूरी होती है. कोई नहीं देख पाया कौन करता है पूजा करीब 48 वर्षों तक कालीवाहन मंदिर में लगातार पूजा करके आज भी चर्चा में बने हुए दिवंगत राधेश्याम द्विवेदी के बेटे विवेक द्विवेदी बताते है कि कालीवाहन मंदिर का अपना एक अलग महत्व है. नवरात्रि के दिनों में इस मंदिर की महत्ता अपने आप में खास बन पड़ती है. उनका कहना है कि उनके पिता ने करीब 48 साल तक इस मंदिर की पूजा करके सेवा की है लेकिन इस बात का पता नही लग सका है कि रात के अंधेरे में जब मंदिर को साफ कर दिया जाता है इसके बावजूद तडके जब गर्भगृह खोला जाता है उस समय मंदिर के भीतर ताजे फूल मिलते है जो इस बात को साबित करता है कोई अदृश्य रूप मे आकर पूजा करता है. अदृश्य रूप में पूजा करने वाले के बारे में कहा जाता है कि महाभारत के अमर पात्र अश्वत्थामा मंदिर में पूजा करने के लिए आते हैं. मनोकामना होती है पूरी विवेक बताते है कि अपने पिता के बाद वो भी मंदिर में लगातार पूजा करने के लिए आ रहे है उनके सामने भी वैसा ही दृश्य दिखाई देता है जैसा पिता के वक्त नजर आया करता था. जब मंदिर का गर्भ ग्रह खोला जाता है तो तड़के देवी मां की मूर्ति पर फूल मिलते है, श्रद्धालु ऐसा मानते हैं कि महाभारत का अमर पत्र अश्वत्थामा इस मंदिर में देवी मां की पूजा अर्चना करने सबसे पहले आते है. इस मंदिर में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के श्रद्धालु भी बड़ी तादाद में श्रद्धा भाव से देवी के दर्शन करके अपनी मनोकामना लेकर आते है. इस मंदिर में आने से श्रद्धालुओं की मनोकामना हर हाल में पूरी होती है और इसीलिए वह एक बार नहीं दो बार नहीं सालो से यहां आ रहे हैं. डाकुओं में थी माता के लिए श्रद्धा उत्तर प्रदेश पुलिस सेवा से मुक्त हो चुके रामनाथ सिंह यादव बताते हैं कि कभी चंबल के खूखांर डाकुओं की आस्था का केंद्र रहे महाभारत कालीन सभ्यता से जुडे इस मंदिर से डाकुओं का इतना लगाव रहा है कि वो अपने गैंग के साथ आकर यहां पूजा अर्चना करते थे. पुलिस की चौकसी के बावजूद वो भक्ति भाव से आकर पूजा करने में कामयाब हुए लेकिन इस बात की पुष्टि तब हुई जब मंदिर में डाकुओं के नाम के घंटे और झंडे चढ़े हुए देखे गए. बता दें काली वाहन मंदिर शक्ति मत में दुर्गा-पूजा के प्राचीनतम स्वरूप की अभिव्यक्ति है. कालीवाहन मन्दिर इटावा के गजेटियर में इसे काली भवन का नाम दिया गया है. यमुना के तट के निकट स्थित यह मंदिर देवी भक्तों का प्रमुख केन्द्र है. महादेव और पार्वती से जुड़ी है कहानी वर्तमान मंदिर का निर्माण बीसवीं शताब्दी की है. मंदिर में देवी की तीन मूर्तियां है- महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती. महाकाली का पूजन शक्ति धर्म के आरंभिक रूवरूप की देन है. मार्कण्डेय पुराण एवं अन्य पौराणिक कथायों के अनुसार दुर्गा जी प्रारम्भ में काली थी. एक बार वे भगवान शिव के साथ आलिगंनबद्ध थीं, तो शिवजी ने परिहास करते हुए कहा कि ऐसा लगता है जैसे श्वेत चंदन वृक्ष में काली नागिन लिपटी हुई हो. पार्वती जी को क्रोध आ गया और उन्होंने तपस्या के द्वारा गौर वर्ण प्राप्त किया. महाभारत में उल्लेख है कि दुर्गाजी ने जब महिषासुर तथा शुम्भ-निशुम्भ का वध कर दिया, तो उन्हें काली, कराली, काल्यानी आदि नामों से भी पुकारा जाने लगा. Tags: Etawa news, Local18, UP newsFIRST PUBLISHED : August 20, 2024, 13:33 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ेंDisclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.
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