बारिश में कुछ ही दिन मिलता है दुनिया का सबसे ताकतवर माना जाने वाला यह फल

kakora or Spiny Guard: बारिश के दिनों में इसकी पैदावार प्राकृतिक रूप से होती है. इसकी खेती कोई भी किसान नहीं करता.  इसे स्थानीय भाषा मे ककोरा कहा जाता है और कुछ जगह इसे कंटोला या पड़ोरा नाम से भी जाना जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम मोमोर्डिका डायोइका है....

बारिश में कुछ ही दिन मिलता है दुनिया का सबसे ताकतवर माना जाने वाला यह फल
रजत कुमार/इटावा: कुख्यात डाकुओ के आंतक के लिए बदनाम मानी जाने वाले चंबल के बीहडों मे पैदा होने वाला फल एक तरफ गांव वालों की बदहाली दूर करता है तो दूसरी तरफ इंसानों की सेहत सुधारने का काम करता है. इस सीजन में इस फल की चर्चा और मांग तेज हो जाती है. चंबल के बीहड़ में बारिश के दिनों में प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले इस फल को ककोरा के नाम से पुकारा जाता है. काकोरा नाम के इस फल को खाने के काफी लोग इच्छुक रहते हैं क्योंकि साल के कुछ ही दिनों मिलता है. रहती है खूब डिमांड ककोरा की डिमांड दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान तक है. थोक व्यापारी खरीद ले जाते हैं. इस फल का खासियत यह भी है कि यह बिना लागत और मेहनत के तैयार हो जाता है. लोग जंगलों से तोड़कर इसे बेच लेते हैं औऱ उन्हें अच्छी कीमत मिल जाती है. कुछ दिनों के लिए यह ग्रामीण परिवारों के लिए सहारा होता है. इस फल की खासियत बताने मे वन ऑफिसर और मेडिकल ऑफिसर सामने आ रहे हैं. वन्यजीव विशेषज्ञ भी इसके गुणों का बखान करने में पीछे नही हैं. विशेषज्ञ चिकित्सकों ने इस फल को दुनिया का सबसे ताकतवर फल माना है. इसके सेवन से कई बीमारियां दूर हो जाती हैं. इन बीमारियों में है फायदेमंद ककोरा ब्लड प्रेशर में लाभदायक है. इसमें प्रोटीन और आयरन भरपूर होता है. इसे पौष्टिक सब्जियों में गिना जाता है और ताकतवर सब्जी माना जाता है. ककोरा में प्रोटीन और आयरन भरपूर होता है जबकि कैलोरी कम मात्रा में होती है. यदि 100 ग्राम ककोरा की सब्जी का सेवन करते हैं तो 17 कैलोरी प्राप्त होती है. इसलिए यह वजन घटाने वाले लोगों के लिए भी बेहतर विकल्प है. ककोरा में मौजूद ल्युटेन जैसे केरोटोनोइडस विभिन्न नेत्र रोग, हृदय रोग की रोकथाम में सहायक हैं. बारिश के दिनों में इसकी पैदावार प्राकृतिक रूप से होती है. इसकी खेती कोई भी किसान नहीं करता.  इसे स्थानीय भाषा मे ककोरा कहा जाता है और कुछ जगह इसे कंटोला या पड़ोरा नाम से भी जाना जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम मोमोर्डिका डायोइका है. इसकी खेती भी होती है लेकिन, चंबल के बीहड़ की रेतीली मिटटी में यह अपने आप पैदा होता है. अभी इतनी है कीमत इटावा की सड़कों पर खुले में जमीन पर रखकर इसकी ब्रिकी की जाती है. कई सब्जी वाले अपने अपने ठेले पर रखकर इसको बेचते हैं और करोरा को खाने के शौकीन दौडे चले जाते हैं. सब्जी दुकानदार सतीश बताते हैं कि उनके परिवार के लोग सुबह सात बजे बीहड़ में चले जाते हैं और दोपहर तक छह-सात किलो ककोरा तोड़ लेते हैं. इस समय काकोरा 180 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है. इटावा मुख्यालय के डॉ. भीमराव अंबेडकर राजकीय संयुक्त चिकित्सालय में तैनात आहार विशेषज्ञ डॉ. अर्चना सिंह का कहना है कि ककोरा को वन करेला के नाम से जाना जाता है. बरसात के दिनों के लिए बहुत अच्छी सब्जी मानी जाती है. इसमें काफी मात्रा मे विटामिन, प्रोट्रीन आदि पाए जाते हैं जो इंसानी शरीर के लिए बेहद मुफीद माना जाता है. करोरा का सेवन करने से प्रतिरोधक क्षमता बढती है. इंसानी शरीर मे इमन्यूटी बढती है. इसमें आवश्यक एलीमेट्स, मिनरलस और विटामिन पाए जाते हैं. इसके सेवन से सीजनल बीमारियों से बचने में काफी फायदा मिलता है. गांव वाले इसे तोड़ कर खुले बाजार मे बेचते हैं जिससे उनको खासा फायदा भी मिलता है. इटावा के स्थानीय निवासी मकसूद का कहना है कि बरसात के दिनों में पैदा होने वाला यह ककोरा फल आम लोगों को बेहद पसंद आता है. लोग इसको जमकर खाते हैं क्योंकि यह केवल बरसात के दिनों में ही पैदा होता है इसलिए लोग इसका आनंद लेने से कतई नहीं चूकते हैं. Tags: Local18FIRST PUBLISHED : July 31, 2024, 17:14 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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