दुमका में जेठानी-देवरानी में रार JMM का किला मटियामेट करने में जुटी बड़ी बहू
दुमका में जेठानी-देवरानी में रार JMM का किला मटियामेट करने में जुटी बड़ी बहू
लोकसभा चुनाव अब अपने 7वें और अंतिम चरण की ओर बढ़ रहा है. इस चरण में शनिवार, 1 जून को 8 राज्यों की 57 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. इस चरण में झारखंड की 3 सीटों पर भी मतदान होगा.
लोकसभा चुनाव के 7वें और अंतिम चरण में झारखंड की शेष तीन सीट राजमहल, दुमका और गोड्डा सीट पर 1 जून को वोट डाले जाएंगे. झारखंड की इन 3 सीटों पर कुल 52 प्रत्याशी मैदान में हैं. वैसे तो हर सीट के चुनाव का अपना महत्व होता है लेकिन, दुमका लोकसभा सीट पर हर किसी की निगाह लगी हुई है. क्योंकि यहां एक परिवार के भीतर ही बड़ी लड़ाई देखने को मिल रही है.
झारखंड की उपराजधानी दुमका में चुनावी माहौल बेहद गरम है. इसकी वजह है झारखंड मुक्ति मोर्चा- जेएमएम अध्यक्ष शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन की बगावत. उन्होंने लोकसभा चुनाव की घोषणा के ठीक 3 दिन बाद 19 मार्च को अचानक अपनी पारिवारिक पार्टी से 15 साल पुराना नाता तोड़ दिया और भारतीय जनता पार्टी में चली गईं. इसके 5 दिन बाद बीजेपी की लोकसभा चुनावों के प्रत्याशियों की पांचवीं लिस्ट जारी हुई, जिसमें पार्टी ने पहले से घोषित उम्मीदवार और मौजूदा सांसद सुनील सोरेन का नाम काट कर सीता सोरेन को प्रत्याशी बना दिया. बीजेपी के इस बड़े दांव से झारखंड की सियासत में उथल-पुथल मच गई थी.
JMM से क्यों अलग हुईं सीता?
झारखंड मुक्ति मोर्चा विधायक सीता सोरेन के देवर और झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को प्रवर्तन निदेशालय- ED ने इसी साल 31 जनवरी को गिरफ्तार कर लिया था. उस समय उनकी पत्नी कल्पना सोरेन को अगला मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा चल रही थी. तब सीता सोरेन की नाराजगी खुल कर सामने आई थी. लोबिन हेंब्रम और चमरा लिंडा जैसे जेएमएम विधायक भी इस पर राजी नहीं हुए.
सरकार बचाने के लिए उस समय चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री का ताज पहनाया गया और हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन कैबिनेट मंत्री बने. पर सीता सोरेन खाली हाथ रह गईं. इससे उनका असंतोष और बढ़ गया. जाहिर है भाजपा को सुनहरा मौका मिल गया. इस घटना के करीब डेढ़ माह बाद अचानक सीता सोरेन ने अपने ससुर और जेएमएम अध्यक्ष शिबू सोरेन को पत्र लिखा और पार्टी के साथ-साथ विधायिकी से भी इस्तीफा दे दिया. वो इसी दिन बीजेपी में शामिल हो गईं और आरोप लगाया कि झारखंड मुक्ति मोर्चा में उनकी 15 साल तक उपेक्षा हुई. उनकी तीनों बेटियों को उनका हक नहीं मिला. उनके दिवंगत पति दुर्गा सोरेन की मौत की न जांच हुई और न उनकी प्रतिमा लगाने दी गई. इसलिए वो पार्टी छोड़ रही हैं.
1 जून को चुनावी रण का अंतिम पड़ाव, 7वें चरण में पीएम मोदी सहित कई बड़े दिग्गज मैदान में
शिबू सोरेन के बड़े बेटे और सीता सोरेन के पति दुर्गा सोरेन की साल 2009 में ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई थी. विधवा सीता सोरेन उसी साल राजनीति में आईं और जेएमएम के टिकट पर पहली बार अपने पति की सीट जामा से विधायक बनीं. इसके बाद 2014 और 2019 में भी वो जामा से विधायक चुनी गईं. इसी बीच 2012 में हुए राज्यसभा चुनाव में उन पर रिश्वत लेकर निर्दलीय उम्मीदवार को वोट देने का आरोप लगा था. उस समय बीजेपी ने उनके खिलाफ जोरदार आंदोलन किया था. इस मामले में वो जेल भी गईं. फिर बेल पर छूटीं और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. पर सुप्रीम कोर्ट में उनकी अपील खारिज हो गई है और अब उन्हें निचली अदालत में कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.
JMM का गढ़ है दुमका
दुमका का मतलब ही है शिबू सोरेन. संथाल परगना और दुमका सालों तक झारखंड मुक्ति मोर्चा अध्यक्ष शिबू सोरेन की कर्मस्थली रहा है. यहां से उन्होंने 11 बार चुनाव लड़ा और रिकॉर्ड 8 बार जीते. उन्होंने 1980 में इंदिरा गांधी के समय सियासी कैरियर की शुरुआत की थी. 1980, 1989, 1991, 1996 में जीत मिली. बीच में 1984 में कांग्रेस से हार गए. 1998 में बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी ने हराया. 2004 में शिबू सोरेन ने वापसी की. इसके बाद 2009 और 2014 के मोदी लहर में भी उन्होंने लोकसभा चुनाव जीता था.
शिबू सोरेन 3 बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे. पहली बार 2005 में 10 दिन, दूसरी बार 2008 से 2009 और तीसरी बार 2009 से 2010 तक मुख्यमंत्री रहे. यूपीए सरकार में वो केंद्रीय कोयला मंत्री भी रहे.
अलग झारखंड राज्य बनने के बाद इस सीट पर 4 बार चुनाव हुए. 3 बार जेएमएम विजयी रही. पर 2019 में बीजेपी उम्मीदवार सुनील सोरेन के हाथों शिबू सोरेन 47,600 वोट से मात खा गए. उस समय दुमका की 6 में से 4 विधानसभा सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा पिछड़ गया था. दुमका में 9,865, जामा में 7,954, सारठ में 20,750 और सबसे ज्यादा नाला में वो 33,850 मतों से पीछे रह गए. सिर्फ 2 सीट शिकारीपाड़ा में 8,840 और जामताड़ा में 15,989 मतों से बढ़त मिली थी. उस समय सीपीआई, टीएमसी और बीएसपी को 45 हजार से ज्यादा और नोटा पर 14 हजार वोट पड़े थे. यही शिबू सोरेन की हार के कारण रहे.
दिशोम गुरु का आशीर्वाद किसके साथ?
दुमका में इस बार झारखंड के सबसे बड़े राजनीतिक घराने यानी सोरेन परिवार के लिए बड़ी अग्निपरीक्षा होने वाली है. क्योंकि इस परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन बगावत करके विरोधी पार्टी बीजेपी से उम्मीदवार बन गई हैं. उनके सामने जेएमएम ने शिकारीपाड़ा से लगातार 7 बार विधायक चुने गए नलिन सोरेन को खड़ा किया है. पर सवाल उठ रहा है कि सोरेन परिवार के मुखिया और दिशोम गुरु के नाम से चर्चित शिबू सोरेन का आशीर्वाद आखिर किसके साथ है.
सीता सोरेन ससुर शिबू सोरेन के समर्थन का दावा रही हैं. उनके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तक चुनावी सभा कर चुके हैं. तो नलिन सोरेन के पक्ष में हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन से लेकर मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन और शिबू सोरेन के मंत्री बेटे बसंत सोरेन लगातार जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं.
सोरेन परिवार में बढ़ती खटास
अस्वस्थ शिबू सोरेन घर पर हैं और उनके सियासी वारिस हेमंत सोरेन जेल में हैं. हेमंत सोरेन की गैरमौजूदगी में सियासत में कदम रखनेवाली उनकी पत्नी कल्पना सोरेन और भाई बसंत सोरेन पार्टी को एकजुट करने में लगे हुए हैं. पर बागी बड़ी बहु सीता सोरेन की ओर से लगातार लगाई जा रहे आरोपों की झड़ी ने सोरेन परिवार में खटास बढ़ा दी है.
23 मई को भी सीता सोरेन और उनकी बड़ी बेटी जयश्री सोरेन मीडिया के सामने आईं और देवरानी कल्पना सोरेन पर गंभीर आरोप जड़ दिया. दरअसल, सीता सोरेन की दो बेटियां जयश्री और राजश्री 22 मई को जामताड़ा के तेज जोरिया गांव में मां के लिए चुनाव प्रचार कर रही थीं. तभी उन पर ईंट और पत्थरों से हमला हुआ. दोनों वहां से जान बचा कर भागीं और हमले में कल्पना सोरेन के साथ-साथ झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो के बेटे का हाथ होने का इल्जाम लगा दिया. इसकी शिकायत चुनाव आयोग से भी की गई. इन आरोप-प्रत्यारोपों ने सोरेन परिवार में तल्खी और बढ़ा दी.
दो बहुओं की साख दांव पर
हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद से उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने लोकसभा चुनाव में मोर्चा संभाल रखा है. झारखंड मुक्ति मोर्चा की चुनावी रणनीति तय करने में उनकी भूमिका अहम हो गई है. वो लगातार रैलियां और सभाएं कर रही हैं. विपक्षी गठबंधन की दिल्ली, मुंबई और रांची में हुई 3 बड़ी रैलियों में वो बड़े नेताओं के साथ मंच साझा कर चुकी हैं. कल्पना सोरेन के सामने आने से जेएमएम के कैडर एकजुट होने लगे हैं. मोर्चा अध्यक्ष शिबू सोरेन और पार्टी कार्यकर्ता कल्पना सोरेन के साथ नजर आ रहे हैं. ऐसे में दुमका के सियासी मैदान में सोरेन परिवार की 2 बहुओं की साख दांव पर लगी हुई है. बीजेपी उम्मीदवार और सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन के मुकाबले नलिन सोरेन भले ही जेएमएम उम्मीदवार हैं. पर असली लड़ाई कल्पना सोरेन लड़ रही हैं. वो संथाल परगना में अब तक कई चुनावी सभा कर चुकी हैं और पार्टी की हार-जीत से उनकी प्रतिष्ठा भी जुड़ी हुई है. तो संथाल परगना से सियासत में कदम रखने और शिबू सोरेन को मात देकर चर्चित होनेवाले बीजेपी के प्रदेश बाबूलाल मरांडी ने भी झारखंड मुक्ति मोर्चा को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है.
दुमका में 2024 में क्या होगा?
दुमका में आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के वोटर का दबदबा है. यहां 40 फीसदी आदिवासी, 40 फीसदी पिछड़ी जातियां और 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं. आदिवासी और अल्पसंख्यक वोटर को जेएमएम का परंपरागत वोटर माना जाता है. इस बार के चुनाव में बीजेपी और जेएमएम सहित 19 प्रत्याशी मैदान में हैं.
15,89,230 वोटर 1891 बूथों पर इन 19 उम्मीदवारों की किस्मत EVM में कैद करेंगे. पर मौजूदा सांसद सुनील सोरेन को टिकट देकर फिर वापस लेने से उनके समर्थक ठगा-सा महसूस कर रहे हैं. ऐसे में सीता सोरेन को उनका कितना साथ मिल पाएगा. ये कहना मुश्किल है. जेएमएम को उस मिथक पर भी भरोसा है. जिसमें जेएमएम छोड़ कर दूसरी पार्टी में शामिल होनेवाला संथाल परगना का कोई भी नेता आज तक सियासत में सफल नहीं हो सका. इसके अलावा पिछली बार की तरह इस बार भी मैदान में डटे सीपीआई और बीएसपी समेत कई निर्दलीय उम्मीदवार भी बड़ी पार्टियों के उम्मीदवारों का समीकरण बिगाड़ सकते हैं.
Tags: Dumka news, Jharkhand mukti morcha, Jharkhand news, Loksabha ElectionsFIRST PUBLISHED : May 29, 2024, 12:10 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed