बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए बेहद मुनाफे वाली है यह खेती होगी छप्परफाड़ कमाई

बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए धान कि यह कुछ खास प्रजातियां हैं, जो आसानी से ज्यादा पैदावार देकर किसानों को लाभान्वित करती है.

बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए बेहद मुनाफे वाली है यह खेती होगी छप्परफाड़ कमाई
सनन्दन उपाध्याय/बलिया: बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में भी अब किसान इस खास फसल की खेती कर मालामाल बन सकेंगे. जी हां धान की कुछ खास ऐसी प्रजातियां हैं जिनसे छप्परफाड़ मुनाफा मिलता है. पानी के साथ-साथ बढ़ने वाली ये फसल किसानों को लखपति बना सकती है. कम लागत में तैयार होने वाली यह फसल खास तौर से बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के किसानों के लिए ज्यादा मुनाफा कमाने वाली होती है. आइए जानते हैं इसको लेकर एक्सपर्ट क्या बता रहे हैं. श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय बलिया के मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विज्ञान के विभागाध्यप्रो. अशोक कुमार सिंह ने लोकल 18 से कहा कि किसानों को नई तकनीकी हस्तांतरण के लिए लगभग हमारा विभाग 19 सालों से प्रयास और शोध कर रहा है. बलिया जिला बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है. ऐसे में धान की यह कुछ खास प्रजातियां यहां के लिए बेहद फायदे वाली हो सकती हैं. पानी घटने बढ़ने वाले क्षेत्र के लिए अच्छी प्रजातियां… बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए धान कि यह कुछ खास प्रजातियां हैं, जो आसानी से ज्यादा पैदावार देकर किसानों को लाभान्वित करती है. जल लहरी, जल निधि, जल प्रिया और बाढ़ अवरोधी ये धान की ऐसी प्रजातियां हैं, जो बाढ़ क्षेत्र में भी ज्यादा उपज देती हैं. यह प्रजातियां पानी के साथ ऊपर बढ़ती जाती हैं, गिरती नहीं हैं. लंबे समय तक पानी भराव क्षेत्र के लिए बेहतर है  ये प्रजाति बाढ़ क्षेत्र में कुछ ऐसे जगह होते हैं जहां पानी लंबे समय तक भरा ही रह जाता है, उस स्थिति में स्वर्ण सब 01 धान की, जो प्रजाति है यह बेहतर है. उस समय इसकी पैदावार बहुत ज्यादा होती है और किसानों के लिए काफी लाभप्रद होती है. इसकी खेती बहुत आसानी से की जा सकती है. बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में ऐसे की जाती है धान की खेती बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में नर्सरी डालकर रोपाई करना संभव नहीं हो पता है, तो इस परिस्थिति में ऐसी जगह पर धान की खेती सिड्विल या छिड़काव विधि से सीधे बुवाई कर दी जाती है और धान के पौधे बढ़ते रहते हैं. समय के अनुसार पानी की स्थिति घटती बढ़ती रहती है. जिसका कोई दुषप्रभाव इन फसलों पर नहीं पड़ता है. ऐसे करें पोषक तत्वों पर नियंत्रण इस परिस्थिति में खाद उर्वरक का प्रयोग करना लाभकारी नहीं होता. क्योंकि सब धुलकर ज्यादा पानी में बेअसर हो जाता है. ऐसी स्थिति में बाजार से सल्फर कोटेड या फिर बड़े दाने वाले पिलेट्स यूरिया का प्रयोग किया जा सकता है. कम लागत में मिलेगा बंपर मुनाफा एक बीघा के लिए कम से कम 10 से 12 किलो बीज पर्याप्त होते हैं. पानी घटने की स्थिति न होने के कारण इसकी कटाई नाव से भी की जाती है. लगभग 5 से 6 महीने की यह फसल होती है. इस तरह एक बीघा में लगभग 10 से 12 क्विंटल उपज बहुत आसानी से हो जाती है. Tags: Hindi news, Local18FIRST PUBLISHED : May 16, 2024, 08:33 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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