दास्तान-गो : माइक टायसन दुनिया में जितने मशहूर हुए उतने ही बदनाम भी
दास्तान-गो : माइक टायसन दुनिया में जितने मशहूर हुए उतने ही बदनाम भी
Daastaan-Go ; Mike Tyson Birth Anniversary Special : टायसन के निजी बॉडीगार्ड हुए रूडी गोंज़ालेज़. वे बताते हैं, ‘भारी भीड़ के बीच लड़कियां अक्सर अपने अंडरवियर उतार-उतारकर मेरी तरफ़ फेंका करती थीं. कहती- इन्हें अपने बॉस (माइक टायसन) तक पहुंचा देना. इस पर हमारा नंबर लिखा है.
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक्ती तौर पर मौजूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज…
—–
…‘आयरन टायसन’, ‘आयरन माइक’ और ‘फाइटर ऑफ द ईयर’ जैसे ख़िताब मिल चुके थे अब माइक टायसन को. मुक्केबाज़ी के खेल में पैसे लगाने वाले एक बड़े रईस हुए डेव वूली. वे कहने लगे थे, ‘दुनिया पर 1980 की दहाई में तीन अश्वेत लोगों ने राज किया. उनमें एक माइकल जैक्सन (पॉप सिंगर), दूसरे माइकल जॉर्डन (बास्केटबॉल खिलाड़ी) और तीसरे माइकल टायसन यानी माइक टायसन.’ इतना ही नहीं, माइक टायसन के मैनेजर रहे जेफ वाल्ड तो यहां तक कह गए कि दुनिया पर ‘राज करने वाले इन तीन अश्वेतों में माइक टायसन थे जो महारानी एलिजाबेथ (ब्रिटेन की) और किसी राष्ट्रपति (अमेरिका के) से भी ज़्यादा मशहूर हुए.’ और मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले अमेरिका के एक मशहूर वकील कार्ल डगलस इस तरह की मशहूरियत की वज़ा बताते हैं. कहते हैं, ‘श्वेत लोगों के बीच माइक टायसन ख़ौफ़ की वज़ा थे और अश्वेतों के लिए किसी महानायक से कम न थे वे. क्योंकि उन्होंने सफ़ेद चमड़ी वालों के बीच उन्हीं के मैदान में अपनी क़ाबिलियत को साबित किया था. उनके बीच कामयाबी के परचम फहराए थे.’
लगातार मिलती कामयाबियों से टायसन की ज़िंदगी पूरी तरह बदलने लगी थी. अभी महज़ 20 बरस की उम्र थी कि दुनिया के अरबपतियों में उनका नाम शुमार होने लगा. पैसों की बरसात जो हुआ करती थी उनके ऊपर. नामी कंपनियां उनके ज़रिए अपने उत्पाद बेचने की जुगत लगाती रहती थीं और कमसिन लड़कियों के हुज़ूम उन्हें देखते ही उन पर टूट पड़ते थे. टायसन के निजी बॉडीगार्ड हुए रूडी गोंज़ालेज़. वे बताते हैं, ‘भारी भीड़ के बीच लड़कियां अक्सर अपने अंडरवियर उतार-उतारकर मेरी तरफ़ फेंका करती थीं. कहती- इन्हें अपने बॉस (माइक टायसन) तक पहुंचा देना. इस पर हमारा नंबर लिखा है. अपने बॉस से कहना कि भले वह वहशी (क्रूर, बर्बर) हो मगर हम उसे काबू कर लेंगी.’ इस तरह की मक़बूलियत का आलम था उस दौर में माइक टायसन का.
लेकिन ऐसे मशहूर होने के बावज़ूद माइक अकेलेपन से जूझ रहे थे मानो. मां छोड़ गई थीं. उस्ताद चले गए थे अब तक. जो था उसमें दिखावा ज़यादा था. उस दौर के एक बड़े अमेरिकी पत्रकार हुए वॉलेस मैथ्यू. मुख़्तलिफ़ अख़बारों, मैगज़ीन वग़ैरा में मुक्केबाज़ी के खेल पर ख़ासकर लिखा करते थे. बताते हैं, ‘जिस रात माइक टायसन ने ट्रेवर बरबिक जैसे मुक्केबाज़ को हराकर पहला बड़ा ख़िताब (डब्ल्यूबीसी का) जीता, तो मैंने देखा वह तड़के चार बजे लॉबी में अकेला बैठा है. गुमसुम, ख़िताबी बेल्ट कमर में बांधे हुए. मानो उसे कुछ सूझ ही न रहा हो कि इसका करना क्या है. वह ख़ुद कैसे ज़ाहिर करे अपने को.’ कहते हैं, बढ़ती शोहरत के बावज़ूद माइक अपने बचपन के घरौंदे को भूले नहीं. वे अक्सर ब्राउंसविले की उस बदनाम बस्ती में चले जाया करते थे, जहां वे पैदा हुए. वहां बेघर बच्चों की माली मदद भी करते थे. पर वहां भी शायद उन्हें सुकून न मिला.
फिर तभी मशहूर अदाकारा रॉबिन गिवंस उनकी ज़िंदगी में आईं. दोनों ने शादी भी की. साल 1988 में. लेकिन अभी छह-आठ महीने ही न बीते थे कि गिवंस ने माइक पर मार-पीट का आरोप लगा दिया. अदालत में तलाक़ की अर्ज़ी भी दे दी. अगले साल ही रिश्ता टूट गया. ये एक और झटका साबित हुआ माइक के लिए. यूं कि किसी ने मशहूरियत की भारी चकाचौंध के बीच पैरों के नीचे से लाल कालीन खींचकर मुंह के बल गिरा दिया हो. इस दौरान माइक कहते रहे कि इस रिश्ते में ग़लती उनकी अकेले की नहीं है. दो-तरफ़ा है. लेकिन किसी ने सुनी नहीं उनकी. कि तभी उन्हें एक और बड़ा झटका लगा. फरवरी 1990 में जेम्स ‘बस्टर’ डगलस ने माइक को मुक्केबाज़ी के अखाड़े में हराकर इस खेल का बड़ा उलटफेर किया. हालांकि और भी बुरा कुछ होना बाकी था.
साल 1991 की बात है ये. इंडियानापोलिस में अश्वेत समाज के लोगों का बड़ा जलसा हुआ था. ‘ब्लैक एक्सपो’ के नाम से. इसमें माइक भी शामिल हुए. उनकी मशहूरियत अभी लोगों के दिमाग़ों से उतरी न थी. बल्कि डगलस से हार के बावज़ूद बरकरार थी. लड़कियों के अल्हड़पने और दीवानगी का आलम भी पहले की तरह था. और उसी रौ में एक 18 बरस की अश्वेत लड़की डिज़ायरी वॉशिंगटन से उनके शारीरिक संबंध बन गए. उस जलसे के दौरान लड़कियों की एक सौंदर्य प्रतिस्पर्धा भी हुई थी. डिज़ायरी उसी में हिस्सा लेने आई थी. जैकी बोटराइट और पार्क़ीटा नसाऊ जैसी कुछ लड़कियां उसके साथ ही थीं. इन दोनों ने बाद में इसे पुख़्ता किया कि माइक और डिज़ायरी के बीच ज़िस्मानी रिश्ता दोनों की रज़ामंदी से बना. लेकिन डिज़ायरी ने इसे बलात्कार बताया और अदालत में मुक़दमा दायर कर माइक से हर्ज़ाना मांग लिया. दुनियाभर में मामला सुर्ख़ियों में रहा.
वॉशिंगटन डीसी के एक बड़े वकील विंस फुलर ने माइक की तरफ़ से ये मुक़दमा लड़ा. लेकिन उन्होंने अदालत में उल्टी दलीलें रखीं. माइक कहते रहे कि उन्होंने बलात्कार नहीं किया है. मगर अदालत में उनके ही वकील ने कह दिया, ‘इस धरती पर माइक टायसन सबसे बुरा शख़्स है. इज़्ज़तदार मर्दों और औरतों को उसके होटल के कमरे में जाने से पहले सोचना चाहिए था.’ ज़ाहिर तौर पर माइक टायसन मुक़दमा हार गए. महज़ 48 किलो (106 पाउंड) वज़न की एक लड़की ने 108 किलो (240 पाउंड) वज़नी चैंपियन मुक्केबाज़ को धूल चटा दी थी. माइक को छह साल की क़ैद हुई इस मामले में. फरवरी 1992 की बात हुई ये. उन्हें जेल जाना पड़ा और उसी साल जून में डिज़ायरी को एक तय रकम बतौर मुआवज़ा भी चुकानी पड़ी. हालांकि आगे चलकर तीन साल बाद साल 1995 में उन्हें इस मामले में वक़्त से पहले रिहा भी कर दिया गया.
बताते हैं, जेल में रहने के दौरान माइक ने धार्मिक किताबों की काफ़ी पढ़ाई की. इस्लाम की किताबों से वाबस्ता हुए और वह मज़हब अपना लिया. कहते हैं, अपने एक डॉक्टर मर्लिन मुरे से वे अक्सर कहा करते थे, ‘अभी मुझे जिस ज़ुर्म की सज़ा मिली वह मैंने यक़ीनी तौर पर किया नहीं. मगर इससे पहले बहुत कुछ बुरा किया है. और लगता है कि अब मुझे उसी की सज़ा मिल रही है, जिसे मुझे भुगतना है.’ बहरहाल, मार्च 1995 में माइक जेल से छूटे और फिर मुक्केबाज़ी के लिए अखाड़े में उतरे. उसी साल अगस्त से सितंबर के बीच लगातार पीटर मैकनीले, बस्टर मैथिस जूनियर, फ्रैंक ब्रूनो और ब्रूस सेल्डन जैसे बड़े मुक्केबाज़ों को धूल चटाई. इसके बाद नवंबर 1996 में उनका सामना हुआ इवेंडर होलीफील्ड से. ऊंचे क़द के मुक्केबाज़, जिनके बारे में कहते हैं कि मुक्केबाज़ी के अखाड़े में उन्होंने माइक को न सिर्फ़ हराया बल्कि ज़लील भी किया.
इससे बुरी तरह बौखला गए माइक टायसन. होलीफील्ड से बदला लेने का मंसूबा पल चुका था उनके ज़ेहन में. और इस मंसूबे को पूरा करने का मौका आया जून 1997 में, 28 तारीख़ को. मुक़ाबला शुरू हुआ. आधे वक़्त तक सब ठीक चल रहा था. लेकिन होलीफील्ड इस बार भी माइक पर भारी पड़ रहे थे. कि तभी होलीफील्ड ने एक जोर का मुक्का माइक की आंख के पास मारा और हिक़ारत भरी निगाह से देखते हुए दूर हट गए. खून बह निकला माइक की आंख के पास से. और तभी जैसे ब्राउंसविले बस्ती का लड़का चैंपियन माइक टायसन पर हावी हो गया. ख़ूं-ख़्वार तरीके से होलीफील्ड पर सवार हो गया वह. उनके कान को मुंह में भर लिया. अब होलीफील्ड बुरी तरह चीख रहे थे. तड़प रहे थे. रेफ़री खेल रोकने का हुक़्म दे रहा था. लेकिन चैंपियन माइक टायसन होते तो वह रेफ़री की सुनते भी. ब्राउंसविले के माइक को किसी की परवा कहां. बुरी तरह कान चबाकर ही छोड़ा होलीफील्ड को. तहलका मच गया इससे दुनिया में.
कहते हैं, कई लोगों को मशक़्क़त करनी पड़ी होलीफील्ड को माइक की पकड़ से छुड़वाने के लिए. और बाद में माइक का माथा ठंडा करने के लिए उन्हें कई बोतल बियर से नहलाना भी पड़ा था. तब कहीं उनका गुस्सा ठंडा हुआ. मगर यहां से उनकी कुख्याति अब एक गर्मा-गर्म मसला बन चुकी थी पूरी दुनिया के लिए. लेकिन इसके बाद कई सालों तक उन्होंने इन हालात को बदलने की कोशिश नहीं की. बल्कि बताते हैं 1999 के एक मुक़ाबले में मुक्केबाज़ फ्रैंकोस बोथा का हाथ तोड़ने की कोशिश की. फिर साल 2000 के एक मुक़ाबले में रेफ़री को ही मारने दौड़ पड़े. अखाड़े से बाहर उनकी नशेबाज़ी और दूसरे लोगों से मार-पीट करने के मामले भी सुर्खियां बटोर रहे थे. गोया कि उन्हें अब अपनी कोई परवा ही नहीं थी. कहते हैं, एक साल बाद हुए किसी दूसरे मुक़ाबले में वे आधे चेहरे पर गोदना (टैटू) गुदवा कर आए. किसी ने इसकी वज़ा पूछी तो कहने लगे, ‘ख़ुद से नफ़रत हो गई है. आईने में अपना चेहरा देखकर गुस्सा आता है. इसलिए चेहरा ढंक लिया.’
टायसन की मुक्केबाज़ी के ऊंचे-नीचे सफ़र का अहम पड़ाव जून-2005 में आया. केविन मैकब्राइड से उन्हें इस मुक़ाबले में हार का सामना करना पड़ा. और यहीं से उन्होंने फिर मुक्केबाज़ी का अखाड़ा छोड़ने का मन बना लिया शायद. फिर अब तक किसी पेशेवर मुक़ाबले में नहीं उतरे. लेकिन ग़ौर कीजिए. मुक्केबाज़ी के इस ‘बदनाम बादशाह’ ने अब तक अपनी पूरी ज़िंदगी में यही कोई 58 पेशेवर मुक़ाबले खेले हैं. इनमें से सिर्फ़ छह मुक़ाबलों में उन्हें हराया जा सका. जबकि कुल 50 जीते हुए मुक़ाबलों में से 44 में तो उन्होंने अपने सामने वाले मुक्केबाज़ को खेल के शुरुआती दौर में ही चारों खाने चित कर दिया था. इसीलिए तो ‘किड डायनामाइट’ भी कहे गए माइक टायसन.
—
पिछली कड़ी में पढ़िए
दास्तान-गो : माइक टायसन यानी ‘आयरन टायसन’, जिससे टकराता उसे चूर कर देता
—–
(नोट : इस दास्तान के लिए संदर्भ एबीसी न्यूज़ की डॉक्यूमेंट्री ‘माइक टायसन- द नॉकआउट से लिए गए हैं.)
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी |
Tags: Boxing, Hindi news, Mike tyson, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : June 30, 2022, 20:14 IST