दास्तान-गो : ‘नजफ़गढ़ के नवाब’ वीरेंद्र सहवाग ‘मुल्तान के सुल्तान’ क्यूं कहलाते हैं
दास्तान-गो : ‘नजफ़गढ़ के नवाब’ वीरेंद्र सहवाग ‘मुल्तान के सुल्तान’ क्यूं कहलाते हैं
Daastaan-Go ; Cricketer Virendra Sehwag Birth Anniversary : सचिन ही थे जिन्हें देख-देखकर, उनकी नक़ल कर-कर के वीरेंद्र सहवाग क्रिकेट में तूफ़ान मचाने के लिए आए थे. सो, वे उनकी ताक़ीद पर ध्यान देते हुए संभल-संभाल के पहुंचे थे 295 के स्कोर पर. मगर यहां तक आते-आते उनका सब्र जाता रहा. सो, सचिन के पास पहुंचे और उनसे पूछने लगे, ‘दादा, बड़ी देर हो गई है. एक छक्का मारूं क्या?’, ‘नहीं, बिल्कुल नहीं. मना किया न तुझे. पहले ट्रिपल सेंचुरी पूरी कर. और अगर यहां छक्का-वक्का मारने की कोशिश भी की न, तो दूंगा पीछे से एक रख के. समझा’. जनाब, सचिन साहब की इस ताक़ीद के पीछे चिंता जाइज़ थी.
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़…
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जनाब, हिन्दुस्तान में क्रिकेट के आंकड़ों और क़िस्सों से बच्चे भी वाक़िफ़ होते हैं वैसे तो. अलबत्ता, कई लोग होंगे ऐसे भी, जिन्हें क्रिकेट में दिलचस्पी तो होगी लेकिन उनके आंकड़े, क़िस्से कहानियों से उनकी ज़्यादा वाबस्तगी नहीं होगी. तो ये सवाल कि ‘नजफ़गढ़ के नवाब’ वीरेंद्र सहवाग ‘मुल्तान के सुल्तान’ क्यूं कहलाते हैं, उन्हीं के लिए है. क्यूंकि उन्हें ‘नजफ़गढ़ का नवाब’ कहा जाए, ये तो समझ आता है. वे दिल्ली से लगे इलाके नजफ़गढ़ में पैदा हुए, 20 अक्टूबर 1978 को. वहीं, पले-बढ़े, खेले-खाए. इसके बाद उन्होंने आगे अपना वक़्त, जिसमें क्रिकेटिंग करियर भी शामिल रहा, बिल्कुल नवाबों की तरह गुज़ारा. अपनी ही अल्हड़-मस्ती में, बे-परवाई से. कौन क्या कह रहा है, क्या सोच रहा है, इससे इन्हें ज़्यादा फ़र्क पड़ा नहीं कभी. लोगों ने सवाल उठाए, ख़ामियां गिनाईं, मशवरे दिए उन्हें सुधारने के, ताकीद की. पर ‘नवाब’ ने एक कान से सुना, दूसरे से उड़ा दिया.
सो, ‘नजफ़गढ़ के नवाब’ का मसला समझ में आता है फिर भी. लेकिन ‘मुल्तान का सुल्तान’? ये क्या बात हुई? मुल्तान तो पाकिस्तान में है? तो जनाब सुनिए. क़िस्से की शक़्ल में है ज़वाब इसका. बात 29 मार्च 2004 की है. हिन्दुस्तान की टीम उस वक़्त पाकिस्तान के दौरे पर गई हुई थी. पहले जाया करती थी. अभी तो दूसरी तरफ़ की हरक़तों की वजह से कई सालों से बंद है ये आवाज़ाही. ख़ैर, तो वहां हिन्दुस्तान की टीम का पहला टेस्ट मैच था. भारत के कप्तान सौरव गांगुली ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाज़ी चुनी. पहले दिन का खेल पूरा होने तक भारतीय टीम ने दो विकेट खोकर 356 रन बना लिए. अभी एक तरफ़ खड़े थे वीरेंद्र सहवाग, जिन्होंने 228 रन ठोक दिए थे. और दूसरी तरफ़ थे सचिन तेंदुलकर. वे 60 रन बनाकर खेल रहे थे. यहां तक सहवाग किसी भी भारतीय खिलाड़ी द्वारा पाकिस्तान में एक पारी में बनाए सर्वाधिक रनों का रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके थे.
सहवाग से पहले संजय मांजरेकर ने सबसे ज़्यादा, 218 रन, बनाए थे पाकिस्तान में. साल 1989 में हुए तीसरे टेस्ट मैच की बात है ये. पर उसे छोड़िए, क़िस्सा तो सहवाग चल रहा है. तो, दूसरे दिन जब खेल शुरू हुआ तो सहवाग ने ख़ुद ये सोचा नहीं था कि वे कोई और बड़ा तारीख़ी कारनामा करने वाले हैं. सोचते ही नहीं थे. बस, खेलते थे और खेलते जाते थे. तो यूं ही खेल-खेल में वे उस रोज़ पहुंच गए 295 रन के स्कोर पर. यानी यहां से बस, पांच रन दूर कि इतिहास में हमेशा के लिए इनके नाम ऐसा रिकॉर्ड दर्ज़ हो जाने वाला है, जो आज भी पूरी दुनिया में कुछ चुनिंदा खिलाड़ियों के खाते में है. अक्सर ऐसे मौकों पर बड़े क्रिकेटर ‘नर्वस नाइंटीज़़’ के शिकार हो जाया करते हैं. यानी 90 से 100 के बीच किसी आंकड़े पर ही घबराहट के मारे, आउट हो जाया करते हैं. सचिन तेंदुलकर भी हो जाते थे, जो उस वक़्त दूसरी तरफ़ से वीरेंद्र सहवाग का साथ दे रहे थे.
सचिन तेंदुलकर साहब उम्र और तजरबे में भी ‘वीरू भाई’ से बड़े ही ठहरे. जानते थे कि ये साहब कैसे बे-फ़िक्री से खेलते हैं. तो वे ताकीद करते जाते थे, ‘देख वीरू, छक्का-वक्का मारने मत जाइओ. फ़ालतू में आउट नहीं होना है’. वीरू भी उनकी बात को, कम से कम सुन तो लेते ही थे. क्योंकि सचिन ही थे जिन्हें देख-देखकर, उनकी नक़ल कर-कर के वीरेंद्र सहवाग क्रिकेट में तूफ़ान मचाने के लिए आए थे. सो, वे उनकी ताक़ीद पर ध्यान देते हुए संभल-संभाल के पहुंचे थे 295 के स्कोर पर. मगर यहां तक आते-आते उनका सब्र जाता रहा. सो, सचिन के पास पहुंचे और उनसे पूछने लगे, ‘दादा, बड़ी देर हो गई है. एक छक्का मारूं क्या?’, ‘नहीं, बिल्कुल नहीं. मना किया न तुझे. पहले ट्रिपल सेंचुरी पूरी कर. और अगर यहां छक्का-वक्का मारने की कोशिश भी की न, तो दूंगा पीछे से एक रख के. समझा’. जनाब, सचिन साहब की इस ताक़ीद के पीछे चिंता जाइज़ थी.
दरअस्ल, 2003-04 में एक वाक़ि’आ हो चुका था जब ‘वीरू भाई’ छक्का मारने के चक्कर में दोहरा शतक लगाने से चूक गए थे. ठीक ऐसे ही स्कोर, 195 पर, आउट होकर लौट आए थे. ये बात है ऑस्ट्रेलिया में हुए मैच की. वह वाक़ि’आ सचिन साहब को याद था. मगर ‘वीरू भाई’ तो मानो उसी रोज़ उसे भूल गए थे. उस रोज ऑस्ट्रेलिया में कमेंट्री कर रहे हर्ष भोगले ने मैच के बाद उनसे पूछा, ‘आपने एक-एक, दो-दो रन क्यूं नहीं बनाए? छक्का मारने क्यूं गए? आप डबल सेंचुरी से चूक गए?’ तो ‘वीरू भाई’ ने जवाब पता है क्या दिया? वे बोले, ‘मैं डबल सेंचुरी से नहीं, छक्के से चूक गया. गेंद बस, तीन गज़ पीछे रह गई बाउंड्री लाइन से’. ये जवाब सुनकर हर्ष भोगले साहब का मुंह खुला का खुला रह गया. और इधर, मुल्तान में सचिन तेंदुलकर साहब का भी. क्योंकि उनके बार-बार रोकने के बावजूद ‘वीरू भाई’ ख़ुद को रोक न पाए. छक्का जड़ ही दिया आख़िर.
इस तरह, वीरेंद्र सहवाग पहले हिन्दुस्तानी क्रिकेटर बने, जिन्होंने एक पारी में 300 रन पूरे किए. वह दुनिया के भी पहले क्रिकेटर बने उस वक़्त, जिन्होंने छक्के के साथ अपना तिहरा शतक पूरा किया. और ये कारनामा चूंकि उन्होंने मुल्तान में किया था, इसलिए तब से उन्हें ‘मुल्तान का सुल्तान’ कहा जाने लगा. इसके बाद वे सचिन साहब के पास पहुंचे तो उन्होंने मुस्कुराते हुए उन्हें गले लगाकर पीठ पर हल्के से धौल जमा दी. करते भी क्या. ‘वीरू भाई’ को जो करना था, वे कर चुके थे. वैसे, इस तरह तिहरा शतक पूरा करने के बाद उन्होंने पैवेलियन में बैठे वीवीएस लक्ष्मण की तरफ़ भी बल्ला उठाकर कोई इशारा किया था. जानते है क्यों? इसका ज़वाब भी क़िस्से में है. वाक़ि’आ 2001 का है. कोलकाता में ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत का मैच था. उसमें लक्ष्मण ने 281 रन ठोक दिए. मगर वे अपने तिहरे शतक से चूक गए. हालांकि उन्हें इस बात का कोई अफ़सोस नहीं रहा.
अलबत्ता, ‘वीरू भाई’ को यह वाक़ि’आ याद रह गया. उन्होंने जब टेस्ट खेलना शुरू किया तो एक दफ़ा लक्ष्मण साहब को उनकी उस पारी की याद दिलाते हुए वादा किया था, ‘भ्राता, आप देखना एक दिन मैं पूरी करूंगा ट्रिपल सेंचुरी’. यह बात ख़ुद लक्ष्मण ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान बताई थी. लिहाज़ा, जब ‘वीरू भाई’ ने यह कमाल कर दिया तो उन्होंने लक्ष्मण की तरफ़ इशारा करते हुए वही क़ौल याद दिलाया था. वैसे, क़ौल तो उन्होंने एक और किया था और उसे भी पूरा कर दिखाया. बात दिसंबर 2011 की है. इस साल अप्रैल में हिन्दुस्तान ने एक-दिवसीय क्रिकेट का विश्व-कप ख़िताब अपने नाम किया था. उसके बाद वेस्टइंडीज़ की टीम दौरे पर आई हुई थी. मध्य प्रदेश के इंदौर में मैच था. उसमें ‘वीरू भाई’ ने 150 से भी कम गेंदों पर दोहरा-शतक जड़ दिया था. सचिन तेंदुलकर के बाद तब इस तरह का कारनामा करने वाले वे दूसरे भारतीय खिलाड़ी बने थे.
बताते हैं, ‘वीरू-भाई’ ने काफ़ी पहले मीडिया में बाक़ायदा ए’लान किया था कि वे जल्द यह कारनामा करने जा रहे हैं. और तो और खेलते-खेलते भी वे ख़ुद को और दूसरी टीम को इसी तरह चुनौती दे दिया करते थे. मार्च 2008 की बात है. दक्षिण अफ्रीका की टीम हिन्दुस्तान के दौरे पर थी. चेन्नई में टेस्ट मैच चल रहा था. पॉल हैरिस गेंदबाज़ी कर रहे थे. इस वक़्त ‘वीरू भाई’ 291 रनों पर खेल रहे थे. अफ्रीकी टीम की कोशिश ये थी कि उन्हें दोबारा तिहरा शतक बनाने से किसी तरह रोका जाए. तो वे कुछ गड़बड़ भी कर रहे थे. जब बात सब्र से बाहर हो गई तो ‘वीरू भाई’ से रहा न गया फिर. हैरिस के पास जाकर बोले, ‘हिम्मत है तो राउंड द विकेट बॉल कर. छक्का मारूंगा’. हैरिस के लिए भी बात अब इज़्ज़त पर आन पड़ी. सो, उन्होंने चुनौती मंज़ूर कर ली. राउंड द विकेट बॉल डाल दी और वह पलक झपकते ही सीमा रेखा से बाहर. छक्का, सच में पड़ चुका था.
उस मैच में ‘वीरू भाई’ ने 319 रन बनाए थे. इस तरह डॉन ब्रेडमैन, ब्रायन लारा और क्रिस गेल के साथ क्रिकेट इतिहास के चुनिंदा चार खिलाड़ियों में शुमार हुए थे. इन सभी ने टेस्ट मैच में दो बार एक पारी में 300 से ज़्यादा रन बनाए हैं. वैसे एक रिकॉर्ड तो ‘वीरू-भाई’ का अनोखा है. दो बार 300 रन से ज़्यादा रन और एक पारी में पांच विकेट लेने का. जी हां, क्योंकि ‘वीरू भाई’ कभी-कभार गेंदबाज़ी में भी जौहर दिखा दिया करते थे. और मन करे तो कभी यूं ही, दूसरे खिलाड़ियों की मदद के लिए भी छक्के-वक्के जड़ देते थे. एक वाक़ि’आ इंग्लैंड का है. वहां काउंटी क्रिकेट खेल रहे थे. उधर घरेलू टूर्नामेंट होता है. लीसेस्टरशायर की टीम से ‘वीरू-भाई’ और जेरेमी स्नेप बल्लेबाज़ी कर रहे थे. दूसरी तरफ़ मिडिलसेक्स की टीम से पाकिस्तानी गेंदबाज़ अब्दुल रज़्ज़ाक पुरानी गेंद का फ़ायदा उठाकर लगातार रिवर्स स्विंग करा रहे थे. इससे बल्लेबाज़ों को दिक़्क़त हो रही थी.
तब ‘वीरू-भाई’ जेरेमी के पास आए और बोले, ‘तू चिंता मत कर, मैं इसका कुछ बंदोबस्त करता हूं’. और अगली गेंद में उन्होंने ऐसा छक्का मारा, ऐसा छक्का मारा कि गेंद ये गई कि वो. अरे, मतलब ग़ायब हो गई. ग़ुम गई मैदान के बाहर कहीं. अब नई गेंद आई तो ‘वीरू-भाई’ फिर जेरेमी के पास पहुंचे और बोले, ‘अब चिंता की बात नहीं. गेंद पुरानी होने में दो घंटे से ज़्यादा लगेगा. आराम से खेल’. तो ऐसे ही, ‘बड़े आराम से’ बड़े-बड़े कारनामे कर गुज़रे ‘वीरू-भाई’. आज उनका जन्मदिन है, तो कुछ याद कर लिए उनमें से. अलबत्ता हैं और भी तमाम क्योंकि ‘नवाबों’, ‘सुल्तानों’ की सल्तनत में क़िस्से हुआ ही करते हैं खूब. पर उन्हें फिर कभी याद करेंगे… ख़ुदा हाफ़िज़.
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