Daastaan-Go ; Amjad Khan Friendship With Amitabh Bachchan : कॉलेज के दौरान ही अमजद खान और उनसे बड़े भाई इम्तियाज़ के ख़िलाफ़ बांद्रा पुलिस थाने में तमाम केस दर्ज हो चुके थे. जानने वालों ने उन्हें एक तमगा भी दे दिया था- अच्छे दिलवाला गुंडा. मतलब अच्छे लोगों के साथ अच्छा होना और ग़लत लोगों को उन्हीं के अंदाज़ में सबक सिखाना, ये अमजद भाई की ख़ासियत थी.
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़…
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जनाब, तो बात चल रही थी, अस्ल ज़िंदगी में ‘जय’ और ‘गब्बर’ यानी अमिताभ बच्चन और अमजद खान के याराने की. यह याराना कितना मज़बूत रहा, इसकी एक मिसाल देखिए. वाक़ि’आ साल 1977 या 1978 का होगा. दोनों कलाकारों के साथ वाली ‘ग्रेट गैंबलर’ फिल्म की शूटिंग के वक़्त का. यह फिल्म 1979 में रिलीज हुई. गोवा में शूटिंग होनी थी. इसके लिए अमिताभ बच्चन कुछ पहले ही पणजी पहुंच गए थे. जबकि अमजद खान बीवी-बच्चों के साथ पीछे अपनी कार से आ रहे थे. लेकिन पणजी पहुंचते कि उससे पहले उनकी कार सड़क हादसे की शिकार हो गई. अमजद साहब के साथ कार में बैठे उनके बीवी-बच्चे भी बुरी तरह घायल हुए. इसके बावजूद जीवट के पक्के अमजद खान उसी हालत में कुछ मशक़्क़त कर, किसी तरह बीवी-बच्चों को लेकर पणजी के अस्पताल जा पहुंचे. हालांकि वहां पहुंचते ही ख़ुद नीम-बेहोशी की हालत में चले गए.
हादसे की ख़बर पाकर इधर फिल्म के सैट पर अफ़रा-तफ़री मच गई. तमाम लोग भागे-दौड़े अस्पताल पहुंचे. अमिताभ बच्चन भी. वहां मालूम हुआ कि अमजद खान के बीवी-बच्चे तो ख़तरे से बाहर हैं. लेकिन वे ख़ुद कॉमा में चले गए हैं. तुरंत ऑपरेशन किया जाना था. वर्ना उनकी जान पर बन आती. ऑपरेशन के लिए ज़िम्मेदारी लेते हुए काग़ज़ात पर दस्तख़त करने थे. मगर मौके पर अमजद खान के घर से तो कोई मौज़ूद था नहीं. बीवी-बच्चे ख़ुद ही घायल पड़े थे. फिल्म से जुड़े दूसरे लोग इन काग़ज़ात पर दस्तख़त करने को तैयार न हुए. ऐसे में, दोस्त होने के नाते अमिताभ बच्चन आगे आए. उन्होंने दस्तख़त किए. साथ ही ऑपरेशन के दीगर बंदोबस्त भी. अमजद साहब के बीवी-बच्चों को भी तुरंत ख़ास इंतज़ामात कर बंबई के लिए रवाना किया. ताकि वहां उनका बेहतर ‘इलाज किया जा सके. ऊपर वाले का शुक्र रहा कि ये कोशिशें बेकार न गईं.
जनाब, अमिताभ साहब ने ख़ुद ये वाक़ि’आ ‘फिल्मफेयर’ मैगज़ीन को दिए इंटरव्यू के दौरान साझा किया था. इसमें उन्होंने बताया, ‘अमजद भाई को गोवा से बंबई लाने के बाद हम दोनों की दोस्ती पहले से कहीं अधिक मज़बूत हो गई. अमजद भाई ने तब एक ख़त भी मेरे नाम लिखा था, जिसे मैंने अब तक संभाल कर रखा हुआ है’. ख़ास बात ये कि तीन साल बाद 26 जुलाई 1982 को, यानी से आज से एक रोज पहले वाली तारीख़ में ठीक इसी तरह के जानलेवा हादसे के शिकार अमिताभ बच्चन भी हुए. बेंगलुरू में ‘कुली’ फिल्म की शूटिंग के दौरान हुए हादसे के बाद वे भी कॉमा में चले गए थे. लेकिन करोड़ों चाहने वालों की दुआओं और डॉक्टरों की मशक़्क़त के बाद 12-14 घंटे बाद उस हाल से बाहर निकल आए. अगस्त की दो तारीख़ थी, जब उनका दूसरा जन्म हुआ. इसके बाद वे ड़ेढ़-पौने दो महीने और अस्पताल में रहे.
अमिताभ ने बताया था, ‘जब मैं अस्पताल में भर्ती था तो अमजद भाई लगातार मेरी मिज़ाज़-पुर्सी के लिए आया करते थे. हम घंटों साथ बैठते. कई बार तो रात-रातभर साथ रहते. तरह-तरह के चुटकुले सुनाकर वे मेरा दिल बहलाया करते.’ लेकिन जनाब, अमजद सिर्फ़ अमिताभ के साथ ऐसी दोस्ती निभाते थे, ऐसा भी नहीं है. ख़ुद अमिताभ बताते हैं, ‘फिल्मी दुनिया में ऐसा कौन था, जो अमजद भाई को पसंद न करता हो’. और जनाब फिल्मी दुनिया से बाहर भी. फिल्मों के लिए लिखने वाले ख़बरनवीस अली पीटर जॉन बताते हैं, ‘मैंने पहली बार अमजद भाई के बारे में तब सुना जब वह नेशनल कॉलेज में पढ़ा करते थे. वहां छात्र संघ में किसी ओहदे पर थे. पढ़ने में होशियार होते थे. कॉलेज के दौरान थिएटर भी करने लगे थे. उसमें भी उनकी ख़ूब तारीफ़ें हो रही थीं. लेकिन ये जानना भी दिलचस्प हो सकता है कि उनसे लोग ख़ौफ़ भी खाते थे’.
अली पीटर के मुताबिक, ‘दरअस्ल कोई उनसे या उनके किसी दोस्त से बदतमीज़ी करता तो वे सीधे पठानी अंदाज़ में उस शख़्स की अक़्ल ठिकाने लगा दिया करते थे. इस वज़ह से कॉलेज के दौरान ही उनके और उनसे बड़े भाई इम्तियाज़ के ख़िलाफ़ बांद्रा पुलिस थाने में तमाम केस दर्ज हो चुके थे. जानने वालों ने उन्हें एक तमगा भी दे दिया था- अच्छे दिलवाला गुंडा. मतलब अच्छे लोगों के साथ अच्छा होना और ग़लत लोगों को उन्हीं के अंदाज़ में सबक सिखाना, ये अमजद भाई की ख़ासियत थी. ऐसी ही ख़ासियतों और थिएटर में उनकी एक्टिंग वग़ैरा से कॉलेज के वक़्त ही ख़्वाजा अहमद अब्बास जैसे कई बड़े फिल्मकारों, डायरेक्टरों तक उनके चर्चे पहुंच चुके थे. मुमकिन है, रमेश सिप्पी ने भी उन्हें इसी तरह जाना हो’. जी जनाब, रमेश सिप्पी, जो लोगों की मुख़्तलिफ़ राय के बावज़ूद ‘शोले’ में अमजद खान को ‘गब्बर’ का किरदार देने पर अड़ गए थे.
तो जनाब, अमजद भाई ने जिस तरह दोस्तों से दोस्ती की, उसी तरह इश्क़ भी फ़रमाया. बीए में पढ़ते थे. बंबई के बांद्रा इलाके में रहा करते थे. पड़ोस में रहती थी एक 14 साल की बच्ची शेहला. न जाने कैसे उसे देखते ही अमजद भाई को उससे मोहब्बत हो गई. शेहला ने ख़ुद उस दौर को एक बार ‘फिल्मफेयर’ मैगज़ीन के नुमाइंदे के साथ बातचीत के दौरान याद किया था, ‘मैं तो उन्हें पहले जयंत अंकल के बेटे की तरह ही जानती थी. हम साथ में बैडमिंटन खेलते थे. कि अचानक एक रोज़ वे मेरे पास आए और कहने लगे- मुझे भाई-वाई मत कहा कर. मुझे तब कुछ समझ नहीं आया. पर एक दिन जब मैं स्कूल से लौट रही थी, तो पूरा माज़रा खुला. उस दिन वे मेरे पास आए और बोले- तुझे शेहला का मतलब पता है. मैंने कहा- हां, जिसकी काली-काली आंखें हों, क्यों? मैं कुछ समझ पाती कि वे मुझसे कहने लगे- जल्दी से बड़ी हो जा. मुझे तुझसे शादी करनी है’.
जनाब एक बड़े मुसन्निफ़ हुए हैं, अख़्तर-उल-ईमान. शेहला उन्हीं की बेटी हैं. वे बताती हैं, ‘कुछ ही दिनों में अमजद साहब ने मेरे घर शादी की पेशकश भेज दी. लेकिन मेरे वालिद ने मना कर दिया. यह कहकर कि लड़की अभी बहुत छोटी है. सही बात भी थी. लेकिन अमजद साहब इससे बहुत ख़फ़ा हो गए. बाद में वे मुझे मिले तो गुस्से में कहने लगे- अगर मेरे गांव में किसी ने इस तरह मना किया होता तो हम उस खानदान की तीन पीढ़ियां साफ कर देते. मेरे वालिद भी अपसेट थे. उन्होंने मुझे आगे की पढ़ाई के लिए अलीगढ भेज दिया. लेकिन वहां भी अमजद साहब ने मुझसे बात करना न छोड़ा. वे मुझे रोज़ एक ख़त लिखा करते थे. अब तक मैं भी उनसे मोहब्बत करने लगी थी. तो मैं उन्हें ज़वाबी ख़त लिखा करती थी. कि तभी मेरी तबीयत ख़राब हो गई’.
शेहला के मुताबिक, ‘तबीयत बिगड़ने के बाद मुझे वापस बंबई ले आया गया. आगे पढ़ाई वहीं हुई. इसके बाद हम लगातार मिलते रहे. अमजद साहब पढ़ाई में होशियार थे. वे मुझे मेरी पढ़ाई में मदद करते थे. मेरे पसंद की चीजें लाकर दिया करते थे. इस तरह जब मेरी पढ़ाई पूरी हो गई तो हमने शादी का फ़ैसला कर लिया. उसके लिए बाक़ायदा अमजद साहब के मां-बाप रिश्ता लेकर मेरे घर आए और तब हमारी शादी हुई.’ जनाब, ये बात है साल 1972 की, जब अमजद भाई ने अपनी मोहब्बत शेहला को शरीक़-ए-हयात बना लिया. शेहला बताती हैं, ‘अमजद साहब जितने अच्छे दोस्त, खाविंद (पति) हुए उतने ही अच्छे पिता भी. दुनिया के लिए वे ख़तरनाक डाकू ‘गब्बर’ सिंह हुए. मगर घर में, जान-पहचान वालों में, सबके चहीते अमजद भाई, जिनसे सभी सिर्फ़ मोहब्बत करते थे’. पर वो कहते हैं न जनाब, अच्छे लोगों को ऊपर-वाला जल्द अपने पास बुला लेता है. अमजद भाई को भी बुला लिया उसने. साल 1992 में 27 जुलाई की तारीख़ को, यानी आज ही के दिन.
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* दास्तान-गो : अमजद खान को सिर्फ़ ‘गब्बर’ की तरह न देखें, वे और भी बहुत कुछ हैं
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Tags: Amjad Khan, Death anniversary special, Hindi news, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : July 27, 2022, 18:13 IST