केवल सिंहासन या फिर असल में शासन: क्या गांधी परिवार मुक्त कांग्रेस कभी संभव है
केवल सिंहासन या फिर असल में शासन: क्या गांधी परिवार मुक्त कांग्रेस कभी संभव है
Congress President Election News: 1998 के बाद से यह पहली बार है जब कोई गैर-गांधी परिवार का कांग्रेसी अध्यक्ष पद पर आसीन होगा. लेकिन सवाल यह उठता है कि किया इससे कांग्रेस गांधी परिवार मुक्त हो सकती है. जिस कांग्रेस पार्टी का उद्भव और विकास गांधी-नेहरू परिवार के इर्द गिर्द ही हुआ, क्या उसका रिश्ता गांधी परिवार से टूट सकता है?
नई दिल्ली: ‘इस दिन का मैं लंबे समय से इंतजार कर रही थी’. कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में वोटिंग के दिन यही वह पहली प्रतिक्रिया थी, जो सोनिया गांधी ने दी. 1998 के बाद से यह पहली बार है जब कोई गैर-गांधी परिवार का कांग्रेसी अध्यक्ष पद पर आसीन होगा. लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इससे कांग्रेस गांधी परिवार मुक्त हो सकती है. जिस कांग्रेस पार्टी का उद्भव और विकास गांधी-नेहरू परिवार के इर्द गिर्द ही हुआ, क्या उसका रिश्ता गांधी परिवार से टूट सकता है?
आखरी बार यह कोशिश की गई थी तो थोड़ी सफलता मिली थी. यह 2004 की बात है, जब कांग्रेस ने चुनाव जीत कर सभी को हैरान कर दिया था. उस दौरान सोनिया गांधी ने यूपीए का गठन किया और कई दलों के साथ गठबंधन बनाया. उस वक्त भी ऐसा माना जा रहा था कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनेंगी, लेकिन जब कांग्रेसियों से खचाखच भरी एक सभा में सोनिया गांधी ने कहा कि वह अपनी अंतर्रात्मा की आवाज सुन रही हैं, जो उन्हें इस पद को स्वीकार करने से मना करती है. उस वक्त उनके इस फैसले से कई लोग रोए थे, उनमें से कुछ आंसू सच्चे भी थे.
फिर इस पद के लिए उचित उम्मीदवार की तलाश शुरू हुई, जो डॉ. मनमोहन सिंह पर जाकर खत्म हुई. इस फैसले ने पार्टी के अंदर सभी को चौंका दिया. खासकर उन्हें जो मन ही मन प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोए हुए थे. इनमें से दिवंगत प्रणब मुखर्जी भी थे. इस बात को मंत्रिमंडल में कई लोग पचा नहीं पाए कि अब अराजनीतिक मनमोहन सिंह उनके बॉस होंगे, ऐसे में एक योजना बनाई गई. मनमोहन सिंह को पीएम बनाए जाने के फैसले से दबी जुबान में असंतुष्ट नेताओं ने उन्होंनें सोनिया गांधी से कहा, ‘हमें आपके मार्गदर्शन की जरूरत होगी. आपने ही यूपीए का गठन किया, आपके विचार के चलते ही कई दल जैसे डीएमके, टीआरएस हमारे साथ आए, इसलिए हमें आपकी ज़रूरत पड़ेगी ताकि सरकार ठीक तरह से चल सके.’
इस वजह से एनएसी यानी राष्ट्रीय सलाहकार समिति अस्तित्व में आई, जिसका दफ्तर सोनिया के निवास 10 जनपथ के सामने था और इस तरह से यहां से निकलने वाली कई सलाह घूम कर 7 रेसकोर्स रोड (प्रधानमंत्री निवास) जाने लगीं. मसलन जब 2006 में तात्कालीन अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को लगा कि तेल की कीमत कम नहीं की जानी चाहिए तब एनएसी कुछ और सोच रहा था. जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने महत्वकांक्षी खाद्य सुरक्षा बिल के लिए बजट कहां से आएगा, यह सोच कर इसका विरोध किया लेकिन गांधी परिवार ने इसे लाने के लिए भी जोर दिया. राहुल गांधी का उस आध्यादेश को फाड़ना जो अपराधियों को चुनाव लड़ने से रोकता था, इन सभी उदाहरणों ने बताया कि खेल मनमोहन सिंह रहे हैं लेकिन खिलाड़ी तो गांधी परिवार है. और इस तरह यूपीए ने पहले 10 जनपथ और बाद में 12 तुगलक लेन से सरकार चलाए जाने का आभास दिया. इसे रिमोट कंट्रोल की सरकार कहा जाने लगा.
यह तो खैर बीती बात हो गई, इसके बाद वर्तमान में आते हैं. जब यह लगभग तय माना जा रहा है कि मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेसस अध्यक्ष पद के सिंहासन पर विराज सकते हैं, लेकिन उनका यह कहना कि ‘मुझे गांधी परिवार से सलाह और मदद लेने में कोई हिचक नहीं है’ यह इशारा करता है कि शासन किसका चलने वाला है, कांग्रेस किसके कंट्रोल में रहने वाली है. खड़गे कांग्रेस के पुराने सिपहसालार हैं. वह सीताराम केसरी वाले अध्याय से भी वाकिफ हैं, जहां वफादारों का एक सक्रिय समूह उभरा था और पार्टी की सुरक्षा के नाम पर सोनिया गांधी को सक्रिय राजनीति में धकेल दिया गया था. जबकि असली वजह यह थी कि वह खुद को प्रासंगिक बनाए रखना चाहते थे. दरअसल, कांग्रेस में केकड़े की मानसिकता रही है, जहां एक केकड़ा किसी बंद डब्बे से बाहर निकलने की सोचता है और प्रयास करता है तो बाकी उसकी टांग पकड़ कर उसे गिरा देते हैं. ऐसे हालात में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि खड़गे को जल्द ही आलोचनाओं और विरोध का सामना करना पड़ सकता है. इसमें वे लोग भी होंगे, जो अभी उनके समर्थन में खड़े हुए हैं. अगर शशि थरूर अध्यक्ष बनते हैं तो यह कृपा शायद और जल्दी कम होगी.
इसलिए सोनिया गांधी के सीट छोड़ने को लेकर खुशी जाहिर करने के बावजूद, राहुल गांधी एक पार्टी कार्यकर्ता की तरह भारत जोड़ो यात्रा पर ज्यादा ध्यान देना चाहते हैं, प्रिंयका गांधी वाड़्रा उत्तर प्रदेश पर ध्यान देना चाहती हैं, ताकि वह प्रचार अभियान में शामिल हों, कई लोग यह चाहते हैं कि गांधी परिवार की प्रासंगिकता बनी रहे ताकि इससे उनकी प्रासंगकिता बनी रहे. मगर अब सवाल यह खड़ा होता है कि यह आदर्शवाद का दौर कब तक जारी रहेगा? जैसा कि एक शीर्ष सूत्र ने बताया कि सोनिया गांधी अभी भी यूपीए की अध्यक्ष संसदीय दल की नेता हैं, इसका मतलब ही साफ है कि कहानी किस दिशा में जा रही है. इसलिए गांधी परिवार-मुक्त कांग्रेस उस मृग मरीचिका के समान है जो दूर से दिखाई दे रही है, लेकिन उसका कोई अस्तित्व नहीं है. इस तरह गांधी परिवार मुक्त कांग्रेस हकीकत से कोसों दूर है.
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Tags: Congress President Election, Sonia GandhiFIRST PUBLISHED : October 19, 2022, 12:30 IST