इस्लाम धर्म में ब्याज लेना और देना दोनों ही हराम माना जाता है. इस धर्म को ईमानदारी से मानने वाले लोग न तो ब्याज लेते हैं और न देते हैं. इस्लाम में ब्याज को हराम बताया गया है....
वसीम अहमद/अलीगढ़: हिंदू, मुस्लिम, सिख या इसाई कोई भी धर्म हो. इन सभी धर्मों के अपने नियम हैं और अलग-अलग धर्मों से आने वाले लोग अपने धर्म के नियमों का पालन करते हैं. इन धर्मों में कुछ कार्यों को पुण्य बताया जाता है तो कई ऐसे कार्य भी होतें हैं जिनसे दूरी बनाकर रखने की सलाह दी जाती है. इस्लाम धर्म में ऐसे ही एक काम के बारे में बताया गया है कि उसको करना हराम माना जाता है.
इस्लाम धर्म में ब्याज यानी की सूद लेना और देना दोनों ही हराम माना जाता है. इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों में ना तो ब्याज दी जाती है और ना ही ब्याज ली जाती है. इस्लाम धर्म में ब्याज के लिए सख्त मनाही है. इस काम को हराम करार दिया गया है. यहां तक इस धर्म में बैंक में रखे पैसे पर मिलने वाली ब्याज को लेकर भी नियम है.
इस्लाम धर्म के जानकार बताते हैं कि बैंकों में लोगों द्वारा जमा किए गए या रखे गए पैसों पर बैंक की तरफ से जो ब्याज दी जाती है उसे भी अपने ऊपर खर्च नहीं करना चाहिए. जानकारों के मुताबिक, ब्याज के उस पैसे को जरूरतमंदों को दान में दे देना चाहिए.
आपके मन में भी सवाल आ रहा होगा कि आखिर इसके पीछे की वजह क्या है और इस्लाम में ब्याज को हलाल क्यों नहीं माना गया और यह हराम क्यों है. तो इसके लिए पहले हलाल और हराम शब्द का मतलब समझना होगा.
क्या है हराम और हलाल?
दरअसल, इस्लाम धर्म में इस्तेमाल होने वाले हलाल और हराम अरबी शब्द हैं. हलाल का मतलब होता है वैध यानी जिस काम की इस्लाम धर्म इजाजत देता है या जो उचित काम है. दूसरा शब्द है हराम यानी जो अवैध हो, जिसे इस्लाम मे उचित नहीं माना गया है. यानी ऐसे काम जिसे करने पर इस्लाम धर्म में रोक है.
इस्लाम में जिन कृत्यों को करने की इजाजत दी गई है, वे सब ‘हलाल’ हैं और जिन पर रोक है, वे सब ‘हराम’ हैं. ब्याज यानी सूद लेना और देना इस्लाम मे मना है. इसीलिए ब्याज को हराम करार दिया गया है.
इस्लामिक स्कॉलर मौलाना उमेर खान बताते हैं कि हदीस में साफ-साफ बताया गया है कि ब्याज लेने वाला और देने वाला दोनों ही जहनुम्मी हैं यानी कि नर्कवासी हैं. मुसलमानों की सबसे पवित्र किताब कुरान में भी तिजारत को हलाल करार दिया गया है और ब्याज को हराम करार दिया गया है.
ब्याज को माना जाता है इतना बड़ा अपराध
इस्लाम में सूद का कॉन्सेप्ट बिल्कुल क्लियर है. इस्लाम धर्म में सूद लेना और देना इतना बड़ा गुनाह माना जाता है कि मानो किसी शख्स ने 36 बार अपनी मां के साथ बलात्कार किया हो तो भी सूद के गुनाह से कम है.
हालांकि, इस्लाम में जरूरतमंद लोगों के लिए कुछ रियायतें भी दी गई हैं. जैसे मान लिजिए कि अगर किसी को कोई चीज को खरीदने की जरूरत है, लेकिन उसके पास पैसे नहीं हैं तो वह किश्त पर उस चीज को खरीद सकते हैं. हालांकि, इसमें भी किस्त सही टाइम पर जमा करना होगा और समय पर किस्त अदा करने पर गुनाह नहीं माना जाएगा. अगर किसी ने सही समय पर किश्त नहीं जमा किया और उस पर ब्याज लग गई तो वह ब्याज शख्स ने भर दिया है तो इसे सूद के गुनाह के रूप में देखा जाएगा.
ब्याज के कारोबार वाली नौकरी करना भी है गुनाह
आज की तारीख में कई लोग ऐसी जगहों पर नौकरी करते हैं जहां ब्याज का कारोबार किया जाता है. इस बारे में मौलाना उमर खान कहते हैं कि अगर कोई शख्स ऐसी जगह नौकरी कर रहा है जहां ब्याज का कारोबार किया जाता हो तो ऐसी सूरत में उसे वहां नौकरी नहीं करनी चाहिए. उनके मुताबिक, ऐसी नौकरी को भी इस्लाम में गलत माना जाता है.
Tags: Local18FIRST PUBLISHED : May 15, 2024, 13:56 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed