गुजरात चुनाव 2022: कच्छ का रण भीषण AAP और AIMIM की दावेदारी से किसे फायदा किसे नुकसान

Gujarat Election 2022: गुजरात चुनाव को लेकर सभी पार्टियां अपनी-अपनी दावेदारी ठोक रही हैं. नेता, कार्यकर्ता गली-गली प्रचार में जुटे हुए हैं. प्रदेश के अलग-अलग जिलों में अलग-अलग जातिगत, राजनीतिक समीकरण हैं. कच्छ जिले में भी इस बार मामला बेहद रोचक है.

गुजरात चुनाव 2022: कच्छ का रण भीषण AAP और AIMIM की दावेदारी से किसे फायदा किसे नुकसान
हाइलाइट्सकच्छ में 'AAP' के आने से त्रिकोणीय चुनाव की संभावनाबीजेपी ने किया यहां से क्लीन स्वीप का दावाग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस का साइलेंट कैंपेन जारी कच्छ. गुजरात में चुनावी सरगर्मियां तेज हैं. इस बार भारी शोर शराबे के साथ ‘आप’ के चुनाव लड़ने से कई सीटों पर मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है. पहले चरण में एक दिसंबर और दूसरे चरण में 5 दिसंबर को मतदान होने हैं. गुजरात के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग राजनीतिक समीकरण हैं. कई जगहों पर आप ने त्रिकोणीय मुकाबला बनाने का प्रयास किया है. ऐसे ही हाल कच्छ का भी है. भाजपा को जहां कच्छ जिले में जीत का सिलसिला बरकरार रहने का भरोसा है, वहीं कांग्रेस ग्रामीण क्षेत्रों में साइलेंट अभियान चला रही है, जबकि आम आदमी पार्टी ने रिंग में ताल ठोंककर चुनाव को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास किया है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) भी दो अल्पसंख्यक बाहुल्य सीटों पर चुनाव लड़ रही है. कच्छ में 1 दिसंबर को पहले चरण में मतदान होना है, जिसमें छह विधानसभा क्षेत्र- अब्दासा, भुज, रापर (सभी पाकिस्तान की सीमा से लगते हैं), मांडवी, अंजार और गांधीधाम हैं. जिले में छह निर्वाचन क्षेत्रों में फैले लगभग 16 लाख मतदाता हैं, जिनमें से पुरुष और महिला मतदाता समान अनुपात में हैं. कुल मतदाताओं में मुसलमानों की संख्या लगभग 19 प्रतिशत है, जबकि दलितों की संख्या लगभग 12 प्रतिशत है, और लेउवाओं और कडवाओं सहित पटेलों की संख्या लगभग 10.5 प्रतिशत है. वहीं क्षत्रिय और कोली समुदायों में क्रमशः लगभग 6.5 प्रतिशत और 5.2 प्रतिशत मतदाता शामिल हैं. चुनावों में वोटरों की बात करें तो दलित, क्षत्रिय, कोली, ब्राह्मण और राजपूत पिछले दो दशकों से भगवा खेमे के कोर मतदाता रहे हैं, लेकिन पटेलों का एक बड़ा वर्ग, जो 2012 तक भाजपा के साथ था, वो 2015 के पाटीदार आंदोलन के बाद से भगवा खेमे के खिलाफ हो गया. दूसरी ओर, कांग्रेस अल्पसंख्यकों की पहली पसंद रही है और ग्रामीण क्षेत्रों में पटेलों, क्षत्रियों और रबारी जैसे अन्य छोटे समुदायों के लिए भी कांग्रेस पहली पसंद है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कच्छ में तिरंगा यात्रा आयोजित करने के साथ ही ‘AAP’ इस क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य और पानी जैसे बुनियादी मुद्दों पर जोर दे रही है. AIMIM क्षेत्र में अल्पसंख्यकों के विकास के मुद्दे पर चुनावी ताल ठोंक रही है. बीजेपी के लिए बागी उम्मीदवार चिंता का विषय भारतीय जनता पार्टी, जो 2002 से कच्छ जिले की छह सीटों में से अधिकांश पर जीत हासिल कर रही है, इस बार विकास और विभाजित विपक्ष, दोनों पर सवार होकर क्लीन स्वीप करने की उम्मीद में है. बीजेपी के कच्छ जिले के मीडिया प्रभारी सात्विक गढ़वी ने कहा कि ‘हम इस बार क्लीन स्वीप करने को लेकर आश्वस्त हैं. बीजेपी का कोई विरोध नहीं है, क्योंकि 2001 में भूकंप के बाद हमने जो विकास किया था, उसके लिए लोग हमारे साथ हैं.’ भाजपा सूत्रों के मुताबिक जिले में बिखरे विपक्ष को पार्टी ज्यादा महत्व नहीं दे रही है, लेकिन उम्मीदवारों के चयन को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं के एक वर्ग में नाराजगी चिंता का विषय है. कच्छ के अब्दासा सीट पर भाजपा के उम्मीदवार पूर्व कांग्रेसी और क्षत्रिय समुदाय के मौजूदा विधायक प्रद्युम्न सिंह जडेजा हैं. यहां से कांग्रेस और आप के उम्मीदवारों के अलावा, क्षत्रिय-जडेजा समुदाय के एक निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहे हैं. निर्दलीय प्रत्याशी पहले भाजपा का हमदर्द हुआ करते थे. भुज सीट पर, पार्टी ने अपने दो बार के मौजूदा विधायक और गुजरात विधानसभा की पहली अध्यक्ष निमाबेन आचार्य की जगह केशुभाई शिवदास पटेल को टिकट दिया है. जो अपने संगठनात्मक कौशल के लिए जाने जाते हैं. टिकट काटे जाने से निमाबेन आचार्य के समर्थक खुश नहीं हैं. अंजार में, पार्टी ने अपने मौजूदा विधायक वासनभाई अहीर की जगह पार्टी नेता त्रिकमभाई छंगा को उतारा है. मांडवी में, भाजपा ने अपने मौजूदा विधायक वीरेंद्र सिंह जडेजा की जगह अनिरुद्ध दवे को उतारा है. जडेजा को पड़ोसी रापर सीट से टिकट दिया गया है, जिसे कांग्रेस ने 2017 में जीता था. कच्छ के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि हमारे लिए, यह विपक्ष चिंता का विषय नहीं है. लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं के एक वर्ग के बीच नाराजगी थोड़ी चिंता का विषय है. विपक्षी दलों ने सांप्रदायिक राजनीति से दूर रहने की बनाई रणनीति राज्य के अन्य क्षेत्रों की तरह यहां भी कांग्रेस बेहद लो पिच कैंपेन चला रही है. विपक्षी दल सांप्रदायिक राजनीति से बचने की पूरी कोशिश कर रहा है और शासन के मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है. कांग्रेस के लिए कच्छ जिले को फिर से जीतना और खासतौर पर पिछली बार जीती दो सीटों को बरकरार रखना बड़ी चुनौती है. कांग्रेस के जिला अध्यक्ष यजुवेंद्र जडेजा ने कहा कि हमें कच्छ जिले की सभी छह सीटों पर जीत का भरोसा है. यहां के लोग भाजपा के कुशासन से तंग आ चुके हैं. भाजपा चुनाव जीतने के लिए सांप्रदायिक प्रचार जैसे हथकंडे अपना रही है. कांग्रेस बाकी हिस्सों की तरह कच्छ में भी साइलेंट तरीके से दूरदराज के क्षेत्रों में लोगों के घर तक पहुंच रही है. हालांकि, AAP और AIMIM के प्रवेश ने क्षेत्र के चुनावी अंकगणित को बिगाड़ दिया है. कांग्रेस और भाजपा को आशंका है कि ‘AAP’ पटेल समुदाय, क्षत्रिय, अल्पसंख्यकों के एक वर्ग और दलितों के बीच उनके वोटों में सेंध लगा सकती है. AIMIM के आने से बीजेपी को फायदा कच्छ में AAP की मीडिया प्रभारी अंकिता गोर ने कहा कि इस क्षेत्र के लोगों में, खासकर दूरदराज के इलाकों में, शिक्षा, स्वास्थ्य और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी है. हमारे लिए सुशासन सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण है. स्थानीय लोगों के अनुसार, कच्छ क्षेत्र में आप के लिए नकारात्मक कारक भाजपा और कांग्रेस की चुनाव मशीनरी को संभालने के लिए संगठनात्मक ताकत का अभाव है. स्थानीय भाजपा इकाई AIMIM के चुनाव लड़ने से बेहद उत्साहित है, क्योंकि भुज और मांडवी जैसी सीटों पर कांग्रेस के अलावा अल्पसंख्यक वोटों के लिए एक दावेदार और होगा, जहां काफी मुस्लिम मतदाता हैं. AIMIM ने कहा कि वह पूरे कच्छ जिले में केवल दो सीटों पर चुनाव लड़ रही है, इसलिए उन पर यह आरोप लगाना कि वे यहां कांग्रेस का वोट काटने आए हैं, यह पूरी तरह बेबुनियाद है. 2019 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा ने कच्छ लोकसभा सीट जीती, जो कि वह 1996 से जीत रही है, कुल मतदान का 62 प्रतिशत से अधिक वोट पाकर, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 32 प्रतिशत वोट मिले. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी| Tags: Assembly electionFIRST PUBLISHED : November 28, 2022, 10:39 IST