कैसे हुड्डा बने रहते हैं राज्य कांग्रेस में किंग गांधी फैमिली की भी नहीं चलती

Haryana Chunav: हरियाणा कांग्रेस की राजनीति में भूपेंद्र सिंह हुड्डा कैसे गांधी फैमिली के फरमानों पर भी भारी पड़ते रहें है. प्रदेश कांग्रेस में कैसे उन्होंने विरोधियों को दरकिनार किया है.

कैसे हुड्डा बने रहते हैं राज्य कांग्रेस में किंग गांधी फैमिली की भी नहीं चलती
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने एक दफा अपने पिता रणवीर सिंह की न मान कर राजीव गांधी की सुनी और लोकसभा चुनाव लड़ गए. उनके सामने भारतीय राजनीति के दिग्गज देवीलाल थे. ताऊ कहे जाने वाले देवीलाल को उन्होंने हरा दिया. देवीलाल अक्सर अपने मिलने वालों से कहा करते थे, लड़ो तो बड़ों से, छोटो से नहीं. ताऊ की ये बात हुड्डा के कानों तक पहुंची हो या नहीं लेकिन हुआ यही. दिग्गज से लड़ कर तीन बार उन्हें हराने वाले हुड्डा का कद बहुत बड़ा हो गया और हरियाणा की राजनीति से देवीलाल की विदाई ही हो गई. दौर बदला. अब राजीव गांधी के बेटे और कांग्रेस अध्यक्ष चाह रहे थे कि हरियाणा कांग्रेस की कमान हुड्डा परिवार से अलग किसी को दी जाय, लेकिन चली हुड्डा की ही. राहुल के चेहेते रणदीप सुरजेवाला या सोनिया गांधी की प्रिय रही शैलजा हरियाणा कांग्रेस के टिकट बंटवारे में उतना प्रभावी असर नहीं डाल सकीं. हुड्डा की मजबूत जड़ों को समझने के लिए उनकी पिछली राजनीति को समझना होगा. राजीव गांधी से नजदीकी पारंपरिक कांग्रेसी परिवार में जन्मे साल 1982 में हुड्डा राजीव गांधी के करीब पहुंच चुके थे. उस समय वे युवा थे. राजीव गांधी ने उन्हें अपने साथ एशियाई खेलों की तैयारी वाली लिस्ट में शामिल किया था. बहरहाल, साल 1982 में किलोई सीट से विधान सभा का चुनाव लड़े और हार गए. उस दौर में भजन लाल मुख्यमंत्री थे. भजनलाल ने हुड्डा की मदद नहीं की. इसे हुड्डा ने ध्यान रखा और बाद में हरियाणा की राजनीति से भजनलाल की विदाई भी हुड्डा के चलते ही हुई. परिवार की कहानी हुड्डा के दादा कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे. उनके पिता संविधान सभा के सदस्य बने. पहली संसद के सदस्य रहे. संयुक्त पंजाब में मंत्री भी बने. भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी राजनीति में उतरे तो एक बार किलोई विधान सभा सीट से एमएलए और तीन बार सांसद बने. साल 91, 96 और फिर 98 में देवीलाल को हराने की वजह से नेशनल पॉलिटिक्स में उनकी ताकत बढ़ी. लेकिन हरियाणा में अभी भी भजनलाल का ही असर ज्यादा था. साल 1997 तक भजनलाल और हुड्डा की खटपट सतह पर दिखने लगी थी. भजनलाल के बाद हरियाणा कांग्रेस के हाथ से निकल चुका था. वंशी लाल और ओम प्रकाश चौटाल के बाद के चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व ने दोनो की भूमिका बदल दी. भजनलाल को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. टिकट का बंटवारा भजनलाल के हिसाब से ही हुआ लेकिन कांग्रेस को मिली 67 सीटों पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ऐसी गोटी बिठाई कि अपने लोगों को टिकट दिलाने के बाद भी भजनलाल विधायक दल के नेता नहीं बन सके. मार्च 2005 को भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा के मुख्यमंत्री बन गए. उसी के बाद भजनलाल को कांग्रेस से अलग हो कर अपनी अलग पार्टी बनानी पड़ी. दुबारा भी सीएम बने फिर भी अगले चुनाव में सीएम की कुर्सी हुड्डा को ही मिली. इस तरह से हरियाणा में देवीलाल की जमीन को हुड्डा ने कमजोर और भजनलाल तो तकरीबन खत्म ही कर दिया. भजनलाल का असर कुछ सीटों तक सिमट कर रह गया, लेकिन कांग्रेस में उनके लिए अब कुछ नहीं बचा. ताऊ देवी लाल का वचन सही साबित हुआ. ताऊ कहते थे कि बड़े से लड़ोगे तो बड़े बनेगो और छोटो से लड़ने पर छोटा हो जाना पड़ेगा. हुड्डा देवीलाल से लड़ कर बड़े हुए और भजनलाल अपने राजनीतिक कद से छोटे रहे हुड्डा से लड़ कर छोटे हो गए. उन्होंने तकरीबन वैसे ही नुस्खे का इस्तेमाल किया है जैसा कांग्रेस में इंदिरा गांधी ने अपने विरोधियों को निपटाने के लिए किया था. या फिर बाद के आलाकमान ने किया. SRK गुट की कहानी अब एक नया गुट हरियाणा में बना. इसे एसआरके कहा गया. इसमें शैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरन चौधरी. हुड्डा की ही तरह रणदीप के पास भी पिता की विरासत थी. उनके पिता शमशेर सिंह सुरजेवाला संयुक्त पंजाब में मंत्री रहे. जबकि किरन चौधरी वंशीलाल की विरासत लेकर चल रही थी. इधर कुमारी शैलजा युवा और दलित होने के कारण कांग्रेस आलाकमान की पसंद रहीं. इसमें से किरण चौधरी को कांग्रेस छोड़नी पड़ी. जबकि रणदीप सुरजेवाला को केंद्रीय राजनीति की ओर ही देखना पड़ा. शैलजा हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष भी रही लेकिन इस बार की सूची देखने पर इन दोनों के चहेते प्रत्याशियों के नाम नहीं दिखते हैं. अलबत्ता सुरजेवाला अपने बेटे को टिकट दिलाने में सफल रहे. ये भी पढ़ें : भगवंत मान ने सुनाई सरकारी स्‍कूल की जो कहानी, क्‍या आपको भी लगी होगी अपनी जैसी, सच में बच्‍चे पर होता है इतना प्रेशर? वरिष्ठ पत्रकार अनिल त्यागी कांग्रेस पार्टी और हरियाणा की राजनीति में हुड्डा की मजबूती के बारे में बताते हैं -“हुड्डा के पास सबसे खास बात ये है कि वो धैर्य से लोगों को सुनते हैं. विधान सभा टिकट का बंटवारा बहुत सोची समझी रणनीति के तहत करते हैं. सख्ती न करते हुए प्रशासन में ऐसी पकड़ रखते हैं कि अपने लोगों के काम उस वक्त भी करा सकें जब सरकार में न हो. उन्होंने देवीलाल से ये सीखा है कि अपनी जाति के साथ दूसरी जातियों के लोगों को जोड़ कर कैसे रखा जाय.” Tags: Bhupinder singh hooda, Haryana Election, Haryana election 2024FIRST PUBLISHED : September 19, 2024, 15:15 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed