क्रांतिकारी अशफ़ाक की मां के नाम आखिरी चिट्ठीदिया था ये खास संदेश
क्रांतिकारी अशफ़ाक की मां के नाम आखिरी चिट्ठीदिया था ये खास संदेश
अमर शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला खां ने जानकारी देते हुए बताया कि फांसी की तारीख मुकर्रर होने के बाद पूरा परिवार अशफाक उल्ला खां से मिलने के लिए फैजाबाद जेल पहुंचा था. मुलाकात के दौरान उनकी मां मेहरून निशा भावुक हो रही थी. जिसके बाद अशफाक उल्ला खां मां को ढांढस बंधाते हुए वापस घर भेज दिया था.
शाहजहांपुर: पूरा मुल्क आज काकोरी रेल एक्शन का शताब्दी वर्ष मना रहा है. 9 अगस्त 1925 को काकोरी रेल एक्शन को अंजाम दिया गया. इस रेल एक्शन में कुल 26 क्रांतिकारियों को आरोपी बनाया गया था. काकोरी रेल एक्शन में शाहजहांपुर के क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह भी शामिल थे. जिनको बाद में फांसी की सजा सुनाई गई थी. फांसी की तारीख मुकर्रर होने के बाद फांसी दिए जाने से पहले अमर शहीद अशफाक उल्ला खां ने अपनी मां को एक मार्मिक पत्र लिखा था.
अमर शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला खां ने जानकारी देते हुए बताया कि फांसी की तारीख मुकर्रर होने के बाद पूरा परिवार अशफाक उल्ला खां से मिलने के लिए फैजाबाद जेल पहुंचा था. मुलाकात के दौरान उनकी मां मेहरून निशा भावुक हो रही थी. जिसके बाद अशफाक उल्ला खां मां को ढांढस बंधाते हुए वापस घर भेज दिया था.
फांसी से पहले मां के नाम मार्मिक खत
प्रपौत्र अशफाक उल्ला खां ने फांसी से पहले अपनी मेहरून निशा मां को एक खत भी लिखा था, जिसमें लिखा था कि ‘ऐ दुखिया मां, मेरा वक्त बहुत करीब आ गया है, मैं फांसी के फंदे पर जाकर आपसे रुखसत हो जाऊंगा, लेकिन आप पढ़ी-लिखी मां हैं. ईश्वर ने और कुदरत ने मुझे आपकी गोद में दिया था. लोग आपको मुबारकबाद देते थे. मेरी पैदाइश पर आप लोगों से कहा करती थे कि यह अल्लाह ताला की अमानत है. अगर मैं उसकी अमानत था तो वो अब इस देश के लिए अपनी अमानत मांग रहे हैं.आपको अमानत में खयानत नहीं करनी चाहिए और इस देश को सौंप देना चाहिए.’ अशफाक उल्ला खान ने फांसी से पहले एक आखरी शेर भी कहा था, ‘कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो ये है कि रख दे कोई जरा सी खाक-ए-वतन कफन में.
दोस्ती की आज भी दी जाती है मिसाल
शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक उल्ला खान की दोस्ती की मिसालें आज भी दी जाती हैं. रामप्रसाद बिस्मिल के नाम के आगे पंडित जुड़ा था. तो वहीं अशफाक मुस्लिम थे, वो भी पांचों वक्त नमाजी. लेकिन इस बात का कोई फर्क दोनों पर नहीं पड़ता था. क्योंकि दोनों का मकसद एक ही था सिर्फ मुल्क को आजाद करवाना. शहीद अशफाक उल्ला खान के प्रपौत्र अशफाक उल्ला खान ने बताया कि पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खान के बड़े भाई के सहपाठी थे. इसी बीच अशफाक उल्ला खान को पता चला कि शहर के मिशन स्कूल में देश की आजादी के लिए एक संगठन बनाया जा रहा है. इस संगठन में शामिल होने के लिए अशफाक उल्ला खान ने भी इच्छा जाहिर की. इसके बाद दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई और इस गहरी दोस्ती का गवाह बना शाहजहांपुर का आर्य समाज मंदिर. जहां दोनों एक ही थाल में खाना खाया करते थे.
फैजाबाद जेल में दी गई थी अशफाक उल्ला खान को फांसी
काकोरी रेल एक्शन के बाद पुलिसिया जांच में तमाम लोगों के खिलाफ मुकदमें दर्ज किए गए. इसके अंतर्गत धारा 120बी, 123A और धारा 396 के तहत पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान के साथ क्रान्तिकारी राजेंद्र लाहिड़ी को भी मौत की सजा सुनाई गई. 19 दिसंबर 1927 को पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, ठाकुर रोशन सिंह को मलाइका जेल इलाहाबाद (प्रयागराज) और अशफाक उल्ला खान को फैजाबाद जेल में फांसी दी गई.
शवयात्रा में 20 लाख लोगों की भीड़
पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी सुबह 6:30 बजे दी गई थी. फांसी से पहले उन्होंने अपनी आत्मकथा के लेखन का काम में जेल में ही पूरा किया था. उसके बाद उनके शव को जेल के पीछे की दीवार तोड़कर शव परिजनों को सौंपा गया था. और 20 दिसंबर को उनकी शवयात्रा में तकरीबन 20 लाख लोगों की भीड़ जुटी थी. उनका अंतिम संस्कार राप्ती नदी के किनारे वैदिक रीति रिवाज से किया गया. इसी प्रकार ठाकुर रोशन सिंह जी का अंतिम संस्कार इलाहबाद (प्रयागराज) के संगम तट पर हुआ.
Tags: Local18, Shahjahanpur News, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : August 9, 2024, 13:36 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed