हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल शाहजहां शासनकाल में शुरु हुई दोस्ती की आज भी चर्च
हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल शाहजहां शासनकाल में शुरु हुई दोस्ती की आज भी चर्च
Saharanpur News: एक दिन हाजी शाह कमाल ने बाबा लाल दास से कहा कि यदि आप गंगा जी के इतने बड़े भक्त हैं, तो क्या गंगा जी आपके पास सहारनपुर नहीं आ सकतीं? बाबा लाल दास ने उत्तर दिया, "क्यों नहीं आ सकतीं?" अगले दिन, बाबा लाल दास ने हरिद्वार में अपनी लुटिया और सोटा गंगा जी में छोड़ दिया. आश्चर्यजनक रूप से, अगले दिन पावधोई नदी में उनकी लुटिया और सोटा तैरते हुए मिल गए
सहारनपुर /अंकुर सैनी: सहारनपुर हमेशा से शांति और सौहार्द का प्रतीक रहा है, और इसका श्रेय बाबा लाल दास और हाजी शाह कमाल को जाता है. ये दो महान हस्तियां हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक हैं, और उनकी दोस्ती के किस्से पूरे देश में मशहूर हैं. सहारनपुर, जो प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है, के उत्तरी छोर पर बाबा लाल दास का आश्रम स्थित है. बाबा लाल दास एक सिद्ध तपस्वी थे, और उनकी उम्र लगभग 300 साल बताई जाती है. उनके आश्रम में आज भी उनकी शरण पादुका मौजूद है, जहां लोग श्रद्धा सुमन अर्पित करने और दर्शन के लिए आते हैं. बाबा लाल दास गंगा जी के परम भक्त थे और रोजाना हरिद्वार स्नान के लिए सहारनपुर से जाते थे.
शाहजहां के शासनकाल में हुई मित्रता
साहित्यकार डॉ. वीरेंद्र आजम बताते हैं कि शाहजहां के शासनकाल में बाबा लाल दास को लेकर कुछ भ्रांतियां शाहजहां तक पहुंचीं. इस पर शाहजहां ने अपने दरबार के सिद्ध फकीर हाजी शाह कमाल को इन भ्रांतियों को दूर करने के लिए भेजा. हाजी शाह कमाल ने बाबा लाल दास की परीक्षा लेने के लिए उनसे पानी मांगा. बाबा लाल दास ने अपना कमंडल उठाया और हाजी शाह कमाल को पानी पिलाया. इस चमत्कार के दौरान, न तो हाजी शाह कमाल की प्यास बुझी और न ही बाबा लाल दास के कमंडल से पानी खत्म हुआ. इस घटना के बाद, हाजी शाह कमाल बाबा लाल दास के मुरीद हो गए और उनकी मित्रता गहरी हो गई. हाजी शाह कमाल ने बाबा लाल दास के आश्रम के पास अपनी झोपड़ी डाल ली और वहीं पर इबादत करने लगे.
हरिद्वार से सहारनपुर तक गंगा का आगमन
एक दिन हाजी शाह कमाल ने बाबा लाल दास से कहा कि यदि आप गंगा जी के इतने बड़े भक्त हैं, तो क्या गंगा जी आपके पास सहारनपुर नहीं आ सकतीं? बाबा लाल दास ने उत्तर दिया, “क्यों नहीं आ सकतीं?” अगले दिन, बाबा लाल दास ने हरिद्वार में अपनी लुटिया और सोटा गंगा जी में छोड़ दिया. आश्चर्यजनक रूप से, अगले दिन पावधोई नदी में उनकी लुटिया और सोटा तैरते हुए मिल गए. तब से पावधोई नदी का महत्व और भी बढ़ गया है. सहारनपुर आज भी बाबा लाल दास और हाजी शाह कमाल की गहरी मित्रता को धरोहर के रूप में संजोए हुए है.
Tags: Local18, Saharanpur newsFIRST PUBLISHED : September 1, 2024, 10:55 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed