अयोध्या में लगातार VIP नेताओं के रेले से भी वोटर BJP से बिदक गए
अयोध्या में लगातार VIP नेताओं के रेले से भी वोटर BJP से बिदक गए
फैजाबाद सीट से बीजेपी उम्मीदवार लल्लू सिंह की हार लगातर चर्चा में है. इसी सीट के तहत अयोध्या राम मंदिर भी है. वहीं से बीजेपी उम्मीदवार की हार कैसे हुई. पहले कई बार बीजेपी इस सीट को जीत चुकी है. ऐसे में वे कौन से कारण थे जिनकी वजह से बीजेपी अयोध्या हारी पढ़िए.
हाइलाइट्स संदेश और मतदाताओं का गुस्सा दोनो दूर तक गया एसपी ने जातिगत समीकरण का फायदा उठाया नए निर्माण के लिए तोड़-फोड़, मुआवजे विवाद ने मसला और बिगाड़ा
फैजाबाद लोकसभा सीट बीजेपी के हाथ से निकल जाने का जितना मलाल पार्टी को है, उससे ज्यादा ये लोगों के बीच चर्चा का मुद्दा बना हुआ है. सोशल मीडिया पर लगातार इस बारे में कोई न कोई कमेंट या बहस देखने को मिल जा रही है. लोग तरह तरह की बातें कर रहे हैं. राम मंदिर बना दिया गया. सालों से तंबू में रखे गए भगवान राम को भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया. फैजाबाद जिले का नाम अयोध्या कर दिया गया. मंडल भी अयोध्या बना दिया गया. फैजाबाद रेलवे स्टेशन अयोध्या छावनी बना दिया गया. अयोध्या स्टेशन पर यात्रियों के ठहरने के बेहतरीन इंतजाम किए गए. अयोध्या शहर का कायाकल्प भी किया गया. चौक चौराहे सजाए गए. छोटी मोटी दुकानों को तोड़, सलीके से व्यावसायिक कांप्लेक्स तमीर कर दिए गए. मंदिर बनने के बाद रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालु भी अयोध्या आने लगे. शहर के आस पास बहुत सारे ओयो रूम और दूसरे होटल भी खुल गए. फिर भी आने वालों को जगह मिलने में दिक्कतें आ रही थी. उनकी संख्या जो इतनी ज्यादा थी कि सबके लिए व्यवस्था हो पाना कठिन था. इस सब से लोगों में खुशी थी. साफ दिख रहा है कि देश भर में अयोध्या जी और भगवान राम के प्रति श्रद्धा है.
पूरी लोक सभा सीट सिर्फ अयोध्या नहीं
फिर राम मंदिर वाली इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी लल्लू सिंह कैसे हार गए. बीजेपी के कार्यकाल में ही मंदिर के पक्ष में फैसला आया. वहां भव्य मंदिर तामीर कराया गया. और उससे भी भव्य समारोह आयोजित कर भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा की गई. वजहें खोजने पर अलग-अलग राय मिल रही है. लेकिन इस पर ज्यादातर लोग सहमत हैं कि ये पूरी लोकसभा सीट सिर्फ अवधपुरी या अयोध्या या फिर राम मंदिर तो नहीं थी. इस सीट का नाम अभी भी फैजाबाद है. यहां 22 लाख से ज्यादा मतदाता हैं. साथ ही स्वरूप की बात की जाय तो इसे ग्रामीण क्षेत्र वाली सीट माना जा सकता है. क्योंकि इसका ज्यादातर हिस्सा ग्रामीण ही है.
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दूसरी सीटों जैसा ही जातीय समीकरण
ये वो आबादी है जो बिल्कुल वैसी ही है जैसा दूसरे किसी इलाके के रहने वाले मतदाता. उनकी जातियां बंटी हुई है. यहां जातियों का समीकरण यूपी की बहुत सारी सीटों जैसा ही है. कुल मतदाताओं का करीब 21-22 फीसदी हिस्सा दलित वोटरों का है. 12 से 15 फीसदी पिछड़े और तकरीबन 20 फीसदी अल्पसंख्यक. कहने की जरुरत नहीं है कि ये रेशियो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन को बहुत अच्छे से सूट करता है. ऊपर से एसपी ने यहां से दलित उम्मीदवार भी उतार दिया.
फैजाबाद सीट पर बीजेपी
फिर पहले कैसे यहां से बीजेपी जीतती रही. इस सवाल का जवाब पर लल्लू सिंह की उम्मीदवारी में खोजा रहा है. वे खुद भी 2014 और 2019 में यहां से सांसद रह चुके हैं. बीजेपी इस सीट को पहले भी दो बार जीत चुकी है. यानी ये सीट 4 बार बीजेपी के कब्जे में रही है. कहा जा रहा है कि अब वे मतदाताओं से कनेक्ट करने की बजाय अपने समर्थकों को 400 सीटें लाकर संविधान बदलने की बात कहते सुने गए. ऐसा एक वीडियो सोशल हो रहा है. इसका भी असर हुआ होगा. लेकिन मूल बात है कि अयोध्या के लोगों को मंदिर की व्यवस्था से परेशानियों से जूझना पड़ा है.
मंदिर बनते ही वीवीआईपी नेताओं, मंत्रियों का रेला
मंदिर में दर्शन की बात की जाय तो चुनाव तक मंदिर में लगातार वीआईपी दर्शनार्थियों का आना लगा रहा. इस दौरान प्रशासन सुरक्षा के नाम पर ऐसा इंतजाम करता रहा है कि लोगों का मंदिर के आस पास जाना दूभर हो जाता था. कहा जा सकता है कि दिक्कतों के कारण बहुसे अयोध्या – फैजाबाद के लोग मंदिर दर्शन करने जा ही नहीं सके. मंदिर के आस पास जो भी स्कूल और अस्पताल वगैरह है वहां जाने आने में रोज लोगों को मुसीबतों से दो चार होना पड़ा है. बताया जा रहा है कि बोर्ड की परीक्षाओं के दौरान एक दिन ऐसा भी आया जब किसी बहुत महत्वपूर्ण राजनेता के आने के कारण बच्चों को परीक्षा देने जाने में भारी मुसीबत हो गई थी. लग रहा था कि उनकी परीक्षा ही छूट जाएगी. इलाके के लोगों ने डीएम से संपर्क किया और तब किसी तरह बच्चे परीक्षा में शामिल हो पाए. याद रखने की जरुरत है कि अलग अलग राज्यों के विधायक झुंड बना कर दर्शन के लिए चुनाव तक पहुंचते रहे हैं. यूपी के विधान सभा अध्यक्ष भी सारे विधायकों को लेकर श्रीराम के दर्शन के लिए पहुंचे थे. इसके साथ ही भूमि अधिग्रहण के दौरान मंदिर के आस पास की दुकानों को तोड़ कर हटाया गया. ये लोकल लोगों में नाराजगी का एक बड़ा सबब बना. क्योंकि जिन्हें विस्थापित किया गया, उन्हें कॉमर्शियल कॉम्पलेक्स में महंगी कीमतों पर दुकाने खरीदने को मजबूर होना पड़ा. मंदिर चाहिए तो भोजन भी. भोजन यानी रोजगार.
फिर क्या रहे मुद्दे
फैजाबाद से प्रकाशित होने वाले जनमोर्चा की संपादक सुमन गुप्ता का इस दलील से सहमत नहीं है. उनका कहना है कि सिर्फ अयोध्या मंदिर के आस पास की दुकानों को विस्थापित किए जाने जैसे एक मुद्दे से बीजेपी प्रत्याशी की हार नहीं हुई है. उनका तर्क है कि उनकी संख्या इतनी अधिक नहीं है. वे कहती है ” यूपी में जनता ने बदलाव का मन बना लिया था. जहां समीकरण ठीक ठाक रहे वहां जनता ने बदलाव कर दिया.” वे बदलाव के मतदाताओं के इस मूड को ‘चुप्पी’ का नाम देती है. सुमन का कहना है कि मतदाताओं ने चुप चाप अपना फैसला दे दिया और यही कारण है कि सारा एग्जिट पोल भी बिगड़ गया. वे ये भी कहती है कि “हार सिर्फ लल्लू सिंह की नहीं पूरे बीजेपी की है. हां, लल्लू सिंह ने का जो वीडियो आया उसने दलित पिछड़ों को एकजुट कर दिया. ये पहला मौका है कि इस सामान्य सीट से एक दलित समुदाय का उम्मीदवार जीता.”
दिल्ली में संपादक अंशुल शुक्ला सुमन गुप्ता की बात से सहमत नहीं है. अंशुल अयोध्या रहने वाले हैं. उनके मुताबिक प्रत्याशी का चयन गलत था. वे कहते हैं – “लल्लू सिंह वे नेता है जो लोगो से बस इतना ही संपर्क रखते है कि क्षेत्र में किसी मतदाता के यहां पड़ने वाले कार्यक्रम में रात 10-11 बजे पहुंचे और लिफाफा पकड़ा कर निकल लिया. क्षेत्र के लोगों से उनका वैसा कनेक्ट नहीं था जैसा नेता का होना चाहिए. जबकि समाजवादी पार्टी और उसके उम्मीदवार अवधेश प्रसाद ने जी-जान लगा कर चुनाव लड़ा. ” हालांकि वे ये भी कहते हैं कि आध्यात्म या धार्मिकता को वोट के साथ क्लब नहीं किया जा सकता.
Tags: 2024 Loksabha Election, Ayodhya, Faizabad lok sabha electionFIRST PUBLISHED : June 6, 2024, 13:02 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed